तीस जनवरी 1948 की शाम पांच बज कर पांच मिनट पर तीन गोलियां चलीं. इन तीन गोलियों से हत्यारे ने एक इंसान को नहीं मारा बल्कि प्रेम, अहिंसा और सत्य को खत्म करने की कोशिश की. जिस महामानव को हमसे छीन लिया गया उसके लिए कवि प्रदीप ने कहा “जिस दिन तेरी चिता जली रोया था महाकाल/साबरमती के संत तू ने कर दिया कमाल”.
सत्य और अहिंसा पर हिमालय जैसी अडिग आस्था रखने वाले महात्मा गांधी को आज राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति में शिद्दत से याद किया गया. इस अवसर पर डॉक्यूमेंटरी फिल्म ‘Does Gandhi Matter’ (क्या गांधी आज भी प्रासंगिक है) का प्रदर्शन किया गया. समिति के संस्थापकों में से एक शिक्षाविद ललित किशोर लोहमी की अध्यक्षता में हुए इस श्रद्धांजलि कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक प्रवीणचंद्र छाबड़ा, राजस्थान पत्रिका के रीडर्स एडिटर आनंद जोशी, समिति और राज्य संदर्भ केंद्र के निदेशक क्रमश: सुधांशु मोहन जैन और राजवीर सिंह के अलावा सुर संगत समूह के कई सदस्य मौजूद थे.
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की ओर से बनाई गई आधे घंटे की इस फिल्म में छोटे बच्चों से लगा कर बुजुर्गों तक और सामान्यजन से लेकर राजनेताओं तक सभी मान रहे थे कि गांधी आज भी हमारे जीवन में, हमारे लोक व्यवहार में, सार्वजनिक जीवन में और शासन में प्रासंगिक हैं. फिल्म की शुरुआत इस सवाल से होती है कि गांधी सत्य की बात करते थे तो आज आम जन कितना सच बोलते है? स्कूली छात्र, कॉलेज के युवा और अन्य सामान्य वर्ग के लोगों ने कैमरे के सामने स्वीकार किया कि वे सत्य से डिगते भी हैं. कोई 25 प्रतिशत सच बोलता है तो कोई पचास प्रतिशत. मगर हर कोई को इसका दर्द है. हर कोई गांधी को अपने जीवन में उतारना चाहता है भले ही उसमें वह अंश मात्र सफल रहे. फिल्म का अंत रवीन्द्रनाथ टैगोर के गान के साथ होता है “एकला चलो रे एकला चलो…”
श्रद्धांजलि स्वरूप कवि प्रदीप का लिखा और हेमंत कुमार का संगीतबद्ध किया ‘जागृति’ फिल्म का गीत ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल’भी सभा में प्रदर्शित किया गया.
(वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बोड़ा की फेसबुक वाल से)