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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

इस साल 15 अगस्त को लालकिले से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ‘हमारे आचरण में बदलाव आ गया है। हम कई बार महिलाओं का अपमान करते हैं। क्या हम अपने व्यवहार में इससे छुटकारा पाने का संकल्प ले सकते हैं।’ श्री मोदी प्रधानमंत्री होने के नाते आचरण में सुधार के इस तरह के आह्वान कर सकते हैं, लेकिन यह मुद्दा विचारणीय है कि उनकी निगाह में किस तरह का व्यवहार अपमान की श्रेणी में आता है। किन महिलाओं के अपमान से श्री मोदी को ठेस पहुंची थी। ऐसा कौन सा बड़ा मामला 15 अगस्त के आसपास हुआ था, जिसकी वजह से उन्हें नारी शक्ति के सम्मान की बात अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में करनी पड़ी।

क्या उनके इस आह्वान से देश में महिलाओं का अपमान होना रुक गया। क्या बेटियां सुरक्षित हो पाईं। अगर उनका आह्वान असरदार रहा तो वह धरातल पर क्यों नहीं नजर आता। और अगर उसका कोई असर नहीं हुआ तो क्या मोदीजी को एक मजबूत प्रधानमंत्री कहा जा सकता है। क्योंकि मजबूत नेता के एक इशारे पर जनता उसके पीछे चलने लगती है।

जैसे गांधीजी ने कहा अहिंसा का पालन करो, तो लोगों ने वैसा ही किया। शास्त्रीजी ने खाद्यान्न संकट के दौर में एक दिन, एक वक्त के उपवास की बात कही तो लाखों लोगों ने उसे सहर्ष जीवन में उतार लिया। तो फिर मोदीजी का कहना मानकर देश महिलाओं का सम्मान करना क्यों नहीं सीख जाता। कम से कम भाजपा नेताओं और भाजपा शासित राज्यों में तो ऐसा नजर आना ही चाहिए था। लेकिन अभी हालात इसके विपरीत दिख रहे हैं।

जब 15 अगस्त को प्रधानमंत्री महिलाओं के सम्मान की बात कर रहे थे। उस वक्त उनके गृह राज्य गुजरात में, उनके मुख्यमंत्रित्व काल में हुए गोधरा कांड के दौरान सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई बिलकिस बानो के 11 दोषियों को जेल से रिहा करने की तैयारी हो रही थी। अगले दिन देश ने देखा कि हत्यारे और बलात्कारी जेल से खुशी-खुशी बाहर निकल रहे हैं, उनका तिलक लगाकर, माला पहनाकर स्वागत किया जा रहा है। बहुत से लोग हैरान और दुखी थे कि क्या ऐसे दिन देखने के लिए लाखों लोगों ने कुर्बानी दी है।

क्या आजादी का अमृत महोत्सव मनाता देश इतना संवेदनहीन और स्वार्थी हो चुका है कि भयंकर अपराध करने वालों का सत्कार किया जा रहा है, सिर्फ इसलिए कि वे सब बहुसंख्यक हिंदू हैं और जिस पर उन्होंने अत्याचार किया, वह एक मुस्लिम महिला है। अपने अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचवाने के लिए बिलकिस बानो और उनके पति ने कई बरसों तक संघर्ष किया। इन लोगों ने अपने कुनबे को अपनी आंखों के सामने मरते देखा, अपने ही गांव के लोगों द्वारा बिलकिस बलात्कार का शिकार बनीं। कहीं न कहीं इंसाफ पाने की उम्मीद एक लौ की तरह उनके मन में थरथरा रही होगी, तभी वे न केवल जिंदा रहीं, बल्कि सारी जीवटता के साथ इंसाफ की लड़ाई भी लड़ी। लेकिन 15 अगस्त 2022 को वे भी इस देश में किए जा रहे इंसाफ से घोर निराश दिखीं।

बिलकिस और उनका लड़ाई में साथ दे रहे लोगों को यह समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर बलात्कार और हत्या में सजा काट रहे लोगों को रिहा कैसे किया जा सकता है। इसे लेकर याचिका देश की सर्वोच्च अदालत में दाखिल की गई। और वहां सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने जो तथ्य सामने रखें हैं, वो और ज्यादा हैरान करते हैं।

गुजरात सरकार ने सर्वोच्च अदालत में बताया कि उसने बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को उनकी 14 साल की सजा पूरी होने पर रिहा करने का फैसला किया क्योंकि उनका ‘व्यवहार अच्छा पाया गया’ और यह केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद किया गया। सरकार ने छूट देने के लिए सात अधिकारियों की राय पर विचार किया। गुजरात सरकार ने याचिकाकर्ताओं का विरोध करते हुए यह भी कहा कि याचिका न तो कानून में चलने योग्य है और न ही तथ्यों पर मान्य है। सरकार का मानना है कि याचिकाकर्ताओं के पास सज़ा से छूट के आदेशों को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

इस तरह के जवाब से समझ आता है कि देश में अल्पसंख्यक, वंचित और गरीब तबके पीड़ितों के लिए न्याय की संभावनाओं को कैसे क्षीण किया जा रहा है। मान लिया कि जेलों को सुधार गृह की तरह मानना चाहिए, लेकिन क्या गुजरात की जेलें इतनी अच्छी हैं कि वहां रहकर बलात्कार और हत्या के दोषियों का आचरण परिवर्तन हो गया। जिन लोगों को नृशंस अपराधियों के व्यवहार में अच्छाई नजर आने लगी, क्या उन लोगों ने कभी बिलकिस बानो की पीड़ा के बारे में विचार किया। खुद सामूहिक बलात्कार की भयंकर पीड़ा सहना, फिर अपने अजन्मे बच्चे को खोना, अपनी आंखों के सामने अपनी मासूम बच्ची को बुरी तरह कत्ल होते देखना, अपनी मां समेत कई परिजनों की बर्बरता से हत्या होते देखना, क्या यह सब सहन करना आसान रहा होगा। पत्थर दिल भी इतनी पीड़ा पर पिघल जाए। फिर ये किस मिट्टी के बने लोग हैं और धर्म की खुराक इन्होंने ली है, कि इन्हें बलात्कारियों में अच्छाई नजर आने लगी।

बिलकिस बानो के दोषियों को रिहा करना ही काफी नहीं था कि अब सरकार को इस बात पर भी आपत्ति है कि इस आदेश के खिलाफ कोई याचिका कैसे दायर कर सकता है। इसलिए वह अदालत में कह रही है कि याचिकाकर्ताओं के पास चुनौती देने का कोई अधिकार ही नहीं है। वैसे सरकार ने यह भी कहा है कि यह फैसला केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद लिया गया है। तो अब फिर से गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जवाब की अपेक्षा है कि वे देश को बताएंगे कि इस मंजूरी के बाद महिलाओं का सम्मान कैसे सुरक्षित रह सकता है। बहरहाल अब इस मामले में अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी। यानी बिलकिस बानो को इंसाफ मिलता है या नहीं, इसके लिए डेढ़ महीने का इंतजार करना होगा। तब तक गुजरात चुनाव संभवत: हो ही जाएंगे।

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