हुड्डा की जाटो का मसीहा बनने की चाह तथा अफसरशाही को सर पर चढ़ाने ने किये कांग्रेस का बंटाधार..
-पवन कुमार बंसल||
नयी दिल्ली, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में दस वर्ष से सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस पार्टी का बंटाधार हो गया तथा पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गयी. राजनीतक हलको में कहा जा रहा है की भूपिंदर सिंह हुड्डा की खुद को जाटों का मसीहा बनाने की इच्छा तथा अफसरशाही को सर पर बिठाने से पार्टी की लुटिया डूब गयी. यह तो ठीक है की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुबान पर यकीन करते हुए इस बार काफी तादाद में युवा मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया.
लेकिन असलियत यह है कि कांग्रेस पार्टी के सफाये की नीव तो नरेंदर मोदी को पार्टी द्वारा प्रधनमंत्री पद का उमीदवार घोषित करने से पहले ही डल गयी थी. अपने स्वार्थ के लिए भूपिंदर हुड्डा ने प्रदेश को जाट और गैर जाट की राजनीति में बाँट दिया. गैर जाट मतदातों के दम पर रोहतक लोकसभा सीट से तीन बार जाटो के कदावर नेता देवीलाल को हराने वाले भूपिंदर सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बनने के बाद कहने लगे की वे जाट पहले है और मुख्यमंत्री बाद में. हाँ, मीडिया में विज्ञापन देकर यह भ्रम बनाये रखा कि हरियाणा विकास के मामले में नंबर वन है.
अफसरों को सर पर बिठा लिया जिससे जनता परेशान हो गयी. अफसर हुड्डा को भाई साहिब कह कर बुलाते थे. हुड्डा गर्व से कहते रहे के वे किसान के बेटे है तथा इसलिए उसके दर्द को जानते है. लेकिन उनके शासन में भूमि अधिग्रहण कानून का दुरूपयोग करके किसानो की जमीने बिल्डरों के हवाले कर दी गयी.
वैसे गुडगाँव के कोलोनिज़रो ने तो चुनाव् परिणाम आने से पहले ही अंदाजा लगा लिया था की इस बार हुड्डा सरकार सत्ता में नहीं आ रही. याद दिलवा दे कि पंद्रह सितम्बर को हुड्डा साहिब का जन्मदिन होता है. पिछले जन्मदिन पर गुडगाँव के कोलोनाइजरो ने अंग्रेजी के अखबारों में उन्हें जन्मदिन की मुबारिक देते हुए पुरे पृष्ठ के विज्ञापन दिया थे. लेकिन इस बार उनके जन्मदिन पर उन्होंने कोई विज्ञापन नहीं दिया.
रोबर्ट वढेरा को गुडगाँव में जमीनो के सौदे में फ़ायदा करवाकर हुड्डा ने सोनिआ गांधी को काबू कर लिया. अपने इस प्रभाव का इस्तेमाल करके पार्टी में अपने विरोधियों को पार्टी से निकलवा दिया. पूरी पार्टी पर हुड्डा का कब्ज़ा हो गया. गुडगाँव में सोनिआ गांधी के दामाद
रोबर्ट के अलावा हुड्डा के दामाद कुणाल तथा कई कांग्रेसी नेताओं के दामादों का प्रॉपर्टी का धंधा खूब फला फूला. यहाँ तक कि मजाक में गुडगाँव को दामाद नगर कहा जाने लगा है.
बिल्डर गुडगाँव में फ्लैट लेने वालो को चुना लगा ते रहे तथा पुलिस ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. विवादास्पद तथा दागी अफसरों को सवैंधानिक पदो पर लगाया गया. राजनीतिक हलको में यह भी कहा जा रहा है कि यदि अशोक तंवर को काफी पहले हुड्डा के चम्पू फूल चंद मुलाना की जगह प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जाता तो शायद पार्टी की इतनी शर्मनाक हार नहीं होती.
चुनाव में भी हुड्डा के कई समर्थक कांग्रेसी उमीदवारो के मुकब्ले आज़ाद उमीदवार के रूप में आ डटे. बेरी से कांग्रेस टिकट पर चुनाव जीते डॉ रघुबीर सिंह कादियांन भी इसके शिकार होते होते बचे. हुड्डा ने तो फ्रीडम फाईट रो के परिवारो को सम्मान देने में भी पक्षपात किया. अपने पिता रणबीर सिंह के मित्र शील भदर यायजी के बेटे सत्यानन्द को तो बिल्डर बना दिया और श्रीराम शर्मा की पुतर्वधु के देहांत पर उनके घर शोक प्रकट करने के लिए जाने के बजाए लाहली में क्रिकेट के मैच का मजा लेते रहे.