कुमारानन्द सरस्वती उर्फ डॉक्टर(?) के. कुमार की पोल खोलने वाला एक आलेख जब हमने कुछ दिनों पहले प्रस्तुत किया था तो स्वामी जी के यहां से फोन आया और कहा गया कि उनके पीआरओ या मीडिया संबंधी अधिकारी ‘वर्मा जी’ से उनके बारे में सही जानकारी मिल सकती है। ग़ौरतलब है कि पहले आलेख को छापने से पहले भी मीडियादरबार ने स्वामी जी से स्पष्टीकरण मांगा था, लेकिन काफी इंतजार और कई बार संपर्क करने के बावजूद किसी ने जवाब नहीं भेजा था।
वर्मा जी के नंबर पर संपर्क करने पर उन्होंने फिर एक नया ई-मेल पता दिया सवालों की सूची दोबारा भेजने के लिए। उस पर भी कई मेल भेजने के बावजूद कोई जवाब नहीं आया। संभवतः स्वामी जी की संस्था के कर्मचारी रिपोर्ट के छपने में देरी करवाना चाह रहे होंगे। बहरहाल, इस बीच कुछ सुधी पाठकों ने स्वामी जी के जीवन के संबंध में कुछ तथ्यों पर प्रकाश डाला है। स्वामी जी मूल रूप से करनपुर, राजस्थान के रहने वाले हैं और उसके पास ही हनुमानगढ़ में नौकरी करते थे। वहां के एक पाठक जॉनी सिंघला ने कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं।
स्वामी कुमारानन्द अपनी वेबसाइट और प्रचार सामग्रियों में खुद को कई प्रेसीडेंट, प्राइम मिनिस्टरों, राज्यों के चीफ मिनिस्टरों और दूसरे देशों के राजदूतों का निजी चिकित्सक भी बताते हैं जबकि हक़ीकत ये है कि उन्हें कभी डॉक्टरी पढ़ने का सौभाग्य नहीं मिल पाया। सिंघला के मुताबिक के. कुमार अपने आरंभिक दिनों में हनुमानगढ़ के सिद्धू अस्पताल में वॉर्ड ब्वॉय हुआ करते थे। संभवतः के कुमार को यहीं से डॉक्टर बनने का शौक चर्राया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि शायद इसका नाम कृष्णा है और अस्पताल छोड़ने के बाद वो के. कुमार के तौर पर लोगों को अंग्रेजी दवाएं देकर कुछ नीम हकीमी भी करने लगा था। हनुमानगढ़ के एक प्रभावशाली व्यक्ति ने तो यहां तक कहा कि के. कुमार कभी साइकिल चुराते हुए भी पकड़ा जा चुका है।
बहरहाल, बाद में वो दिल्ली पहुंच गए जहां तेज़ी से फैल रही स्वास्थ्य संबंधी परेशानी यानी ‘मोटापे’ पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने दिल्ली के तिब्बिया कॉलेज से पढ़े एक जाने-माने आयुर्वेदिक हकीम से संपर्क साधा और उसके सुझाव पर कुछ गोलियां बनवा ली। अरिहंत के नाम से उसने दिल्ली भर में क्लीनिकों या गोली बेचने वाले सेंटरों की चेन खोल ली। के. कुमार साल में दो-तीन बार दिल्ली के पांच सितारा होटल ली मेरीडियन में पत्रकारों को दावत देते थे और उन्हें किसी ‘ठीक हो चुके मरीज’ से मिलवाते थे। वो ‘मरीज़’ रटे-रटाए डॉयलॉग बोलता था जिसमें तथाकथित डॉक्टर (के. कुमार) के दवा की खूब तारीफ होती थी। लेख छापने वाले पत्रकारों को बढ़िया उपहार और मोटे लिफाफे भी दिए जाते थे। कुछ अखबार उनकी रिपोर्ट नहीं छापते थे तो उनमें खबरनुमा विज्ञापन दिए जाते थे।
इस धंधे में कमाई तो थी, लेकिन ज्यादा नहीं। बाद में के. कुमार दूसरी बीमारियों, यहां तक कि कैंसर का भी इलाज करने का दावा करने लगे। जब इतने पर भी बात न बनी तो वह मोटे पैसे वाले आसामियों के बीमार रिश्तेदारों के फोटो देख कर भी इलाज़ बताने लग। ऐसे में लोग उन्हें आध्यात्मिक शक्तियों वाला मान कर सम्मान देने लगे। बस यहीं से उन्हें बाबा बनने का चस्का लग गया।
कहते हैं कि खुद को बाबा के तौर पर लांच करने के लिए के. कुमार ने अरिहंत क्लीनिक से हुई कमाई तो खर्च की ही, अपने कुछ ग्राहकों का भी पैसा लगवाया। उन्होंने दिल्ली और आस-पास के धनाढ्य ग्राहकों को वादा किया कि जो भी कमाई होगी उसका हिस्सा भी लंबे समय तक वापस दिया जाएगा। बाद में किसे कितना पैसा वापस मिला, यह एक अलग जांच का विषय है, लेकिन इतना जरूर हुआ कि बाबा बनते ही के. कुमार की आमदनी कई गुनी बढ़ गई। लोग उनके खबरनुमा विज्ञापन अभियान के झांसे में आ गए और उनकी सभा में आकर ‘बीजमंत्र’ लेने लगे।
एक दुखी ‘भक्त’ ने मीडियादरबार को बताया, “वैसे तो के. कुमार अपने प्रचार में निशुल्क बीजमन्त्र (उसमें भी मंत्र-पाठ की किट करीब 700 रुपए में बेची जाती है) के पाठ के बहाने लोगों को बुलाते हैं, लेकिन वहां विशेष कृपा प्राप्त करने का लालच देकर ग्राहक फंसाते हैं। इस विशेष कृपा के लिए रजिस्ट्रेशन फ़ीस 3100, 5100 और 11000 रुपए वसूली जाती है। इतना ही नहीं, स्वामी जी सप्तचंडी हवन व सामग्री आदि के लिये 21000 रुपए भी लेते हैं और अन्य तरह तरह के उपाय के बहाने मानसिक, आर्थिक व शारीरिक दुःख-दर्द व आधी व्याधि से पीड़ित लोगों का भरपूर दोहन किया जाता है।” इस वी़डियो में देख सकते हैं कि कुमारस्वामी कैसे प्रलोभन देकर वसूली करते हैं। प्रणाम कर ‘जो श्रद्धा-भावना है’ का चढ़ावा देने की बात कही जा रही है।
सबसे दिलचस्प कुमारानन्द स्वामी का टेलीविजन प्रचार अभियान होता है। उनके वीडियो विज्ञापन वैसे ही होते हैं जैसे दर्द दूर करने वाले तेल या मोटापा कम करने वाली मशीनों के। फिल्म और टेलीविजन के फ्लॉप या बी और सी ग्रेड कलाकारों के ‘वास्तविक अनुभवों’ पर आधारित इन फिल्मों में स्वामी जी को सिद्ध पुरुष और मनोकामना पूरी करने वाला बताया जाता है। विज्ञापन फिल्मों में कई जगह तालियों की गड़गड़ाहट होती है, लेकिन लगभग हर जगह एडिटिंग के जरिए डाली गई होती है। अधिकतर वीडियो में कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा लेकर भानुमती का कुनबा जोड़ा गया प्रतीत होता है। मौका चाहे कोई भी हो बीजमंत्रों का प्रचार पीछे नहीं रहता। (जारी..)
नीचे दिए वीडियो में देखा जा सकता है कि स्वाइन फ्लू के खिलाफ अभियान में कैसे किराए के स्टार अपना निजी अनुभव सुना रहे हैं।
रामायण और महाभारत के अन्य अभिनेता
अरुण गोविल ने भी स्वाइन फ्लू पर एक शब्द नहीं कहा
एक गाँव में वैद जी थे उन्होंने सुना की हर रोग की जड़ पेट है.एक दिब्ब्बे मैं जमालगोटा की गोलिया रक्खी aur एक काम्पौदर के साथ चालू .कुछ दिन ठीक रहा फिर एक दस्त का मरीज आया. वैद -compounder एक गोली दे दो. दे दी.अगले दिन दो गोली तीसरे दिन हालत ख़राब तो चार गोली. मरीज मर गया तो गाँव वालों ने उसे दफ़नाने की सजा दी ,कम्पौदर paitaane होने से उसका बुरा हाल हुआ. दुसरे गाँव पहुंचे और येही किस्सा चालू. जब वैद जी ने ४ गोली देने को कहा तो कम्पौंदर ने condition राखी की इस बार वोह सिरहाने रहेगा और वैद जी पैताने.हा हा. ऐसे ही ये भी वैद हैं.j
भाई आज के समय में कोई ऐसे.
बाबा है जो इन बुराइयों से बचे हुये हैं.
yeh to logon ko samajna chahiye ki kisi pakandi ke pass na jaye. Pare likhe log bhi anparon se jyada befkoof hain.
aap ne jo in phakandiyo ki detail nikali hai vo kabile tarif hai………
correct it may be the reseasrch topic for phd also.
baba ji log mahan hai ab is tarah kai business per MBA students research karingae.
ji bilkul shi kha total agree
media darbar ne sahi pakda hai aise logo ko
ak se badhkar ak hai is desh me. kitne baba bhare pade hai. yaha par kis kis ki pol khologe.
Chaliye ab dhire dhire inka bhi logo ko pata lagega.