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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के एक नौजवान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तैरा, और उसे एक खास विचारधारा की साइबर-फौज ने दूर-दूर तक पहुंचाया। इस विचारधारा के जाने-माने लोग भी इस पर टूट पड़े क्योंकि इसमें मुस्लिम दिखता यह नौजवान अपना नाम राशिद खान बतलाते हुए यह कह रहा है कि श्रद्धा नामक युवती के 35 टुकड़े करके आफताब पूनावाला ने ठीक किया था, वह तो 35 की जगह 36 टुकड़े कर सकता है। अब एक हिन्दू लडक़ी के साथ ऐसा भयानक हैवानियत का काम करने वाले मुस्लिम युवक तो पकड़ाया जा चुका है, अब एक दूसरा मुस्लिम दिखता, अपना नाम राशिद खान बतलाता यह नौजवान उस लाश का एक टुकड़ा और करने की बात कर रहा है, तो यह बात देश में कई लोगों को लगातार फैलाने लायक लगी। दसियों हजार लोग अपनी इस ड्यूटी पर जुट गए। अब एक दिक्कत आ गई, उत्तरप्रदेश के योगीराज की पुलिस के बुलंदशहर के एसएसपी ने एक वीडियो पोस्ट करके कहा कि सोशल मीडिया पर तैर रहे इस नौजवान के वीडियो की जांच की गई, तो वह कोई राशिद खान नहीं, बुलंदशहर का विकास नाम का नौजवान निकला जिसके खिलाफ पहले से जुर्म के पांच मामले दर्ज हैं। इसे झूठ फैलाने और साम्प्रदायिकता के लिए गिरफ्तार भी कर लिया गया है। लेकिन इसके पहले जैसी कि उम्मीद थी मुस्लिमविरोधी मानसिकता वाले दसियों हजार लोग ट्विटर पर, और शायद लाखों लोग वॉट्सऐप पर फैला चुके हैं, और नफरत फैलाने के इस यज्ञ में वे अपनी आहुति दे चुके हैं।

यहां पर सवाल यह उठता है कि दिल्ली के मजदूर बाजार में तीन सौ रूपये रोजी पर काम करने वाला यह हिन्दू नौजवान क्योंकर अपने को राशिद खान बताता है, और हिन्दू लडक़ी की लाश के और अधिक टुकड़े करने की वकालत करता है? यह सब उस वक्त हो रहा है जब गुजरात में चुनाव हैं, वहां पर ध्रुवीकरण का हाल यह है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह कल ही वहां जाकर 2002 में सिखाए गए सबक के बाद की शांति गिना रहे हैं। इसी वक्त एक साजिश के तहत ऐसा वीडियो बनाया जाता है, विकास कुमार मुस्लिम हुलिए सरीखी दाढ़ी बना लेता है, अपना नाम राशिद खान रख लेता है, और देश के आज के एक सबसे हिंसक जुर्म की वकालत करते हुए उसे और आगे बढ़ाने की बात करता है। दो-तीन दिनों के भीतर यह वीडियो फर्जी साबित हो गया, लेकिन बुलंदशहर के एसएसपी का खंडन का वीडियो तो उन जगहों तक पहुंच नहीं सकेगा जहां तक विकास उर्फ राशिद खान के वीडियो को समर्पित या भत्ताभोगी साइबर-फौज पहुंचा चुकी है। जब तक सच जूतों के फीते बांधता है, तब तक झूठ शहर के दो फेरे लगा चुका रहता है। और जब देश की मानसिकता को सोच-समझकर, बड़ी साजिश और बड़ी कोशिश से साम्प्रदायिकता के लिए उपजाऊ जमीन बनाया जा चुका है, तो फिर अफवाहों को यह जमीन सोखने के लिए उसी तरह तैयार रहती है जिस तरह जून की जमीन पहली बारिश को सोखने तैयार रहती है। क्या इस वीडियो को महज संयोग कहा जा सकता है कि यह गुजरात चुनाव के ठीक पहले आया है, हिन्दी में बना हुआ है, इसका झूठ लोगों को बड़ी आसानी से समझ पड़ रहा है, और यह मुस्लिमों के खिलाफ दहशत और नफरत दोनों फैला रहा है? इस सिलसिले में मासूम कुछ भी नहीं है, हो भी नहीं सकता। जब देश में एक विचारधारा को किसी भी कीमत पर आगे बढ़ाने के लिए, किसी एक मजहब को किसी भी कीमत पर पीछे धकेलने के लिए समर्पित कार्यकर्ता और भाड़े के भोंपू दोनों ही अपार संख्या में मौजूद हैं, तो फिर धार्मिक ध्रुवीकरण करके लोकतांत्रिक चुनावों को धार्मिक जनमतसंग्रह क्यों न बना दिया जाए, यह तो एक बड़ा आसान काम है। जब विकास पर भरोसा न हो, तो फिर उसे राशिद खान नाम का खूनी खलनायक बनाकर पेश किया जा सकता है, और शायद वही हुआ भी है। ऑल्टन्यूज नाम की जिस फैक्टचेक वेबसाईट के दो संस्थापकों में से एक को अभी महीनों तक तरह-तरह के फर्जी मामले गढक़र बिना जमानत जेल में रखा गया था, और जिसे दिल्ली की एक अदालत ने जमानत देते हुए पुलिस को फटकार लगाई थी, उसने इस ताजा झूठ की सिलसिलेवार जांच करके सामने रखा है कि विकास के राशिद खान बनकर इस हिंसा की बात को सोशल मीडिया के किन प्रमुख लोगों ने, भाजपा के किन दिग्गज लोगों ने, किन-किन तथाकथित पत्रकारों ने हाथोंहाथ लिया और आगे बढ़ाया। यह इस देश की अदालत को सोचना है कि जब देश की सरकारें ऐसे संगठित और साजिश वाले जुर्म के खिलाफ कोई असरदार कार्रवाई करना नहीं चाहती हैं, तब अदालत का क्या जिम्मा बनता है? ऐसे मामलों की सुनवाई की नीयत अगर अदालत की सचमुच ही होगी, तो उसे कटघरे के लिए किसी स्टेडियम का इस्तेमाल करना होगा, और सोशल मीडिया के नफरतजीवी लोगों को हांककर वहां लाना होगा। और अगर ऐसी साजिशों और उन्हें बढ़ावा देने का यह सिलसिला इसी तरह चलने देना है, तो फिर लोकतंत्र और इंसानियत से बचने की उम्मीद करना बेकार होगा।

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