सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी तथा भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी की चादर पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरोसिंह शेखावत के नाती अभिमन्यु सिंह द्वारा चढ़ाए जाने से सभी भाजपा नेता व कार्यकर्ता चौंक गए हैं। राजवी को भाजपा के दोनों नेताओं की ओर से यह अहम जिम्मेदारी दिए जाने के मायने निकाले जा रहे हैं।
असल में इस घटना को वर्तमान में भाजपा अध्यक्ष गडकरी व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच हुए विवाद से जोड़ कर देखा जा रहा है। गडकरी के भाजपा नेता गुलाब चंद कटारिया की यात्रा को हरी झंडी दिए जाने से ही तो वसुंधरा राजे खफा हुई थीं और अपनी ताकत दिखाने के लिए विधायकों के इस्तीफे जमा किए थे। हालांकि विवाद बढऩे पर कटारिया ने यात्रा को स्थगित करने की घोषणा कर दी, मगर विवाद सीधा गडकरी से हो गया। दूसरी ओर सब जानते हैं कि वसुंधरा व राजवी के नाना पूर्व उप राष्ट्रपति स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत के बीच छत्तीस आंकड़ा था। उस वक्त वसुंधरा मुख्यमंत्री थीं और शेखावत के इतना खिलाफ थीं कि प्रदेश के भाजपा नेता शेखावत से मिलने से भी घबराने व कतराने लगे थे। उसी का परिणाम रहा कि किसी समय में राजस्थान के एक ही सिंह के नाम से प्रसिद्ध शेखावत अपने प्रदेश में ही बेगाने से हो गए थे। दरअसल उपराष्ट्रपति पद से निवृत्त होने के बाद जब शेखावत जयपुर लौटे तो वसुंधरा को लगा कि कहीं वे फिर से पावरफुल न हो जाएं, सो वे उन्हें कमजोर करने में लग गईं। हालांकि उपराष्ट्रपति पद पर रहने के बाद शेखावत के फिर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करने की संभावना न के बराबर थी, मगर उनके दामाद नरपत सिंह राजवी तेजी से उभर रहे थे। वसुंधरा जानती थीं कि राजवी ताकतवर हुए तो उनकी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को चुनौती दे सकते हैं, सो उन्होंने शेखावत व राजवी दोनों को कमजोर करना शुरू कर दिया।
आप जानते होंगे कि राजवी के पुत्र अभिमन्यु सिंह हाल ही सक्रिय हुए हैं। उन्होंने अपने नाना की प्रतिमा खाचरियावास में स्थापित करने के सिलसिले में अग्रणी भूमिका निभा कर अपनी उपस्थिति दर्शायी थी। उस कार्यक्रम में आडवाणी व वसुंधरा सहित अनेक बड़े भाजपा नेताओं ने शिरकत की थी। अजमेर में भी उन्होंने एक प्रेस कान्फे्रंस आयोजित की थी। तभी लग गया था कि वे राजनीति में सक्रिय रूप से आने की तैयारी कर रहे हैं। इस कयास पर मौजूदा चादर प्रकरण ने मुहर लगा दी है। इससे एक तो यह स्थापित हो गया है कि उनकी आडवाणी व गडकरी से कितनी नजदीकी है। दूसरा चादर चढ़ाने के लिए पूरे राजस्थान में कई दिग्गज नेताओं को छोड़ कर अभिमन्यु सिंह को यह जिम्मेदारी दिए जाने से यह संदेश जाता है कि वे उन्हें पूरी तवज्जो देना चाहते हैं। आडवाणी की छोडि़ए, मगर गडकरी चाहते तो पार्टी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अथवा किसी जिम्मेदार पदाधिकारी को यह काम सौंप सकते थे, मगर उन्होंने राजवी को ही चुना, जिसका बेशक खास महत्व है।
समझा जाता है कि ऐसा करके आडवाणी व गडकरी अथवा यूं कहिए भाजपा हाईकमान राजस्थान में पूरी तरह से हाशिये पर लाए गए राजवी परिवार पर हाथ रख रहा है। इस प्रकार वह राजस्थान में नए राजपूत नेतृत्व को आगे लाना चाहता है, ताकि वसुंधरा की एकतरफा दादागिरी पर अंकुश लगाया जा सके। इसके अतिरिक्त इससे अमूमन भाजपा मानसिकता के राजपूत समाज और शेखावत के निजी समर्थकों को भी अच्छा संदेश जाएगा। हालांकि यह कहना बेवकूफी ही कहलाएगी कि वह राजवी को वसुंधरा के बराबर ला कर खड़ा करना चाहता है, मगर इतना तो तय है कि राजवी परिवार का मजबूत होना वसुंधरा के लिए चिंता का कारण तो बन ही सकता है। जिस परिवार के शेखावत व नरपत सिंह राजवी को उन्होंने निपटाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी, उसी परिवार का सूरज उदय होता है तो ये परेशानी वाली ही बात होगी। अब ये तो वक्त ही बताएगा कि अभिमन्यु सिंह अपने नाना व पिता के साथ हुए व्यवहार का बदला चुका पाते हैं या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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bhai sahaab yes site lagta hai kisi conressi ke rishtedaar ki hai.
Aapki baat galat hai. Abhimanyu aur Narpat Singh ek hain. Bina jaankari putra-pita ke rishte ke baare me nahi bolna chahiye.
आपको कोई गलतफहमी हो गई है, मैने ऐसा तो कहीं नहीं लिखा
ham sab sahte hai ki aap aage bde hukum….
really true
Nirash hone ki to jroorat nhi hai mgar kuch krneki to jroort hai.
ये मूर्खों के कार्य है ….जो अपने बाप की इज्ज़त नहीं करता उसको कहीं इज्ज़त नहीं मिलती …जागो हिन्दू और धर्मनिरपेक्ष के धोखे से बहार निकलो वर्ना अपनी पहचान खो दोगे और पीड़ियाँ भी …..
शुक्रिया जनाब
अभिमन्यू राजवी आगे बढे ,हमारी भी यही इच्छा है|.
हमारी शुभकामनाएँ उनके साथ हमेशा रहेगी |.
अभिमन्यू राजवी आगे बढे ,हमारी भी यही इच्छा है|
हमारी शुभकामनाएँ उनके साथ हमेशा रहेगी |
शुक्रिया, युवाओं को आगे आना ही चाहिए
nice
यह चित्र सूफी संत ख्वाजा की दरगाह के सन्दर्भ में है. विषय परिवर्तन के साथ कहना चाहूँगा की सभी राजनैतिक दल के हिन्दू नेता ख्वाजा के चादर चढाते है पर किसी भी राजनैतिक दल के मुस्लिम नेता ने भगवान शिव या भगवान महवीर के अभिषेक पर दूध चढाते या भिजवाते नहीं सुना. गंगा जमुना संस्कृति का दायित्व केवल हिन्दुओ पर ही है क्या ?
तो हिंदुओं को किसने कहा कि आप दरगाहों में जाएं ही, हकीकत बताउं, मुसलमानों से ज्यादा हिंदू आते हैं दरगाह में
Hame nirash hone ki jaroorat nahin balki in doglon ko pahichane ki jaroorat hai aur inhen yathochit jawab dene ki aavshyakta hai.
jaise neta waisa desh.
KUCH NHI HO SAKTA DESH KA.
BHRASHT MANTRI BHRASHT DESH.