• भारत को पाकिस्तान की राह पर धकेलने की साजिश..
• पिछले कुछ महीनो में बिहार से आतंकियों की गिरफ़्तारी के बाद नीतीश कुमार के बयानों को याद कीजिये..
• आतंरिक और बाह्य सुरक्षा पर एकजुटता के बजाय अनर्गल बयानबाजी देश को कमजोर करने वाला..
-जयराम “विप्लव”||
14 फरवरी 1998 को लालकृष्ण आडवाणी जी की कोयम्बटूर में चुनावी रैली से कुछ ही देर पहले हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 58 मारे गए थे और 250 से अधिक लोग घायल हो गए थे.
कल 15 सालों बाद एक बार फिर राजनीतिक रैली को सीधे -सीधे आतंकियों ने निशाना बनाया और धमाकों में 6 लोगों की मृत्यु 100 लोग घायल हुए. हमले के सूत्र खुलते जा रहे हैं , कल कुछ जदयू और कांग्रेसी नेताओं ने इस दुखद कुकृत्य पर लगातार टेलीविजन पर अनर्गल बयान दिया , लेकिन अब् रांची से लेकर करांची तक का कनेक्शन सामने आने पर उनकी बोलती बंद है.
खैर ! राजनीति करने के लिए बहुत से मुद्दे हैं लेकिन देश की आतंरिक और बाह्य सुरक्षा पर सरकारों की सुस्ती और तथाकथित सेकुलर दलों की जहरीली बयानबाजी देखकर जनता बेबस और गुस्से में है.
निर्दोष -निरीह जनता की जान जा रही है और केंद्र राज्य पर ,राज्य केंद्र पर ,पुलिस ख़ुफ़िया विभाग पर तो ख़ुफ़िया विभाग पुलिस पर नाकामी का ठीकरा फोड रही है. हर घटना के बाद साम्प्रदायिकता ,सेकुलरिज्म ,अल्पसंख्यक , विदेशी ताकत ,आतंक का रंग आदि-इत्यादि जुमले उछाले जाते हैं. लेकिन आतंक के खिलाफ एकजुटता और कठोर निर्णयों का साहस भारत के कर्णधार नहीं दिखा पा रहे हैं.
पटना की घटना ने भारत को पाकिस्तान के रास्ते पर धकलने की कोशिश की है. याद कीजिये पकिस्तान की चुनावी रैलियां जहाँ बमों की आतिशबाजी और जनता की मौत आम बात है.
पूरे घटनाक्रम में बहुत से सवाल उठ रहे हैं. मीडिया में किसको राजनीतिक फायदा मिलेगा ,किसका क्या कनेक्शन है इस पर बहुत चर्चा हो रही है. लेकिन मूल सवाल और मूल कारणों पर बहस का ध्यान नहीं है. ये इन्डियन मुजाहिद्दीन के लोगों ने किया परन्तु इसमें सुरक्षा एजेंसियों की सुस्ती और उदासीनता के लिए कौन जिम्मेदार है ? बिहार की बात करें तो चंद महीने पहले ही बोध गया में भी ब्लास्ट हो चुके थे तो अब् तक राज्य पुलिस ने आतंकी घटनाओं से निबटने के लिए क्या किया ? याद कीजिये पिछले कुछ महीनों में बिहार के सीमांचल इलाके से कई आतंकियों को अन्य राज्य की पुलिस ने पकड़ा है. और प्रत्येक गिरफ्तारी के बाद राज्य के मुख्यमंत्री का बयान भी याद कीजिये. मुख्यमंत्री ने आतंकियों की गिरफ्तारी को राज्य की अस्मिता से जोड़ने के साथ-साथ समुदाय विशेष से जोड़ कर बयान दिया. इंडियन मुजाहिदीन के सह संस्थापक एवं देश में सर्वाधिक वांछित आतंकवादी यासीन भटकल को पकड़ने वाली बिहार पुलिस की पीठ थपथपाने के बजाय नीतीश कुमार ने हर बार सुरक्षा बालों का मनोबल गिराने की ही कोशिश की. तो क्या पिछले एक सालों में बिहार के कई जिलों में एक्टिव आतंक के स्लीपर सेल्स और अनेकों गिरफ्तारी को लेकर नीतीश कुमार के रवैये को बोध गया और पटना ब्लास्ट से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए ?
(जयराम “विप्लव” जनोक्ति. कॉम के संपादक हैं) (चित्र: अमित शर्मा, पटना)
तेरे हंसने की इक आवाज़ सुन कर
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मेरी ख़ामोशियों की बात सुन लो
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बिहार सरकार अपने सुशासन का प्रचार करने व नितीश कुमार प्रधान मंत्री बन्ने कि जुगाड़ में लगे हैं यह बात अलग है कि उनसे बिहार ही नहीं संभल रहा.
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