-अरविन्द कुमार सिंह||
राजनीति समय और संभावनाओं का खेल है. बीते तीन दशकों से यही देख रहा हूं कि बहुत से ऐसे लोग केंद्रीय सत्ता में आ जाते हैं जो इस लायक भी नहीं होते कि जिला पंचायत के सदस्य बन सकें. लेकिन वे देश चलाने लगते हैं.
अटलजी, अडवाणीजी और जोशीजी तो भाजपा के पर्याय बन गए थे. अटलजी तो वैसे भी परिदृश्य के बाहर हैं लेकिन सम्मान बस उनको पार्टी ने उनको तमाम अहम पदो पर बनाए रखा था. अब वे बाहर हो रहे हैं. इसके पहले कांग्रेस में पीवी नरसिंह राव बाहर हुए, नारायण दत्त तिवारी और अर्जुन सिंह बाहर हुए, सीताराम केसरी निर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष होने के बावजूद बाहर हुए, चौधरी देवीलाल ने जनता दल खड़ा किया था, वे बेइज्जती से बाहर हुए. कल्याण सिंह जैसे नेता का जो फजीता हुआ उससे उनके करीबी लोग ही वाकिफ हैं. इसी नाते वे मत्था नवा कर राजभवन की देहरी में विश्राम करने चले गए.
राजनीति में भीतर और बाहर आने जाने का खेल चलता रहता है. ये लोग तो अभी भी पार्टी के भीतर ही हैं. ये संकेतक हैं कि इन बुजुर्ग नेताओं को समय रहते अपना रास्ता खुद तय कर लेना चाहिए.राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र तो है नहीं इसी नाते तमाम दूसरे और तीसरे नंबर के नेता यही इंतजार करते रहते हैं कि पहली पीढ़ी के लोग भगवान के प्यारे हों तो उनको जगह मिले. इस नाते जो हो रहा है वह ऐसा कुछ नहीं है जिसे अनहोनी कही जाये. जो होता आया है यह उसी का विस्तार भर है.
(वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द कुमार सिंह की फेसबुक वाल से)