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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार।।

यूक्रेन पर हमला करने के बाद अब रूस बड़ी अजीब नौबतों से गुजर रहा है। यूक्रेन पर फतह कुछ हफ्तों का मामला लग रही थी, लेकिन अब उसे सवा साल हो चुका है, और रूसी सेना ने बहुत जख्म खाए हैं, और बड़ी शिकस्त भी झेली है। दुनिया की एक महाशक्ति पड़ोस के छोटे से देश को निपटा नहीं पाई, और रूस के खिलाफ यूक्रेन के साथ सैनिक गठबंधन नाटो के देश जिस हद तक एक हो गए हैं, उसने रूस के साथ-साथ खुद नाटो देशों को भी चौंका दिया है। लोगों को यह लग रहा है कि यूक्रेन के बाद अगली बारी किसी भी नाटो देश की हो सकती है, और उस हालत में गठबंधन के संविधान के मुताबिक तमाम देशों को रूस के खिलाफ टूट पडऩा होगा। इसलिए आज लोग यूक्रेन का साथ देकर रूस के खिलाफ एक प्रॉक्सी लड़ाई भी लड़ रहे हैं, ताकि रूस खोखला होते चले, और नाटो देशों में ताबूत न लौटें। ऐसी नौबत के बीच अभी कुछ अरसा पहले जब रूस के लिए यूक्रेन में जंग लड़ता भाड़े पर सैनिक तैनात करने वाला एक संगठन वाग्नर ग्रुप रूसी फौजी जनरलों के रवैये के खिलाफ बगावत पर उतर आया, और उसने एक रूसी शहर पर कब्जा कर लिया, और राजधानी मास्को की तरफ फौजी कूच कर दिया, तो यह रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के लिए बड़ी शर्मिंदगी की बात थी। कुछ रहस्यमय वजहों से वाग्नर की बगावत एक दिन से ज्यादा नहीं चली, और उसी दिन से यह माना जाने लगा था कि अब इस मिलिट्री ग्रुप का मुखिया येवेगनी प्रिगोझिन एक चलती-फिरती लाश है। वह जिंदा जरूर था, लेकिन पुतिन के विरोधियों की तरह उसकी जिंदगी के दिन भी बहुत गिने-चुने माने जा रहे थे। और हुआ भी वही, अभी वह एक निजी विमान में अपने फौजी गिरोह के और लीडरों के साथ मास्को आ रहा था, और पहुंचने के ठीक पहले एक विस्फोट में विमान के तमाम दस लोग खत्म हो गए। रूस और बाकी दुनिया में जानकार लोग इसे पुतिन स्टाइल की सजा करार दे रहे हैं। लेकिन अभी एक सवाल उठ खड़ा हुआ है कि वाग्नर ग्रुप के सैनिक न सिर्फ यूक्रेन के मोर्चे पर हैं, बल्कि वे अफ्रीका के कई देशों में वहां की सरकारों की फौज को मदद करने के लिए और बागियों के खिलाफ लडऩे के लिए भाड़े पर चल रहे हैं, और खदानों का कारोबार भी कर रहे हैं। अब खबर है कि पुतिन ने वाग्नर ग्रुप के सभी सैनिकों को रूस के प्रति वफादारी के हलफनामे पर दस्तखत करने कहा है, क्योंकि इनमें से बहुत से लोग अपने मुखिया प्रिगोझिन की संदिग्ध मौत का बदला लेने की धमकी दे रहे थे।

हमारी रूस के घरेलू मामलों में इतनी दिलचस्पी नहीं हैं कि हम उस पर यहां लिखते, लेकिन हमारा हमेशा यह मानना रहता है कि दुनिया के देशों को एक-दूसरे से सीखना चाहिए। हर देश के हालात अलग हो सकते हैं, लेकिन बहुत से देशों के सबक दूसरों के लिए काम आ सकते हैं। ऐसा ही कुछ रूसी राष्ट्रपति और भाड़े की इस फौज के बीच की खतरनाक नौबत को लेकर है। पुतिन ने अपने करीबी समझे जाने वाले प्रिगोझिन को रूसी सरकार के इतने कारोबार दिए थे कि उसे पुतिन का एक सबसे करीबी व्यक्ति माना जा रहा था। लेकिन रूस की जमीन पर काम करते हुए, रूस की जमीन से परे दूसरे देशों में फौजी और मवाली सर्विस देते हुए वाग्नर अपने आपमें एक अलग किस्म का कानून बन गया था, और वह पुतिन के काबू से परे भी बहुत सी चीजों में शामिल था। ऐसे में यूक्रेन के मोर्चे पर जब उसका रूसी फौजी जनरलों से जंग की रसद और सामानों को लेकर झगड़ा हुआ, तो वह रूसी सरकार पर ही चढ़ बैठा था। यह बात लोगों को याद रखनी चाहिए कि संविधान से परे जब लोग गैरकानूनी संगठन खड़े करते हैं, तो वे संगठन किसी दिन बनाने वाले के लिए आत्मघाती भी साबित हो सकते हैं। ऐसे संगठन चाहे फौजी हों, चाहे साम्प्रदायिक हों, चाहे एक वक्त के उत्तर भारत के जातिवादी संगठन हों जो कि अलग-अलग वर्गों की सेनाओं की तरह काम करते थे, और परले दर्जे का खूनखराबा करते थे। जो लोग कानून से परे जाकर ऐसी ताकतें खड़ी करते हैं, वे ऐसी ताकतों के हाथ मरने का खतरा भी उठाते हैं। हमने बगल के पाकिस्तान में भी देखा है कि वहां जिस तरह से हिन्दुस्तान के खिलाफ खड़ा करने के लिए फौज को अरातकता की हद तक बढ़ावा दिया गया, उससे पाकिस्तान में कई बार फौजी तानाशाही आई, और आज भी माना जाता है कि वहां की निर्वाचित नागरिक सरकार फौज की पसंद-नापसंद पर आती-जाती है। दुनिया के अलग-अलग देशों में संविधान से परे के ऐसे हथियारबंद संगठन कब अपने ही बनाने वाले लोगों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं, इसका अंदाज भी नहीं लगता। अमरीका का तजुर्बा यह है कि जिस सीआईए को अमरीका ने दुनिया के दूसरे देशों में गैरकानूनी तरीके से सरकारें पलटने के लिए खड़ा किया, और इस्तेमाल किया, उस सीआईए ने घरेलू राजनीति में भी दखल देना शुरू कर दिया था। हमने भारत में, और यहां के कई राज्यों में देखा है कि जब किसी एजेंसी को, या कुछ अफसरों को संविधान से परे के अघोषित हक देकर इस्तेमाल करना शुरू किया जाता है, तो ये संगठन और अफसर अराजक होने लगते हैं, और अपने को ताकत देने वाले हाथों को ही कैद करने की हद तक चले जाते हैं। इसलिए संविधान के तहत काम करने वाली संस्थाएं, और कानूनी दायरे में रखे गए अफसर हमेशा ही अधिक महफूज होते हैं क्योंकि वे जवाबदेह होते हैं।

आज हिन्दुस्तान में जिस तरह हिंसक साम्प्रदायिक संगठनों को सत्ता की राजनीति में गैरकानूनी हद तक बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे लोकतंत्र तो खतरे में आ ही चुका है, उनके आज के आका भी कब उनके निशाने पर आ जाएंगे, यह साफ नहीं है। हिन्दुस्तान में ही मिजोरम एक ऐसा राज्य था जहां तकरीबन तमाम आबादी ईसाई है, और वहां पर यंग मिजो एसोसिएशन नाम का एक संगठन धार्मिक आधार पर बना था, और वह राज्य में नशाबंदी लागू करने जैसे कई कामों में सरकार की मदद करता था। लेकिन वह कानून के प्रति जवाबदेह नहीं था क्योंकि उसका कोई कानूनी दर्जा नहीं था, नतीजा यह हुआ था कि वह चर्च के मातहत काम करते हुए पूरी तरह अराजक हो गया था, और सार्वजनिक हिंसा के काम करने लगा था, नैतिकता के पैमाने लागू करने लगा था, और चौराहों के खम्भों पर लोगों को बांधकर पीटने भी लगा था। उससे सरकार खुश थी कि उसकी वजह से राज्य में नशाबंदी कामयाबी से लागू हो रही है, लेकिन ऐसे अराजक संगठन खुद अपनी सरकार के लिए सरदर्द और खतरा बन जाते हैं।

पुतिन और वाग्नर ग्रुप का यह तजुर्बा यह साफ करता है कि सरकारों को अराजक और असंवैधानिक तौर-तरीकों से बचना चाहिए, चाहे यह रूस की तरह की तानाशाही वाली व्यवस्था हो, या फिर पश्चिमी लोकतंत्र हों, या फिर एक धर्मराज की तरफ बढ़ता हुआ हिन्दुस्तान हो।

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