नारी सम्मान की रक्षा को लेकर मीडिया दरबार ने अपने पाठकों से उनके विचार मांगे हैं, जिन्हें श्रंखलाबध्द रूप से बहस श्रेणी में प्रकाशित किया जा रहा है. इसी के तहत फेसबुक से दिलीप सिकरवार ने अपने विचार भेजें है. जिन्हें जस का तस नीचे प्रकाशित किया जा रहा है. यह लेखक के अपने निजी विचार हैं तथा मीडिया दरबार इनके विरोधाभासों का कत्तई जिम्मेवार नहीं है.
-फेसबुक से दिलीप सिकरवार लिखते हैं..
नारी शक्ति की रक्षा कितनी हो रही है? यह सवाल आज के समय मे ठीक वैसा गूंज रहा है जिस तरह से भ्रष्टाचार। मेरे एक अजीज मित्र से पूछा कि यार, भ्रष्टाचार पर बहस और कितनी होना चाहिये? उसका जवाब था- जितना समय आपके पास हो। समय है तो किसी भी मुद्दे पर लंबी तान दी जा सकती है। कहने का मतलब गंभीर मसले केवल टाइम खपत का हिस्सा बनकर रह गये हैं। ठीक वैसे ही जिस तरह आज के समय मे महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है।
यह देश विदेशों मे इसलिये पहचाना जाता है कि भारत मे नारी की पूजा होती है। कहावतें कहते हमारे पूर्वज नही अघाते। यत्र नारी पूज्यंते, रम्यतें तत्र देवता। नारी की पूजा वाला देश तो भारत ही है। यहां मां के रूप मे नारी पूजी जाती है तो बहन के रूप मे मानी जाती है। पत्नी कभी सावित्री बनकर यमराज से पतिदेव के प्राण वापस करा लाती है तो मां काली बनकर दुश्मनों का संहार कर देती है। यह देश कभी भी नारी के अपमान का देश नही रहा।
आज वो बात नही दिखती। भारत मे नारी की दुर्दशा पर विश्व भी मानो शर्मिंदा है। विदेशी यहां आते हैं और नारी का अपमान देखते हैं तो उन्हे भी आश्चर्य होता है। नारी का अपमान क्यों हो रहा है? सवाल यह भी लाख टके का है। मुझे एक बलात्कार के केस मे माननीय न्यायालय का फैसला याद आ रहा है जिसमे यह साफ किया गया था कि घटना दुखद है किन्तु इसमे महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले कपडे स्थान रखते हैं जो अधनंगे होते हैं। आशय यह कि नारी शक्ति वाकई पूजनीय है किन्तु वह स्वयं का महत्व पहचाने। हमारे यहां का कल्चर तेजी से चेंज हो रहा है। इसी बदलाव का पर्याय बन रहे है नारी के प्रति अपराध। सुधार जरूरी है।