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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

उत्तरप्रदेश में चार शादीशुदा आदमी सदमे से गुजर रहे हैं क्योंकि प्रधानमंत्री आवास योजना का पैसा खाते में आते ही वह पैसा लेकर उनकी पत्नियां अपने प्रेमियों के साथ भाग निकलीं। अब ये चारों आदमी एक और परेशानी में फंसे हुए हैं कि उन्हें सरकार की तरफ से नोटिस मिला है कि उन्होंने पैसा मिलने के बाद भी मकान बनाना शुरू नहीं किया है। अब सरकारी अधिकारी इन पतियों पर दबाव डाल रहे हैं कि वे अपनी पत्नियों को समझाकर घर लेकर आएं और उस पैसे से मकान बनाएं क्योंकि यह पैसा मकान बनाने के लिए ही मिला है। महिला के नाम से बैंक खाता होने की वजह से यह हो पाया है, वरना आमतौर पर तो हिन्दुस्तान में यही होता है कि आदमी ही घर छोडक़र किसी और महिला के साथ रहने चले जाते हैं, या घर पर रहते हुए भी बाहर दूसरा इंतजाम कर लेते हैं। यह खबर दूसरी बहुत सी खबरों की याद दिलाती है जिनमें महिलाएं अपनी परंपरागत तस्वीर से हटकर कई तरह के काम करते दिखती हैं, और लोगों को महिलाओं से ऐसी उम्मीद नहीं रहती।

इन दिनों बहुत सी जगहों पर ऐसे जुर्म दिखाई पड़ रहे हैं जिनमें कोई महिला अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति को मार डाल रही है, या परेशान कर रहे प्रेमी से छुटकारा पाने के लिए अपने पति या अपने भाई के साथ मिलकर प्रेमी को मार डाल रही है। हाल के बरसों में ऐसे मामलों की खबरें बढ़ती हुई दिखाई पड़ रही हैं। बहुत से ऐसे वीडियो भी बीच-बीच में सामने आते हैं जिनमें कहीं शराब के नशे में महिला किसी कॉलोनी के सुरक्षा कर्मचारियों को पीट रही है, गंदी गालियां दे रही है। अभी दो दिन पहले ही दिल्ली या उसी किस्म की किसी बस्ती का एक वीडियो सामने आया है जिसमें एक बाजार में भीड़ के बीच एक आदमी पर छेड़ख़ानी की तोहमत लगाते हुए तीन महिलाएं उसके कपड़े उतार रही हैं, और उसे पूरा नंगा करके उसे पीट रही हैं, उसे तमाम किस्म की गालियां भी दे रही हैं। ऐसे बहुत से मामलों को देखें तो लगता है कि महिलाएं एक नए किस्म की ताकत का इस्तेमाल कर रही हैं, और 25-30 बरस पहले तक ऐसी कल्पना नहीं हो पाती थी।

दरअसल यह पीढ़ी पढ़ी-लिखी, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर, मोबाइल और मोबाइक से लैस लड़कियों और महिलाओं की है जो कि एक-दो पीढ़ी पहले की महिलाओं के मुकाबले बहुत रफ्तार से आगे निकल गई हैं। ये महिलाएं कामकाज में भी कामयाबी की बुलंदी छू रही हैं, और जिस तरह किसी भी कामयाब और ताकतवर, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर के फैसले होते हैं, उस तरह के तमाम फैसले भी महिलाओं की हाल की पीढिय़ां लेने लगी हैं। इनमें बहुत से फैसले लोगों को अच्छे भी लग सकते हैं, और बहुत से खराब भी लग सकते हैं क्योंकि लोग महिलाओं के बारे में ऐसी कल्पना करने के आदी नहीं रहे हैं। इन गिने-चुने दशकों में महिलाओं की ताकत में जो इजाफा हुआ है, वह पूरी तरह उनकी पढ़ाई, आर्थिक आत्मनिर्भरता, आसपास बढ़ते शहरीकरण, और फोन और गाड़ी से मिले आत्मविश्वास से पैदा हुआ है। जब किसी तबके की ताकत बढ़ेगी, आत्मविश्वास बढ़ेगा, तो उस तबके के कुछ लोग मरने-मारने का आत्मविश्वास भी इस्तेमाल करते दिखने लगेंगे, और हाल के बरसों में वही हो भी रहा है।

बहुत से दकियानूसी मर्दों को यह लग सकता है कि औरत को आजादी देने का यही नतीजा होना था कि वह शादी के बाहर दूसरे प्रेम-संबंधों में पड़ रही है, अवैध कहे जाने वाले संबंध बना रही है, हिंसा कर रही है, और कत्ल की सुपारी दे रही है। लेकिन इन मर्दों को यह भी समझना चाहिए कि ये तमाम मिसालें मर्द जात ही पेश करते आई है, और चूंकि आर्थिक ताकत, सामाजिक ताकत मर्द के ही हाथ थी, इसलिए औरत सब बर्दाश्त करते आ रही थी। अब जब उसके हाथ आर्थिक ताकत लगी है, बंधी-बंधाई सामाजिक भूमिका से परे वह सोच पा रही है, और लोग क्या सोचेंगे इस तरफ से वह कुछ बेफिक्र होने लगी है, तो वह अपनी जिंदगी के अच्छे-बुरे फैसले भी लेने लगी है। हो सकता है कि पिछले 10-15 बरसों में सोशल मीडिया ने भी औरत को एक इंसान की तरह सोचने की ताकत दी है। अब एक लडक़ी या महिला अपने परिवार के मर्दों के बिना भी बाहर किसी अनजान मर्द के साथ ऑनलाईन दोस्ती कर सकती है, दुख-दर्द बांट सकती है, तारीफ पा सकती है, और बहुत से मामलों में ऑनलाईन से हटकर असल जिंदगी में भी उन लोगों से मिल सकती है। इस तरह सोशल मीडिया ने हिन्दुस्तान जैसे समाज की लड़कियों और महिलाओं को अपने बंधे हुए दायरे से बाहर के लोगों से भी जान-पहचान करने की एक संभावना दी है, और आर्थिक आत्मनिर्भरता के साथ मिली हुई ऐसी संभावना से महिला अपने कुछ बड़े फैसले भी लेने लगी है जिनमें से कुछ फैसले लोगों को खटकने वाले भी हो सकते हैं।

खबरों में जो हिंसक या नकारात्मक बातें आती हैं, उनसे भी महिला सशक्तिकरण का एक संकेत मिलता है। जिस समाज में कोई महिला किसी तरह की ताकत हासिल करती है, उसी समाज में कोई-कोई महिला ऐसी हिंसा भी कर सकती है, और अपनी शादीशुदा जिंदगी से बाहर के कोई दूसरे रिश्ते भी बना सकती है। जो महिला हर तरह से कमजोर बनाकर रखी जाती थी, वह जिंदगी के अच्छे, या बुरे, कैसे भी बड़े फैसले नहीं ले पाती थी। इसलिए किसी भी किस्म का बड़ा फैसला आज बदले हुए वक्त का संकेत है जिसमें महिलाएं पहले के मुकाबले अधिक ताकत रखती हैं। हिन्दुस्तान के अधिकतर राज्यों में पंचायत और म्युनिसिपल चुनावों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित हैं, और कई राज्यों में 50 फीसदी निर्वाचित जनप्रतिनिधि महिलाएं हैं। इनके पति और परिवार ऐसी संवैधानिक व्यवस्था में भी उनकी निर्वाचित ताकत पर काबू करने की पूरी कोशिश कर लेते हैं, लेकिन धीरे-धीरे अधिकतर महिलाएं कुछ या अधिक हद तक अपनी ताकत का इस्तेमाल करने लगी हैं। इससे भी महिलाएं अपनी जिंदगी के बारे में बेहतर और बड़े फैसले ले पा रही हैं। इन तमाम बातों के साथ-साथ हिन्दुस्तान जैसे देश में बढ़ता हुआ शहरीकरण औरत और मर्द के बीच के फासले को कुछ कम करने वाला रहता है क्योंकि गांवों के मुकाबले शहरों में औरतों को बर्दाश्त करने की संस्कृति कुछ अधिक रहती है। कुल मिलाकर महिलाओं द्वारा की गई हिंसा की खबरें भी यह बात साबित करती हैं कि महिलाएं पहले के मुकाबले अधिक ताकतवर हो रही हैं, और वे भी बराबरी से फैसले लेने की ताकत रखती हैं।

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