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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

आधारहीन होकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस पार्टी, उनके नेताओं एवं सरकारों की जिस अशोभनीय तरीके से आलोचना करते हैं, उसकी कलई अब धीरे-धीरे खुलने लगी है। चाहे भ्रष्टाचार हो या वंशवाद का सन्दर्भ अथवा सरकार के कामकाज से सम्बन्धित कोई तथ्य हो- अब मोदी, उनकी सरकार एवं भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपनाये जाने वाले दोहरे मानदंडों वाले व्यवहार का भी पर्दाफाश हो गया है। सच तो यह है कि मोदी के दूसरे कार्यकाल के समाप्त होते न होते उनके झूठ व प्रपंच पूरी तरह से जगजाहिर हो गये हैं।

विकास के मुद्दों पर तो मोदी यही रटी-रटायी बात करते थे कि पिछले 70 वर्षों में कुछ भी नहीं हुआ है, वहीं वे यह बताते थे कि उनकी पूर्ववर्ती डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार (दो कार्यकाल) पूरी तरह से कठपुतली सरकार थी जो सोनिया गांधी के इशारे पर काम करती थी। वे हाल के चुनाव प्रचार तक यही कहते रहे हैं कि मनमोहन सिंह का रिमोट मैडम (आशय- सोनिया गांधी) के हाथ में रहता था। मोदी का यह भी कहना रहा है कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (नेशनल एडवाइज़री काउंसिल- एनएसी) दूसरा पॉवर सेंटर बन गया था जिसका संचालन सोनिया गांधी करती थीं।

इस मुद्दे पर सोनिया गांधी ने अब जो जवाब दिया है वह लोगों के लिये आंखें खोल देने वाला तो है ही, मोदी एवं उनके जैसों को निरूत्तर करने के लिये भी काफी होना चाहिये, बशर्ते उनमें सच्चाई का सामना करने का साहस तथा नैतिकता का तकाज़ा हो। अपनी आने वाली एक किताब में सोनिया गांधी ने इस पर स्पष्टीकरण तो दिया ही है, मोदी सरकार पर गम्भीर आरोप जड़ दिये हैं। उन्होंने कहा है कि उन पर मनमोहन सिंह सरकार को नियंत्रित करने का आरोप लगाने वाले मोदी की अपनी सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आदेशों के अनुसार काम करती है जो न विश्वसनीय है न निर्वाचित। उन्होंने इससे इंकार किया कि एनएसी कोई दूसरा शक्ति केन्द्र था। उनके अनुसार यह लोगों के अधिकारों व उनके सशक्तिकरण सम्बन्धी सुझाव देती है।

किताब में ‘एन्हैंसिंग पीपल्स राइट एंड फ्रीडम- एनएसी रिविजिटेड’ शीर्षक वाले अध्याय में उन्होंने कहा है कि यह विडम्बना है कि एनएसी को अपमानित किया गया है जबकि मौजूदा एनडीए सरकार अपनी नीतियों को लेकर आरएसएस से निर्देश लेती है। उन्होंने आगे बताया है कि 2015 में केन्द्रीय मंत्रियों ने अपनी नीति का पूरा खाका उनके सामने प्रस्तुत किया था जिसे स्वयं मोदी ने ‘सरकार को मार्गदर्शन’ का नाम दिया था पर ये लागू नहीं किये गये।

सोनिया गांधी ने साफ किया है कि एनएसी का काम केवल सुझाव देना था। अमल करना या न करना प्रधानमंत्री व सरकार के विवेक पर निर्भर था। उन्होंने याद दिलाया कि जब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों के लिये अलग से बजट बनाने और गैर संगठित क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिये भी सामाजिक सुरक्षा का कार्यक्रम बनाने का सुझाव दिया गया था तो वे फैसले नहीं माने गये। यूपीए की अध्यक्ष एवं पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष का संकेत प्रधानमंत्री के विवेकाधिकार की ओर ध्यान दिलाना था जो शक्ति केन्द्र नहीं है। वह केवल पीएम के सलाहकार निकाय के रूप में कार्यरत थी। सोनिया का यह कहना भी बिलकुल सही है कि एनएसी की आलोचना इसलिये की जा रही है क्योंकि उसकी अध्यक्ष व कांग्रेस की अध्यक्ष वे ही थीं। उन्होंने लेख बताया कि केवल बाजार ही लोगों के विकास को सुनिश्चित नहीं कर सकता। इसके लिये लोगों के अधिकारों को अक्षुण्ण बनाये रखना एवं उनमें इज़ाफ़ा करना भी आवश्यक होता है जो करने की कोशिश उनके रहते परिषद द्वारा की गई थी।

सोनिया का लेख बतलाता है कि मोदी की समझ न केवल संकीर्ण व पूर्वाग्रह से ग्रस्त है वरना वह दोषपूर्ण भी है। मनमोहन निश्चित रूप से सोनिया की ही पसंद के व्यक्ति थे क्योंकि उन्होंने पीएम बनने से इंकार कर दिया था, लेकिन यह भी सच है कि उन्होंने पूरी आज़ादी से काम किया था। तत्कालीन एनएसी ने भी बेहतरीन सुझाव देते हुए भारत की खुशहाली में बड़ा योगदान दिया था। मनमोहन सिंह के अनेक कार्यों की रूपरेखा पर पहले उनकी सलाहकार परिषद में भी विचार-विमर्श हुआ और उसे मनमोहन सिंह जैसे कुशाग्र व्यक्ति द्वारा परिमार्जित कर लागू किया गया था। इसके बेहतरीन नतीजे भी प्राप्त हुए थे। एनएसी की सलाह पर सरकार ने सूचना का अधिकार लागू किया जिससे लोगों की पहुंच आवश्यक जानकारियों तक हो सकी है। इससे सरकार की जवाबदेही बढ़ी तथा लोक सेवा की प्रणाली अधिक सक्रिय हुई है।

भोजन के अधिकार ने बड़े पैमाने पर लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला। कुपोषण की समस्या से भी एक बड़ी आबादी को छुटकारा मिल सका था। शिक्षा के अधिकार ने साधनविहीन परिवार के बच्चों को भी गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने वाले परन्तु महंगे स्कूलों में प्रवेश दिलाया ताकि सामाजिक न्याय का मार्ग प्रशस्त हो।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा) को नहीं भुलाया जा सकता, जिसने रोजगार को अधिकार के साथ जोड़ा है। जब ग्रामीणों के पास जीविकोपार्जन के साधन नहीं रहते, उनके द्वारा मांग करने पर रोजगार देने के लिये शासन को बाध्य करने वाला कानून इसी एनएसी के जरिये आया था। इसने देश की एक बड़ी आबादी को कोरोना काल में भूखे मरने से बचाया था। इसका महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि संसद में इसे कांग्रेस सरकार की ‘विफलता का स्मारक’ बतलाने वाले मोदी की पार्टी इसके तहत हुए कामों का बखान अपने चुनावी घोषणापत्र में करती दिखाई दी। सोनिया का लेख मोदी को बेनकाब करता है।

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