Latest Post

कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस की हमलावर भाषण देने के लिए विख्यात सांसद महुआ मोइत्रा ने अभी एक हंगामा खड़ा कर दिया जब उन्होंने अपने भाषण के बीच बार-बार बाधा पहुंचा रहे भाजपा के एक सांसद को हरामी कहा। महुआ मोइत्रा के संसद के भाषणों के वीडियो उनके पहले दिन से अब तक लगातार सोशल मीडिया पर बने हुए हैं, और लोग उनके भाषणों में मोदी सरकार या भाजपा की धज्जियां उड़ते देखने के आदी हो गए हैं। ऐसे में जब उन्होंने एक सांसद को हरामी कहा, तो उस पर बड़ी बहस छिड़ गई है। आमतौर पर हरामी शब्द का इस्तेमाल विवाह से परे जन्म लेने वाले बच्चे से रहता है जिसे हरामी या हरामजादा कहा जाता है। हिन्दी जुबान में इसे अवैध संतान भी कहते हैं, और ऐसे ही शब्द अंग्रेजी में भी बास्टर्ड के लिए इस्तेमाल होते हैं। लेकिन हरामी कहने के बाद भी महुआ मोइत्रा ने यह शब्द वापिस लेने से इंकार कर दिया, और कहा कि इस शब्द का जन्म अरबी भाषा के हराम से हुआ है, और इसका मतलब प्रतिबंधित, गैरकानूनी, अमान्य, या वर्जित होता है। ऐसा किसी जगह सामान या व्यक्ति के बारे में कहा जा सकता है। और हरामी शब्द हराम से ही बना हुआ है, जो कि ऐसा काम करने वाले के लिए इस्तेमाल होता है। महुआ का कहना है कि अगर लोग इसका कोई दूसरा मतलब निकालना चाहते हैं, तो वे इसके लिए आजाद हैं, उन्हें इस पर कुछ नहीं कहना है, और अगर संसद में इसे लेकर विशेषाधिकार का प्रस्ताव लाया जाता है, तो उसकी उन्हें कोई फिक्र नहीं है।

तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बैनर्जी भी कई बार अपने भाषणों में आक्रामक शब्दों के लिए घिर चुकी हैं, लेकिन महुआ मोइत्रा का यह शायद पहला ही मौका है। वे विदेशों में पढ़ी और काम कर चुकी एक कामयाब कार्पोरेट अफसर रही हैं, और वह जिंदगी छोडक़र वे बंगाल की खूनी राजनीति में ममता बैनर्जी के साथ काम करने आई हैं, और लोकसभा का चुनाव जीतने के अलावा उन्होंने संसद में अपने दमदार भाषणों से भी मौजूदगी दर्ज कराई है। वे बोलना शुरू करती हैं तो लोग सम्हलकर बैठ जाते हैं कि अब तर्कों और तथ्यों के साथ एक तेजाबी सैलाब आने वाला है। ऐसी महुआ का हरामी शब्द संसद और राजनीति से परे सोशल मीडिया पर भी बहस का सामान बना हुआ है।

महुआ मोइत्रा गैरहिन्दीभाषी हैं, लेकिन हराम या हरामी जैसे अरबी शब्द भारत की बहुत सी भाषाओं में प्रचलित हैं, जिनमें से महुआ की मातृभाषा बंगला भी एक है। अब हरामी एक बड़ा प्रचलित शब्द तो है, लेकिन हिन्दी या हिन्दुस्तानी में इसका आम इस्तेमाल अवैध कही जाने वाली संतान के लिए ही इस्तेमाल होता है। डिक्शनरी में एक-एक शब्द के बहुत से मतलब होते हैं, और ऐसे ही शब्दों को लेकर समानार्थी शब्दकोष भी बनते हैं। ऐसे में हरामी शब्द के मूल पर जाकर महुआ इसे नाजायज काम करने वाले के लिए इस्तेमाल किया हुआ बता सकती हैं, लेकिन इसका सबसे प्रचलित मतलब तो विवाह से परे पैदा बच्चे का ही होता है।

अब अगर महुआ मोइत्रा की बात को छोड़ दें, और इस शब्द पर ही बहस करें, तो किसी भी बच्चे के लिए हरामी, बास्टर्ड, नाजायज, या अवैध संतान जैसे शब्दों का इस्तेमाल अपने आपमें हराम होना चाहिए क्योंकि कोई भी बच्चे जो धरती पर अपनी मर्जी से नहीं आए हैं, जिनके जन्म के लिए दूसरे लोग जिम्मेदार हैं, उन्हें हरामी या नाजायज कैसे कहा जा सकता है? ऐसे बच्चे को पैदा करने वाले लोगों को हरामी कहा जा सकता है क्योंकि उन्होंने हराम कहे जाने वाले एक काम को किया है, लेकिन बच्चे के जन्म में उसकी अपनी तो कोई मर्जी रहती नहीं है, इसलिए उसे कोई गाली देना अपने आपमें एक जुर्म रहना चाहिए। हम पहले भी भाषा की बेइंसाफी पर लिखते हुए इस बारे में इसी पेज पर लिख चुके हैं, लेकिन उसे दुहराने की जरूरत है। शादी से परे किसी बच्चे को पैदा करना वैसे भी कोई जुर्म नहीं रहना चाहिए, इसे दुनिया के सभ्य लोकतंत्रों में पूरी तरह से सामाजिक प्रतिष्ठा मिली हुई है, और हिन्दुस्तान जैसे देश में भी कानून ऐेसे किसी भी जन्म को गलत नहीं मानता है। ऐसे में बच्चे पैदा करने के लिए शादी जरूरी मानने वाली सामाजिक सोच अपने आपमें नाजायज है, न कि ऐसे पैदा हुए बच्चे।

लेकिन महुआ मोइत्रा की बात पर अगर लौटें तो संसद में अपने धुंआधार तथ्यों और तर्कों के बाद उन्हें आपा खोकर ऐसी गाली देने की जरूरत नहीं थी। और लोग सोशल मीडिया पर इसे उनकी तर्कों की हार के बराबर मान रहे हैं। बात भी सही है, कि आवाज तेज होना, और गालियों का इस्तेमाल करना, ये दोनों ही बातें तर्कों की हार का सुबूत होती हैं। फिर बहुत से लोगों का यह भी तर्क है कि एक महिला होने के नाते उन्हें ऐसे बच्चों के लिए इस्तेमाल होने वाली इस गाली से भी बचना चाहिए था जो कि अपने आपमें इन बच्चों के साथ बहुत बड़ी बेइंसाफी है। कुछ शब्द अपने किसी भी स्रोत से परे, बहुत साफ-साफ प्रचलित अर्थों वाले होते हैं, और उन अर्थों को अनदेखा करना भी ठीक नहीं है।

हम संसद की जुबान से सैकड़ों शब्दों को हटा दिए जाने के हिमायती नहीं हैं, हराम शब्द से ही जुड़े हुए, वहीं से निकले हुए हरामखोर शब्द की हम वकालत करते हैं जिसका साफ-साफ मतलब है कि जिसे जिस काम का भुगतान मिल रहा है, वह उस काम को न करे, हराम का खाए। ऐसी बात खुद संसद के संदर्भ में बार-बार इस गाली के बिना की जाती है कि वहां पर लोग काम नहीं करते हैं, पूरी तनख्वाह पाते हैं, पूरे भत्ते पाते हैं, और रियायती खाना पाते हैं। अब यह संसद के अपने ऊपर है कि वह देखे कि इस तरह की गाली उस पर लागू होती है या नहीं। लेकिन महुआ मोइत्रा की गाली दुनिया भर के अनगिनत बच्चों पर लागू होती है, और किसी भी समझदार, जिम्मेदार, सरोकारी, और इंसाफपसंद इंसान को ऐसी नाजायज गाली देने से बचना चाहिए। महुआ मोइत्रा के शुभचिंतकों ने उन्हें सोशल मीडिया पर ही सलाह दी है कि वे इस गाली को वापिस लें, इसके लिए माफी मांगें, और अपनी इज्जत बरकरार रहने दें।

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *