प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जिंदगी भर कि मेहनत से अपनी जो साख बनाई थी, उसे यूपीए-2 के महज तीन साला शासन में खो दिया है और विश्व भर में इसे लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं हो रही है.
कुछ माह पहले गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को ‘चतुर राजनेता’ करार देने वाली विश्व प्रसिद्ध पत्रिका ‘टाइम’ ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ‘The underachiever’ (उम्मीद से कम कामयाबी हासिल करने वाला शख्स) कहा है. दिलचस्प तथ्य यह है कि इसी पत्रिका ने तीन साल पहले मनमोहन सिंह को एक ऐसे शख्स की संज्ञा दी थी जिसने लाखों लोगों की जिंदगियां बदल दीं.
लेकिन टाइम पत्रिका ने अपने ताजा अंक में मनमोहन सिंह की काबिलियत पर सवाल उठाते कहा है कि क्या मौजूदा पीएम धीमी विकास दर, नीतियां लागू नहीं करने और आर्थिक सुधार के मोर्चे पर नाकाम रहने के आरोपों का बखूबी सामना कर पाएंगे? पत्रिका ने केंद्र की मौजूदा यूपीए सरकार की आलोचना करते हुए कहा है, ‘रोजगार पैदा करने वाले कानून संसद में अटके हैं और जनप्रतिनिधियों पर से लोगों का भरोसा घटने लगा है, जो चिंता की बात है.’
सबसे शर्मनाक तथ्य टाइम पत्रिका ने लिखा है कि “भारत को रिबूट करने की जरूरत है” यानि कि भारत को फिर से शुरुआत करनी होगी.
पत्रिका के मुताबिक, सिंह उन सुधारों को जारी रखने के इच्छुक नहीं हैं, जिनसे देश को दोबारा प्रगति के रास्ते पर लौटाया जा सकेगा. टाइम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक विकास में आई गिरावट की चुनौती, भारी वित्तीय घाटे और रुपये की गिरती कीमत के अलावा काग्रेस के नेतृत्व वाला संप्रग गठबंधन लगातार भ्रष्टाचार के विवादों में घिरा है.
साथ ही सरकार पर आर्थिक दिशा तय नहीं कर पाने के आरोप भी लग रहे हैं. सरकार की कमजोर नीतियों के कारण घरेलू और विदेशी निवेशक घबरा रहे हैं. महंगाई बढ़ने के साथ ही सरकार की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाने वाले विवादों के चलते मतदाताओं का भरोसा भी कमजोर पड़ रहा है.
मनमोहन सिंह के पतन का जिक्र करते हुए टाइम ने लिखा है, ‘पिछले तीन वर्ष में उनके चेहरे से शात आत्मविश्वास वाली चमक गायब हो गई है. वह अपने मंत्रियों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे और उनका नया मंत्रालय [वित्त मंत्रालय का अस्थायी कार्यभार] सुधारों को लेकर खास इच्छुक नहीं है. हालांकि, पत्रिका ने लिखा है कि मनमोहन सिंह ने शुरुआत में उदारीकरण पर अहम भूमिका निभाई थी. टाइम ने लिखा है कि ऐसे समय जब भारत आर्थिक विकास में धीमेपन को सहन नहीं कर सकता, विकास और नौकरियों को बढ़ाने में मददगार विधेयक संसद में अटके पड़े हैं. इससे चिंता पैदा होती है कि राजनेताओं ने वोट की खातिर उठाए गए कम अवधि वाले और लोकप्रिय उपायों के चक्कर में असल मुद्दे को भुला दिया है.
‘प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दुनिया को देश के बारे में भ्रामक, भ्रष्टाचार और नेतृत्वहीन आर्थिकी का संदेश दिया है. निश्चित तौर पर उन्होंने बड़ी उपलब्धियां हासिल नहीं की हैं. उन्होंने भ्रष्टाचार, घोटाले और खराब शासन प्रणाली जैसी उपलब्धियां ही जुटाई हैं.’
बीते मार्च में ‘टाइम’ ने अपने कवर पर मोदी की तस्वीर प्रकाशित की और कहा कि वे बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर 2014 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के पीएम पद के सम्भावित उम्मीदवार और पार्टी महासचिव राहुल गांधी के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं.
गौरतलब है कि अपने दूसरे शासनकाल में मनमोहिनी सरकार ने कई अलोकप्रिय कदम उठाये जिससे सिर्फ उनकी सरकार ही नहीं बल्कि खुद मनमोहन सिंह की विश्वसनीयता पर गहरा धक्का लगा है. यही नहीं उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा किये गए ऐतिहासिक घपले – घोटालों ने मनमोहन सिंह को कहीं का नहीं छोड़ा. रही सही कसर उनके सहयोगियों के उलटे सीधे बयानों ने कर दी.
sade aamon ki tokni mei ek achha aam rakh do to vah bhi sad jaayega
The politic tics every body reminisce together when they have common interest when it is over they depart.
सुपुर्दे खाक कर दी इज्जत…
जब देख लो जीवन मे मे जो कुछ हम पाना चाहते थे उससे कहीं ज्यादा हम पा चुके हैं अब नए लोगों को मौका देना चाहिये….इसी को भारतीय संस्कृति मे वानप्रस्थ या सन्यास कहा जाता है….लेकिन अपने भारत मे ये गन्दी परम्परा है कि हर नेता तिरंगे मे लिपट के ही मरना चाहता है….या जब तक जनता लात मार के कुर्सी से नीचे नहीं उतारे कोई उतरने को तैयार ही नहीं होता…… यही हाल इनका है मैडम कि चमचागिरी करते करते ये अपना अस्तित्व ही खो चुके हैं…ना इनको अपनी चिंता है ना देश की…… इसी को कहतें है मति भ्रष्ट होना……..
vipn merotra ji m agree with u
manmohan singh per greatness impose kar di thee foreign media ne.Uske sabhi propsalas be fast track power plant, neuclear deal, paycommissions all have only failed or increased corruption.He did nothing to prevent corruption.A babu is a babu will always be a babu.