-तारकेश कुमार ओझा||
दुनिया का हर धर्म मरने के बाद स्वर्ग के अस्तित्व को मान्यता देता है. यानी स्वर्ग एक एेसी दुनिया है जिसके बाद कोई दुनिया नहीं है. लेकिन यदि किसी को यह स्वर्ग छोड़ने को कहा जाए तो उसकी स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.’ बंगला प्रेम’ के मरीज बनते जा रहे हमारे राजनेताओं का भी यही हाल है. नेता से माननीय बनते ही बंगला समेत तमाम सुख – सुविधाओं की उन्हें एेसी लत लग जाती है कि भगवान न करे… जैसी हालत में जब उनके समक्ष एेसी सुविधाएं छोड़ने की नौबत आती है तो उनकी हालत बिल्कुल चौधरी अजीत सिंह जैसी हो जाती है.
क्योंकि यह सरकारी सुख – सुविधाएं बिल्कुल स्वर्ग सरीखी ही तो होती है. देश की राजधानी दिल्ली के हार्ट आफ द सिटी में शानदार बंगला. विरले ही इनका मोह छोड़ पाते हैं. मैं जिस शहर में रहता हूं, वहां एक शहर में दो दुनिया बसती है. एक दुनिया में सब कुछ रेलवे का तो दूसरे में सब कुछ निजस्व. रेल क्षेत्र में बंगला से लेकर बिजली – बत्ती सब कुछ रेलवे की होती है. इनके बदले लिया जाना वाला नाममात्र का शुल्क लाभुक के वेतन से कुछ यूं कटता है कि संबंधित को इसका कुछ पता ही नहीं लग पाता. उनके वारिसों को भी कहीं जाना हुआ तो विशेषाधिकार रेलवे पास जेब में रखा और निकल पड़े. अव्वल तो पास कहते ही टीटीई आगे बढ़ जाते हैं , कभी दिखाने को कहा तो दिखा दिया.
एेसी सुविधाओं के बीच पलने – बढ़ने वाली पीढ़ी को आगे चल कर जब पता लगता है कि रेल यात्रा के टिकट के लिए कितनी जिल्लत झेलनी पड़ती है या सिर छिपाने को आशियाने के लिए कितनी मुश्किलें पेश आती है तो यह कड़वा यर्थाथ उनके पांव तले से जमीन ही खिसका देता है. जमीनी सच्चाई से रु – ब- रू होने के क्रम में ज्यादातर मानसिक अवसाद की गिरफ्त में चले जाते हैं. राजनेताओं को मिलने वाली सुख – सुविधाओं का तो कहना ही क्या. किसी तरह जीत कर सदन पहुंच गए तो राजधानी में बंगला मिल गया. सालों – साल परिवार के साथ उसमें रहे. न मरम्मत की चिंता न बिजली – पानी का बिल चुकाने का टेंशन.
अब सहसा उनसे ये सुविधाएं छोड़ने को कहा जाए तो उनकी हालत का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. चौधरी अजीत सिंह की भी कुछ एेसी ही हालत है. तब वे किशोर ही रहे होंगे जब सरकार ने प्रधानमंत्री के नाते उनके पिता को वह बंगला एलाट किया था. पिता के स्वर्ग वास के बाद भी ‘ माननीय ‘ होने के नाते बंगला उनके कब्जे में ही रहा. इस बीच उनकी दो पीढ़ी जवान हो गई. अचानक गद्दी छिन जाने पर अब सरकार उनसे वह न्यारा – प्यारा बंगला भी छीन लेना चाहती है. लेकिन बंगला बचाने का कोई रास्ता नजर नहीं आने पर उन्होंने उसे उनके स्वर्गीय पिता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की स्मृति में स्मारक बनाने का दांव चल दिया है. इसके पक्ष में उन्होंने कुछ दलीलें भी पेश की है. अब गेंद सरकार के पाले में है. हर बात के राजनीतिकरण के हमारे राजनेताओं की प्रवृति का खामियाजा देश पहले ही भुगतता आ रहा है, शायद आगे भी भुगतेगा….
अब छोड़ो भी बंगला
Muft ka mal chorne me dard too hoga hee
Muft ka mal chorne me dard too hoga hee
सरकार का बहुत सही निर्णय है, अन्य बंगले भी खाली कराये जाने चाहिए वैसे सरकार के पास कोर्ट के फैसले की शक्ति है , जिसके वश वह ऐसा करा सकी, पर यह शक्ति पिछली सरकार के पास भी थी पर इच्छा शक्ति की कमी वश ऐसा नहीं कर सकी
सरकार का बहुत सही निर्णय है, अन्य बंगले भी खाली कराये जाने चाहिए वैसे सरकार के पास कोर्ट के फैसले की शक्ति है , जिसके वश वह ऐसा करा सकी, पर यह शक्ति पिछली सरकार के पास भी थी पर इच्छा शक्ति की कमी वश ऐसा नहीं कर सकी