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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार।।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को लेकर हिन्दुस्तानियों में जश्न और गर्व अधिक दिनों तक नहीं चल पाया क्योंकि उन्होंने मंत्रिमंडल के अपने सबसे महत्वपूर्ण तीन विभाग तय करते हुए उस भारतवंशी महिला को फिर से गृहमंत्री बनाया जो भारत से ब्रिटेन पहुंचने वाले प्रवासियों के खिलाफ कुछ हफ्ते पहले ही पिछले मंत्रिमंडल में इसी विभाग को सम्हालते हुए बयान दे चुकी थी। मतलब यह कि एक भारतवंशी पत्नी के रहते हुए भी ब्रिटिश प्रधानमंत्री की हैसियत से ऋषि सुनक की प्राथमिकता किसी भी तरह से हिन्दुस्तान नहीं है, और शायद होनी भी नहीं चाहिए। भारत में जिन लोगों को कुछ बातों को लेकर ऋषि सुनक पर गर्व होता है, उनकी नजर में उनके पूर्वजों का अखंड भारत की जमीन से अफ्रीका जाना था, और वहां से ऋषि के माता-पिता ब्रिटेन गए, और वहीं उनके बच्चे हुए, जिनमें से एक आज वहां का प्रधानमंत्री है। अब हिन्दुस्तान की आजादी के बहुत पहले पाकिस्तान वाले हिस्से से जो परिवार अफ्रीका गया, उस पर गर्व करने का हक आज के हिन्दुस्तान को है, या आज के पाकिस्तान को है, यह एक अलग सोचने की बात है। ऋषि सुनक के हिन्दू होने से ही अगर भारत के लोग उस पर गर्व करने के हक का दावा करते हैं, तो पाकिस्तान में बसे हुए उन दसियों लाख हिन्दुओं का क्या कहा जाए जो वहां की सरकार, पुलिस, फौज सबमें काम कर रहे हैं, और वफादार पाकिस्तानी हैं। इस बात पर भी भारत का गर्व फिजूल है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री की पत्नी भारतवंशी है, और भारत की एक सबसे बड़ी कंपनी के मालिक की बेटी है, उसकी शेयर होल्डर है, और इस नाते वह ब्रिटेन में शायद वहां के राजा से भी अधिक दौलतमंद है।

इस मामले को ब्रिटेन की नजर से देखने की जरूरत है तो हर बात जायज लगेगी। ब्रिटेन के पास ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद गर्व की कई वजहें हैं, जिनमें एक यह है कि दूसरे महाद्वीप से वहां पहुंचने वाले प्रवासी परिवार का बेटा आज वहां का प्रधानमंत्री है, मतलब यह कि वहां किसी के लिए भी ऊपर पहुंचने की अपार संभावनाएं हैं। यह संभावना ब्रिटिश राजनीति और संसद में एक दूसरी तरह से भी दिखती है कि वहां के मूल निवासियों से परे दूसरे देशों से वहां पहुंचने वाले लोगों में से धीरे-धीरे करके अब बहुत से लोग संसद में पहुंचे हुए हैं, और यह बात छोटी नहीं है, यह भी ब्रिटिश समाज में बर्दाश्त की एक मिसाल है, क्योंकि वोटरों में तो अभी भी ब्रिटिश लोगों का बहुमत है, और उनके वोटों से चुनकर अफ्रीकी या एशियाई मूल के लोग संसद पहुंच रहे हैं, और ये तमाम उन देशों के लोग हैं जो कि एक वक्त ब्रिटेन के गुलाम थे। भारत-पाकिस्तान की जिस जमीन से ऋषि सुनक के पूर्वज पूर्वी अफ्रीका गए थे, वह जमीन भी उस वक्त अंग्रेजों की गुलाम थी, और पूर्वी अफ्रीका भी। इस तरह गुलाम देशों से आए हुए और गुलाम नस्लों के एक नौजवान को ब्रिटेन ने अपना प्रधानमंत्री चुना है। यह बात ब्रिटेन के लिए गर्व की है कि वहां की एक संकीर्णतावादी पार्टी, कंजरवेटिव पार्टी ने अपने सांसदों और वोटरों के गोरे बहुमत के बावजूद एक ऐसे भारतवंशी को प्रधानमंत्री चुना है जो कि कुल सात बरस पहले ही पहली बार सांसद बना था। ब्रिटेन में कंजरवेटिव की विरोधी पार्टी, लेबर पार्टी प्रवासियों के लिए अधिक हमदर्द मानी जाती है, उसके कई सांसद भी प्रवासी मूल के हैं, लेकिन कंजरवेटिव लोगों के लिए यह एक नई और अटपटी बात थी, और शायद उनका अपनी इस उदारता पर गर्व करने का एक मौका यह बनता है। हिन्दुस्तान ने तो अपना मिजाज उस वक्त बता दिया था जब सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने के आसार आए थे, और संसद में भाजपा की एक सबसे बड़ी सांसद ने ऐसा दिन आने पर सिर मुंडाने और जमीन पर सोने और चने खाकर गुजारा करने की घोषणा की थी। आज उसी महिला सांसद की पार्टी के लोग ऋषि सुनक के ब्रिटिश पीएम बनने पर सबसे अधिक गर्व कर रहे हैं जो कि सोनिया गांधी के नाम से भी नफरत करते हैं। ऐसे में किसी देश में किसी दूसरे देश के वंश के प्रधानमंत्री बनने पर यहां के उन लोगों को गर्व करने का क्या हक होना चाहिए? यह हक तो ब्रिटिश लोगों को होना चाहिए। आज जिन लोगों को ऋषि सुनक हिन्दुस्तान का दामाद लग रहा है, और इस वजह से भी उस पर गर्व करना सूझ रहा है, उन लोगों को अभी कुछ बरस पहले का ताजा इतिहास देखना चाहिए जब सानिया मिर्जा ने एक पाकिस्तानी खिलाड़ी शोएब मलिक से शादी की थी, और इसे लोगों ने हिन्दुस्तान के साथ गद्दारी करार दिया था, सोशल मीडिया पर सानिया के खिलाफ क्या-क्या नहीं लिखा गया था। रिश्तों की परिभाषा में देखें तो शोएब मलिक भारत का उतना ही दामाद है जितना दामाद ऋषि सुनक है। एक से नफरत, और दूसरे पर गर्व, ऐसा हिन्दुस्तानी ही कर सकते हैं।

ब्रिटिश लोगों को यह गर्व करने का भी मौका है कि उनके देश की अधिक संकीर्णतावादी पार्टी ने भी गोरे और अंग्रेज उम्मीदवारों के मुकाबले एक प्रवासी परिवार की संतान को प्राथमिकता दी, पहले सांसदों के बीच हुए चुनाव में उन्हें बहुमत मिला, और फिर एक सरकार गिरने के बाद उन्हें पूरी पार्टी ने ही प्रधानमंत्री मनोनीत किया है। दुनिया के जिन देशों में बाहर से आई हुई प्रतिभाओं को लेकर ऐसा बर्दाश्त रहता है, वे ही देश आगे बढ़ते हैं। अमरीका इसकी सबसे बड़ी मिसाल है जहां पर तकरीबन तमाम बड़ी कंपनियों के मुखिया दूसरे देशों से आए हुए लोग हैं, जहां पर पहले काले राष्ट्रपति बराक ओबामा के पूर्वज भी अफ्रीका से आए हुए थे। जिन देशों में स्थानीय नस्ल, स्थानीय रंग या धर्म को लेकर दुराग्रह रहता है, उनके आगे बढऩे की संभावनाएं उसी अनुपात में घटती चलती हैं। हिन्दुस्तान को पहले अपने बीच एक मिसाल पेश करनी होगी, यहां बाहर से सैकड़ों बरस पहले आए हुए लोगों के रक्त संबंधियों को अपना मानना होगा जो कि सैकड़ों बरस से इसी जमीन पर पैदा हो रहे हैं, उसके बाद, दीवार फिल्म के डायलॉग की तरह, उसके बाद मेरे भाई तुम दुनिया के जिस भारतवंशी पर गर्व करोगे, मैं उसे जायज मान लूंगा।

भारत एक अजीब सा देश है जो अपने किसी योगदान के बिना भी दूसरे देशों की वजह से आगे बढ़े हुए लोगों की कामयाबी में हिस्से का दावेदार बने रहता है। उसे यह भी सोचना चाहिए कि काबिल और कामयाब लोग इस देश में आगे बढ़ पाने की संभावनाएं न देखने की वजह से भी बाहर जाते हैं, और वहां पर अधिक बराबरी का माहौल मिलने से वे आगे बढ़ते हैं। वे भारत की वजह से आगे नहीं बढ़ते, बल्कि भारत के बावजूद आगे बढ़ते हैं। इस फर्क को समझने वाले लोग झूठे गौरव के शिकार होकर एक नाजायज नशे में डूबे नहीं रहेंगे।

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