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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव की गहमागहमी कई दिनों से चल रही थी और बुधवार को आखिरकार कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल गया। कांग्रेस के निर्वाचक मंडल के 9900 सदस्यों में से करीब 9500 सदस्यों ने 17 अक्टूबर को अध्यक्ष पद के चयन के लिए मतदान किया था। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही कर्नाटक के एक मतदान केंद्र में अपना मत डाला था। वहीं सोनिया गांधी ने दिल्ली में मतदान किया था और इस मौके पर पत्रकारों से कहा था कि वे एक अर्से से इस पल की प्रतीक्षा कर रही थीं।

अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच मुकाबला था। जिसमें बुधवार को आए नतीजों में श्री खड़गे भारी मतों से विजयी घोषित किए गए। मल्लिकार्जुन खड़गे को 7,897 और शशि थरूर को 1,072 वोट मिले, यानी एक तरह से श्री खड़गे ने एकतरफा जीत हासिल की है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में श्री खड़गे कर्नाटक से आने वाले दूसरे अध्यक्ष होंगे और इसके साथ ही दूसरे दलित अध्यक्ष भी होंगे। इससे पहले 1968-69 में कर्नाटक से आने वाले एस. निजलिंगप्पा कांग्रेस अध्यक्ष बने थे और 1970 में बाबू जगजीवन राम कांग्रेस अध्यक्ष थे, जो कि दलित थे।

कांग्रेस को लगभग चौथाई सदी बाद गांधी-नेहरू परिवार के बाहर का कोई अध्यक्ष मिला है। पाठक जानते हैं कि सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस ने दो बार लगातार सत्ता हासिल की। 2017 में भी कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव हुए थे, जिसमें राहुल गांधी निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। लेकिन 2019 में आम चुनाव में मिली हार के बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। फिर यह पद कुछ वक्त तक खाली रहा, राहुल गांधी काफी दबाव के बावजूद दोबारा इस पर बैठने के लिए तैयार नहीं हुए। लिहाजा सोनिया गांधी को फिर से अंतरिम अध्यक्ष बन कर पार्टी की कमान संभालनी पड़ी। इस दौरान कांग्रेस के भीतर बागियों का एक बड़ा गुट तैयार हो गया, जिसके कुछ सदस्य खुले तौर पर और कुछ दबी जुबान में कांग्रेस के शीर्ष पद से गांधी परिवार को हटाने की कवायद में लगे रहे। इन्हीं लोगों ने बार-बार चुनाव और आंतरिक ढांचे में फेरबदल की आवाज़ उठाई।

सत्ताप्रिय मीडिया कांग्रेस की इस अंदरूनी खींचतान को पूरी जगह देता रहा, ताकि जनता के बीच यह संदेश जाए कि कांग्रेस भीतर से दरकी हुई है और इस पार्टी का कोई भविष्य नहीं है। इसके बाद विधानसभा चुनावों में हार, पंजाब की सत्ता का जाना, कई बड़े माने जाने वाले नेताओं का कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाना या फिर अपना अलग दल बना लेना, ऐसी कवायदों से कांग्रेस को और कमजोर करने की कोशिशें जारी रहीं। इधर सोनिया गांधी और राहुल गांधी इन प्रहारों को सहन करते हुए पार्टी और देश की मजबूती के लिए काम करते रहे।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को जिस तरह का समर्थन मिला, उससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया जोश देखने मिला। इस पृष्ठभूमि में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव हुए। हालांकि इसमें भी विरोधियों ने तंज कसने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले अशोक गहलोत का नाम इस पद के लिए आगे बढ़ा। लेकिन राजस्थान में नया मुख्यमंत्री कौन होगा, इस बात को लेकर राजस्थान कांग्रेस में खींचतान हुई।

अशोक गहलोत के कदम पीछे हुए, तो दिग्विजय सिंह का नाम आगे आया, लेकिन आखिरी पलों में मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया और फिर दिग्विजय सिंह ने उनका नामांकन करवाया। महत्वाकांक्षी नेता शशि थरूर पहले ही सोनिया गांधी से मिलकर अपनी दावेदारी स्पष्ट कर चुके थे। ये बात पहले से तय थी कि इस बार के चुनाव में गांधी परिवार किसी भी उम्मीदवार का खुलेआम पक्ष नहीं लेगा। फिर भी शशि थरूर खेमे से यह संदेश प्रसारित किया गया कि श्री खड़गे गांधी परिवार की पसंद हैं।

हालांकि ये अलग बात है कि श्री खड़गे अधिकतर कांग्रेस सदस्यों की पसंद थे। कुछ ही लोग थे जिन्हें शशि थरूर की बदलाव वाली बात से सरोकार थे। बहरहाल, श्री खड़गे की जीत घोषित हुए बिना जब राहुल गांधी ने कांग्रेस में अपनी भूमिका के सवाल पर जवाब दिया कि यह श्री खड़गे तय करेंगे, तो कांग्रेस विरोधियों ने इसे भी मुद्दा बना दिया कि मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत से पहले ही राहुल गांधी ने उनका नाम लेकर यह साबित कर दिया कि अध्यक्ष पद का चुनाव फिक्स मैच था। इस तरह की खबरों से जाहिर होता है कि कांग्रेस को किस तरह बदनाम करने की साजिशें चलाई जाती हैं। राहुल गांधी ही नहीं अधिकतर लोगों को ये उम्मीद थी कि श्री खड़गे ही अध्यक्ष बनेंगे, इसलिए इस बात को तूल देने का कोई अर्थ नहीं था।

शशि थरूर खेमे ने चुनाव में धांधली के भी आरोप लगाए। जबकि माना जा रहा है कि ये चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी हुए हैं। खास बात ये है कि देश के तमाम बड़े दलों में निर्वाचित अध्यक्ष की परिपाटी लगभग खत्म है। भाजपा, राकांपा, राजद, सपा, बसपा, अकाली दल, द्रमुक, टीआरएस, टीडीपी, शिवसेना ऐसे तमाम दलों में कोई चुनाव नहीं होते। लेकिन आंतरिक लोकतंत्र और एक परिवार के दबदबे को लेकर उंगलियां केवल कांग्रेस पर उठती रहीं। मगर इस बार गांधी परिवार ने अध्यक्ष पद से दूर रहकर अपने विरोधियों को गलत साबित किया है। वैसे संतोष की बात ये है कि पराजित उम्मीदवार शशि थरूर ने गरिमा के साथ हार स्वीकार करते हुए श्री खड़गे को बधाई दी और श्री खड़गे ने भी उनके साथ मिलकर काम करने की बात कही। यही एकता आज कांग्रेस के लिए जरूरी है।

पिछले 50 सालों से सक्रिय राजनीति में रमे मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने अब कांग्रेस को चुनाव में जिताकर उसका जनाधार बढ़ाने की कठिन चुनौती है। उन्होंने कहा भी है कि वे कांग्रेस के सिपाही की तरह काम करते रहेंगे।

सोनिया गांधी ने उनके घर जाकर बधाई देकर यह संकेत दे दिया है कि उन्होंने अब कमान श्री खड़गे को सौंप दी है। एनसीपी नेता शरद पवार ने उन्हें बधाई देते हुए एकजुट विपक्ष का जिक्र किया है। ये तमाम बातें संकेत दे रही हैं कि कांग्रेस में नया युग शुरु हो चुका है। इस नए दौर में कांग्रेस के सामने चुनौतियां तो पुरानी ही रहेंगी, लेकिन नए नेतृत्व में पार्टी किस तरह उनका सामना करती है, ये देखना होगा।

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