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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

जब कोई अपनी योग्यता अपने काम के जरिए साबित न कर पाए, तो फिर वह झूठी प्रशस्तियों और भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल करता है, ताकि पढ़ने वाला इनमें उलझ कर रह जाए। इस साल सरकार ने जो आम बजट पेश किया है, वह ऐसे ही भारी-भरकम शब्दों से भरा हुआ है, जिसके भावार्थ समझने में जनता ऐसी उलझेगी कि अपनी बुनियादी समस्याओं से उसका ध्यान हट जाएगा।

1 फरवरी को केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 75वां आम बजट पेश किया। उन्होंने इसे पहला अमृतकाल बजट बताया। अब 75 का आंकड़ा आ गया है, तो अमृत की संज्ञा यहां जोड़ी जा सकती है। विचारणीय है कि क्या अमृत शब्द के इस्तेमाल से समस्याओं के विष से छुटकारा मिल सकता है। क्या शब्दों की बाजीगरी से अर्थव्यवस्था में आई गिरावट संभाली जा सकती है।

निर्मला सीतारमण ने केवल अमृत शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, उन्होंने यह भी कहा कि बजट की प्राथमिकताएं सात बिंदु होंगे जो सप्तऋषि की तरह देश का मार्गदर्शन करेंगे। सरकार के सप्तऋषि होंगे-सहभागिता के साथ विकास (जिसमें वंचितों के साथ-साथ सभी को वरीयता दी जाएगी), खेती के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा, आख़िरी तबके तक पहुंचे की कोशिश, काबिलियत का पूरा इस्तेमाल, सतत ऊर्जा की तरफ बढ़ने की कोशिश, वित्तीय क्षेत्र और युवाओं पर ध्यान। सरकार ने जिन लक्ष्यों को अब सप्तऋषि बताया है, वे तो हर लोक कल्याणकारी सरकार के दायित्व हैं, फिर बजट में इन उद्देश्यों को अलग से बताने का कोई औचित्य नहीं है। फिर भी सरकार ने ऐसा किया, क्योंकि असल में जिन बिंदुओं पर बात होनी चाहिए, जैसे बेतहाशा महंगाई पर काबू पाने के प्रावधान, करोड़ों बेरोजगारों के लिए नौकरियों का इंतजाम, किसानों से किया गया एमएसपी का वादा, बैंकों में ऋ णों की हेरा-फेरी, डूबत खातों का बढ़ता डर, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए सुरक्षित भविष्य, डॉलर की बढ़ती कीमत इन सब पर सरकार मौन रही। अगर इन ज्वलंत समस्याओं को फोकस में रखते हुए बजट तैयार किया जाता, तो फिर सप्तऋ षि, अमृत जैसी संज्ञाओं की जरूरत नहीं पड़ती।

वित्त मंत्री ने कहा कि इन 9 वर्षों में, भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में बढ़ी है। सब जानते हैं कि यह भाजपा सरकार का दूसरा कार्यकाल है। लेकिन बजट में पिछले वित्तीय वर्ष की समीक्षा और अगले वित्तीय वर्ष की नीतियों का जिक्र होना चाहिए, उसमें पिछले 9 सालों की बात करने का क्या मतलब है। क्या मोदी सरकार किसी भी मौके को राजनैतिक बनाने से नहीं चूकेगी। जिन 9 सालों में अर्थव्यवस्था की मजबूती की बात वित्तमंत्री ने की है, उन्हीं 9 सालों में सिलेंडर की कीमतें 4 सौ से हजार रुपए हो गई हैं और पेट्रोल 60 से सौ रुपए। देश में आर्थिक असमानता की खाई अभी जितनी गहराई है, उतनी पहले कभी नहीं थी।

निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए बताया कि देश में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी से अधिक बढ़कर 1.97 लाख रुपये हो गई है। लेकिन फिर बजट में ये घोषणा भी की गई है कि अंत्योदय योजना के तहत गरीबों के लिए मुफ्त खाद्यान्न की आपूर्ति को एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है। पाठक जानते हैं कि कोरोना लॉकडाउन के वक्त 80 करोड़ गरीबों को पांच किलो मुफ्त अनाज देने की शुरुआत सरकार ने की थी और इसे कुछ-कुछ महीनों के अंतराल पर बढ़ाया जाता रहा। यह कदम इसलिए उठाया गया था क्योंकि लॉकडाउन के कारण लाखों लोग बेघर, बेरोजगार हो गए थे। कई छोटे और मध्यम उद्योगों पर ताला लग गया था। बेरोजगारी के कारण आत्महत्याएं देश में बढ़ गईं और गरीबों की संख्या भी। इसके बाद भुखमरी का आंकड़ा भी न बढ़ जाए, इसलिए मुफ्त अनाज ढाई सालों तक दिया जाता रहा और अब फिर इसे एक साल के लिए बढ़ाया गया है। अगर देश में लोगों की आमदनी दोगुनी हो चुकी है, तो फिर सरकार को मुफ्त अनाज की योजना जारी क्यों रखनी पड़ी है।

इस बार के बजट को चुनावी बजट कहा जा रहा है, क्योंकि इस साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और फिर अगले साल आम चुनाव। उसके पहले इस बजट में सरकार ने ऐसी व्यवस्थाएं की हैं, ताकि मध्यमवर्ग और महिलाओं को खुश किया जा सके। इस बार आयकर छूट की सीमा को 5 लाख से बढ़ाकर 7 लाख कर दिया गया है, यानी 7 लाख तक कोई आयकर नहीं देना होगा। उच्चमध्यमवर्ग इस घोषणा से प्रसन्न है। वहीं महिलाओं के लिए महिला सम्मान बचत पत्र योजना शुरू करने की घोषणा की गई है। इसमें महिलाओं को 2 लाख की बचत पर 7.5 प्रतिशत का ब्याज़ मिलेगा। नोटबंदी के कारण महिलाओं की जमापूंजी पर गहरा असर पड़ा था। आड़े वक़्त के लिए बचा कर रखी गई उनकी धनराशि एकदम से उनके हाथ से निकल गई थी। अब यह बचत पत्र की इस योजना को महिला सम्मान के साथ जिस तरह से जोड़ा गया है, देखना होगा कि उससे पहले मिले जख्मों पर कितनी राहत मिलती है।

शिक्षा के क्षेत्र में कोई बड़ी घोषणा तो बजट में नहीं हुई है, लेकिन डिजिटल लाइब्रेरी की घोषणा के साथ बताया गया है कि अगले तीन सालों में 740 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में 38,000 शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की भर्ती की जाएगी। सवाल फिर वही है कि अभी जो कमियां हैं, उन्हें दूर करने की बात किए बिना अगले तीन सालों की घोषणा क्यों की जा रही है, जबकि अगले साल चुनाव में तय होगा कि यह सरकार रहेगी या जाएगी।

बजट में और भी कई बड़ी-बड़ी बातें कही गई हैं, जिनका अर्थ समझने में जनता को काफी वक़्त लगेगा और जब तक ये योजनाएं धरातल पर उतरेंगी, तब तक अगले बजट का वक़्त आ चुका होगा। निर्मला सीतारमण ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर है, उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ रही है। बेहतर होगा कि ऐसा कोई दावा करने की जगह जनता को यह तय करने दिया जाए कि हम वाकई सही रास्ते पर बढ़ रहे हैं या नहीं।

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