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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सर्वमित्रा सुरजन॥

गुजरात में 20 साल पहले जो आग भड़की थी, उस पर दिल्ली की रोटी सेंकने में मोदीजी सफल हो गए। अब देश में फिर एक बार वही प्रयोग शुरु हो चुका है। पर्दे पर तो विकास की तस्वीरें हैं। जी-20 के कारण दुनिया में दिखाने के लिए जो साज-सज्जा चाहिए, वो सब की जा रही है। लेकिन पर्दे के पीछे के हालात भी अब छेदों से चुगली करने लगे हैं।

सभी देशवासियों को मुबारक हो कि जिन उम्मीदों के साथ श्रीमान नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया गया था, एक बार नहीं, दो-दो बार उन्हें अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सत्ता सौंपी गई थी, वो अब पूरे हो गए हैं। गुजरात मॉडल पूरे देश में लागू हो चुका है। बीते 9 बरसों में बीच-बीच में इसके कई उदाहरण सामने आए, लेकिन पूरी तरह से यकीन नहीं हो रहा था कि हम 2002 वाले गुजरात को दोहराता देख पाएंगे या नहीं। अब मणिपुर को देखकर यह भरम भी जाता रहा। बिल्किस बानो आज भी अपने जख्मों के साथ जी रही हैं, उनका साथ देने के लिए अब मणिपुर की महिलाएं भी हैं।

कितनों के साथ बलात्कार हुआ, कितनों को उनके पतियों ने कुकी या मैतेई होने के कारण छोड़ दिया, कितनी कुकी महिलाओं को मैतेई महिलाओं ने प्रताड़ित करवाया, मणिपुर में अपने घरों को छोड़ कर शरणार्थी बना दिए गए लोग किन हालात में रह रहे हैं, बच्चे कैसे विस्थापन, हिंसा और भयानक अपराधों के सदमे को सह रहे हैं, उनका भविष्य किस तरह का बनेगा, वो कब तक सामान्य तरह से शिक्षा पाने और मनोरंजन, खेलने-कूदने के अपने अधिकारों को हासिल कर पाएंगे, मणिपुर में बिगड़े हालात के कारण अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ा है, क्या वो लॉकडाउन और नोटबंदी के असर से भी गंभीर होगा, वहां आम इंसान जब पशुओं से गयी-गुजरी दशा में रह रहे हैं तो पशु-पक्षियों की हालत क्या हो रही होगी, ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब पाने की उम्मीद अब छोड़ ही देनी चाहिए। जब मोदीजी अपने संवैधानिक दायित्व यानी संसद में आकर जवाब देने की जिम्मेदारी पूरी नहीं कर रहे हैं, तो फिर ऐसे सवालों के जवाब तैयार करने की जहमत उनकी सरकार में कोई क्यों उठाएगा। वैसे कयास लग रहे हैं कि विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देने मोदीजी संसद में आएंगे ही, लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए यह कहना कठिन है कि वे मणिपुर पर अपनी जवाबदेही मानते हुए जवाब देंगे। बेशक संख्याबल के कारण अविश्वास प्रस्ताव का उनकी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। बिगाड़ के डर से उनके सांसद भी ईमान की बात नहीं कहेंगे। अगर मोदीजी फिर एक गंभीर मुद्दे को शाब्दिक जाल में उलझाकर मणिपुर के लिए नेहरूजी और बाद की सरकारों को दोषी ठहरा दें, तो इस पर आश्चर्य भी नहीं होगा।

लेकिन इस गैरजिम्मेदारी के बावजूद एक और सवाल इस सरकार से पूछा जाना चाहिए कि मान लीजिए मणिपुर में किसी तरह शांति बहाली हो जाए, तो क्या संदेह की जो लकीर दो समुदायों के बीच स्थायी निशान की तरह खींच दी गई है, क्या वो किसी तरह मिट सकेगी। क्योंकि अगर धुंधली भी बनी रही तो तय जानिए कि भविष्य में फिर राजनैतिक, आर्थिक स्वार्थ के लिए उसे गाढ़ा बना दिया जाएगा। गुजरात मॉडल को ही देख लीजिए, अब वहां ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम और वैष्णव जन तो का सुमधुर गान नहीं होता। वहां जय श्रीराम का नारा ही बुलंद है और अल्पसंख्यकों को उनके कपड़ों से लोग पहचानने लगे हैं। गुजरात में 20 साल पहले जो आग भड़की थी, उस पर दिल्ली की रोटी सेंकने में मोदीजी सफल हो गए। अब देश में फिर एक बार वही प्रयोग शुरु हो चुका है। पर्दे पर तो विकास की तस्वीरें हैं। जी-20 के कारण दुनिया में दिखाने के लिए जो साज-सज्जा चाहिए, वो सब की जा रही है।

लेकिन पर्दे के पीछे के हालात भी अब छेदों से चुगली करने लगे हैं। मणिपुर तो उत्तरपूर्व में था, लिहाजा वहां की खबरों को यथासंभव दबाया गया। वो तो वायरल वीडियो के कारण परेशानी खड़ी हो गई। मोदी जी और उनके मंत्रियों ने इस पर भी राजस्थान, छत्तीसगढ़ करना चाहा। सर्वोच्च अदालत में भी वकील बांसुरी स्वराज ने यही दलील दी। प्रसंगवश बता दें कि बांसुरी, दिवंगत भाजपा नेता सुषमा स्वराज की बेटी हैं। विदेश मंत्री रहने के दौरान सुषमाजी अक्सर एक ट्वीट पर परदेस में रह रहे लोगों की मदद करती नजर आईं। अभी वो होतीं तो क्या मणिपुर पर चुप रहतीं या स्मृति ईरानी की तरह चीख-चीख कर कांग्रेस से जवाब मांगतीं या मोदीजी को राजधर्म याद दिलातीं, पता नहीं। लेकिन उनकी बेटी ने अदालत में मोदीजी की तरह ही दलील पेश की कि राजस्थान और प.बंगाल में भी ऐसा ही हुआ है। इस पर प्रधान न्यायाधीश डी वाय चंद्रचूड़ ने कहा कि मणिपुर में जो कुछ हुआ उसे हम यह कहकर उचित नहीं ठहरा सकते कि ऐसा और राज्यों में भी हुआ। क्या आप कह रहे हैं कि सभी महिलाओं की रक्षा करें या किसी की भी रक्षा न करें?

निश्चित ही यह जवाब मोदीजी के उस 36 सेंकड के क्रोध और दुख का सटीक जवाब है, जो उन्होंने संसद के बाहर प्रकट किया था। मोदीजी का अपनी निद्रा पर अंकुश है, ये बात तो वे बतला चुके हैं। उन्हें तीन-चार घंटों से अधिक की नींद नहीं चाहिए। लेकिन उनका अपने दुख और क्रोध पर भी नियंत्रण है, ये बात कमाल की है। लेकिन ये नियंत्रण किसी क्रिकेटर की उंगली पर लगी चोट के वक्त कायम नहीं रहता। तब वे द्रवित होकर ट्वीट कर बैठते हैं। मगर मणिपुर जैसी घटनाओं के लिए 36 सेंकड ही काफी हैं। इससे ज्यादा का वक्त लगाएंगे तो चुनाव प्रचार के लिए वक्त कैसे निकालेंगे। वैसे भी गुजरात मॉडल अकेले मणिपुर तक तो सिमटा नहीं रहेगा। देखिए, हरियाणा में ऐसी हिंसा भड़की कि यहां भी इंटरनेट प्रतिबंधित करना पड़ा, धारा 144 का लगना तो अब ऐसा हो गया है जैसे मामूली सर्दी-जुकाम में लोग डाक्टर से बिना पूछे ही पैरासिटामॉल खा लेते हैं। और स्कूल-कॉलेज भी हिंसा के कारण बंद हो गए। तो यहां भी कोई फिक्र की बात नहीं है।

आखिर सरकार क्यों चाहेगी कि बच्चे पढ़ें और आगे बढ़ें। ऐसा हुआ तो फिर नौकरियों के सवाल उठेंगे, अधिकारों को लेकर जागरुकता फैलेगी। अभी तो व्हाट्सऐप यूनविर्सिटी का जो ज्ञान मिल रहा है, वही घुट्टी की तरह घोलकर पी लें, यही सरकार के हित में है। क्योंकि गुजरात मॉडल इसी से कायम रहेगा। इंटरनेट बंद होने के कारण व्हाट्सऐप न चले तो कोई बात नहीं, तब तक टीवी चैनल इस जिम्मेदारी को संभाल लेंगे। 9 सालों में देश में जहरीले उत्पाद एक अकेले ने तैयार नहीं किए, पूरी फौज उसमें सेनापति के साथ लगी हुई थी। जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस में आरपीएफ कांस्टेबल चेतन कुमार ने अपने वरिष्ठ अधिकारी समेत चलती ट्रेन में चार लोगों को जिस तरह मार गिराया, वो इस जहरीले उत्पाद का एक छोटा सा उदाहरण ही है। चेतन नाम हिंदू है, इसलिए बहुत से लोग इसे आतंकी घटना की तरह पेश नहीं कर रहे हैं। क्योंकि ऐसे लोगों की नजरों में सारे आतंकवादी एक खास धर्म और वेशभूषा के ही होते हैं।

मान लें कि चेतन की जगह कोई चंगेज़ ऐसी हिंसा करता, तब तो देश पर बड़ा आतंकी हमला, जैसे शीर्षकों के साथ मीडिया रंगा-पुता नजर आता। उसके पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया, ईराक के संबंध निकल आते। मोदीजी तब 36 सेंकड की जगह शायद 36 मिनट की प्रतिक्रिया देते और मुनासिब समझते तो अगले चुनावों तक इस घटना को भुनाते हुए सर्जिकल स्ट्राइक, घर में घुसकर तक मारने जैसे ऐलान कर चुके होते। मगर अभी तो उन्होंने शायद 3 सेंकड का अफसोस भी मरने वालों के लिए जाहिर नहीं किया, दुख और क्रोध तो दूर की बात है। मोदीजी को ये तो याद रखना चाहिए कि चेतन कुमार ने उनका नाम लेकर चार लोगों को मार दिया, कम से कम इस नाते ही बयान दे देते कि मेरे नाम का ऐसा दुरुपयोग न हो। देश में तो जगह-जगह राइफलधारी सुरक्षाकर्मी तैनात नजर आते हैं, कब कोई मोदीजी के प्रभाव में निर्दोषों की जान ले ले, कौन जानता है।

1 तारीख को मोदीजी पुणे में लोकमान्य तिलक पुरस्कार से सम्मानित हुए। तिलक ने नारा दिया था स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा। मोदीजी भी गुजरात मॉडल को शायद जन्मसिद्ध अधिकार मानते हुए इसे पूरे देश में लागू करने पर आमादा हैं। जनता तय करे कि उसे ये मॉडल लेना है या नहीं।

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