गत दिनों न्यायाधीशों की नियुक्ति और प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर विवाद शुरू हुआ. इस मामले में अपने बयानों को लेकर विवादित रह चुके पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने एक निजी टीवी चैनल पर हुए एक पैनल डिस्कशन में कुछ सुझाव दिए
१. चूंकि सम्विधान के अनुच्छेद 124(2) में किसी तरह के कोलोजियम का उल्लेख नहीं है, इसलिए जजों के मामले में कोलेजियम व्यवस्था जजों के द्वारा कृत्रिम रूप से बनाई गयी है. जजों ने आभासी रूप से संविधान को अपने अनुरूप ढाल लिया जो सिर्फ संसद में धारा 368 के अंतर्गत किया जा सकता है.
२.कोलोजियम व्यवस्था को राष्ट्रीय जुडिसिअल कमीशन जिसमें कम से कम साथ सदस्य हों, से बदल दिया जाना चाहिए. इनमें पहले चार सर्वोच्च न्यायलय के वरिष्ठतम जज, कानून मंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत एक कानूनी जानकार को रखा जाय. नेता प्रतिपक्ष की अनुपलब्धता में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को चुना जाये. हालाँकि सरकार और विपक्ष की बात भी सुनी जाएगी.
३. ये साथ सदस्यीय समिति पहले उम्मीदवारों का मानकों के आधार पर चयन करेगी और उसके बाद और उसके बाद कुछ योग्य लोगों को सूचीबद्ध करेगी.
४.सूचीबद्ध किये लोगों को समिति के सामने प्रस्तुत होना पड़ेगा जिसका प्रसारण किया जाये, जिससे व्यवस्था में पारदर्शिता आये और सभी जन मामले की प्रगति के बारे में जान पाएं. इन बैठकों में समिति के लोगो को उम्मीदवार से उसके पिछले रिकॉर्ड के बारे में सवाल कर सकते हैं. ऐसी ही प्रक्रिया संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनाई जाती हैं जहां चयनित उम्मीदवारों को सिनेट के सामने प्रस्तुत होना पड़ता है और उनके सवालों के जवाब देने पड़ते हैं.
इसके बाद उन्होंने उक्त प्रोग्राम में इस योजना को प्रस्तावित किये जाने के सम्बन्ध में राय मांगी तो ज्यादातर पैनलिस्ट विरोध जाता कर पीछे हट गये. बकौल काटजू, “एक लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है और जज और अन्य अधिकारी जनता के सेवक मात्र. ऐसा महान फ्रेंच राजनीतिज्ञ रूसो ने कहा था. इसलिए मालिक को पता होना चाहिए की सेवक क्या कर रहे हैं. इसलिए पारदर्शिता होनी चाहिए.”