-सुनील कुमार।।
बिहार के बड़े नेता लालू यादव की तस्वीरें उनकी बेटी की तस्वीरों के साथ कल से सोशल मीडिया पर बड़े भावनात्मक संदेशों के साथ छाई हुई हैं। कल इस बेटी ने पिता को अपनी किडनी दी जो कि सिंगापुर के एक अस्पताल में लालू यादव को लगाई गई। लोग एक बेटी के त्याग की तारीफ कर रहे हैं, और यह भी लिख रहे हैं कि एक बेटी ही ऐसा त्याग कर सकती है। यह जाहिर है कि किडनी देने और पाने वाले दोनों ही एक-एक किडनी के सहारे चलते हैं, और किडनी देने के बाद बाकी जिंदगी कई तरह की दवाईयों के सहारे, बहुत सी प्रतिबंधों और बहुत सी सावधानियों के साथ चलती है, और जिंदगी पर एक खतरा बने ही रहता है। इसलिए बहुत से लोग अपने परिवार के लोगों की किडनी लेने के बजाय कई तरह की कानूनी और गैरकानूनी तरकीबें निकालते हुए, कभी-कभी दूसरे देश जाकर भी किसी तथाकथित दानदाता से किडनी खरीदते हैं, और अपने परिवार के लोगों को खतरे में डालने से बचते हैं। फिर भी अधिकतर मामलों में परिवार के लोग ही इस तरह का दान देते हैं, और आमतौर पर यह दरियादिली और हौसला दिखाने का जिम्मा महिलाओं पर ही आता है।
रायपुर मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर बने डॉ. सजल सेन ने 20 से अधिक बरस पहले दिल्ली के एम्स में एक अध्ययन किया था, और किडनी देने और पाने वाले साढ़े चार सौ लोगों की जानकारी जुटाई थी। उनका यह नतीजा निकला था कि किडनी पाने वाले लोगों में महज दस फीसदी ही महिलाएं हैं, और किडनी देने वाले लोगों में 75 फीसदी से अधिक महिलाएं हैं। इसके बाद के एक और सर्वे में एम्स में पता लगा कि जोड़ों के बीच किडनी देने वालों में 92.5 फीसदी महिलाएं हैं, और आगे चलकर यह आंकड़ा 98.4 फीसदी हो गया। कुछ बरस पहले एक समाचार रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि अहमदाबाद के एक किडनी इंस्टीट्यूट में पति-पत्नी के बीच किडनी डोनेशन में 92.6 फीसदी दानदाता पत्नियां रही हैं। कमोबेश इसी तरह का आंकड़ा देश भर में बाकी जगहों पर भी रहा कि परिवार की महिला पर ही किडनी देने का जिम्मा आता है।
अब हम आंकड़ों से निकल रहे नतीजे के खिलाफ सोचकर देखें तो दो छोटी-छोटी बातें दिखती हैं। पहली तो यह कि किडनी देने वाले अगर पुरूष हैं, तो उनके बाहर कामकाज और दौड़-भाग पर इससे असर पड़ सकता है, और अगर परिवार में महिला बाहर काम करने वाली नहीं है, तो उसके किडनी देने से उसकी जिंदगी पर उतना बड़ा फर्क शायद नहीं पड़ेगा। दूसरी बात यह है कि मर्दों की शराबखोरी या किसी और किस्म की आदत की वजह से हो सकता है कि उनकी किडनी इतनी स्वस्थ न रह गई हो कि वे परिवार के जरूरतमंद मरीज को दे सकें। लेकिन इन दोनों बातों के बाद भी ये आंकड़े बताते हैं कि हिन्दुस्तानी समाज जिस लडक़ी को पैदा ही नहीं होने देना चाहता है, वही लडक़ी आगे जाकर भाई, पिता, पति, या परिवार के दूसरे लोगों को किडनी देने के काम आती है। अगर किडनी देने में औरत और मर्द का योगदान एक बराबर कर दिया जाए, तो या तो हिन्दुस्तान में किडनी ट्रांसप्लांट का काम ठप्प ही हो जाएगा, या फिर वह दुगुना हो जाएगा। और यह हाल भी तब है जब किसी लडक़ी की शादी हो जाने के बाद उसके मायके के लोगों को किडनी की जरूरत पडऩे पर उस लडक़ी के बारे में फैसला लेने में उसके ससुराल का बड़ा हिस्सा रहता है जो अपने घर की बहू की सेहत खतरे में डालने से बचते नजर आते हैं क्योंकि बहू ही सेहतमंद नहीं रहेगी, तो घर का काम कौन करेगा।
अभी कुछ दिन पहले ही हमने इसी जगह पर लिखा था कि तमिलनाडु में एक बस्ती ऐसी है जिसके हर घर से किसी न किसी ने किडनी बेची हुई है, और लंबे समय तक खरीद-बिक्री के ऐसे कारोबार के बाद देश में इसके खिलाफ कानून बनाया गया। परिवार को अगर एक सदस्य के किडनी बेचने से कुछ लाख रूपये मिलते भी हैं तो उससे देश के गरीबों की यह भयानक हालत उजागर होती है कि वे परिवार को जिंदा रखने के लिए किडनी बेचने को मजबूर हैं। दूसरी तरफ कुछ लोगों का यह भी तजुर्बा है कि अगर शरीर के अंग इसी तरह बेचने की छूट जारी रहती, तो कई लोग अपना नशा पूरा करने के लिए भी उसी तरह किडनी बेच देते, जिस तरह वे आज भी खून बेचते ही हैं। इसलिए किसी परिवार के लिए अगर एक सदस्य की एक किडनी से अधिक जरूरी कोई दूसरी जरूरतें भी हैं, तो उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार की है, न कि अंगों के कारोबार को अनदेखा करने की। इसलिए हिन्दुस्तान में आज अंगदान और अंग प्रत्यारोपण के कानून बहुत कड़े बने हुए हैं, और जब बाजार से कोई चीज खरीदी नहीं जा सकती, जिसे देने में घर के सदस्यों की अपनी जिंदगी पर भी खतरा है, तो जाहिर है कि हिन्दुस्तानी समाज इसका बोझ महिला पर ही डालेगा, और वही हो रहा है।
इसलिए कल जब लालू यादव को किडनी लगी, और उनकी बेटी ने अपनी किडनी दान दी, तो यह भारतीय परिवारों के बीच की आम व्यवस्था की तरह है। और बाप-बेटी का जो रिश्ता होता है उसके चलते इन दोनों के बीच एक-दूसरे के लिए बड़े से बड़ा त्याग करना भी अधिक स्वाभाविक लगता है। चूंकि कल यह बात खबरों में आई और लोगों ने इसके बारे में खूब लिखा, इसलिए इंटरनेट पर मामूली सी सर्च ने पुराने अध्ययनों के ये आंकड़े सामने रखे कि किस तरह अंगदान भारतीय महिला का ही जिम्मा बना हुआ है। अंग पाने में महिला का हिस्सा दस फीसदी या उससे कम है, लेकिन अंग देने के मामले में नब्बे फीसदी से अधिक दानदाता महिलाएं ही हैं। लोगों को चाहिए कि अपने घर-परिवार की महिलाओं की इज्जत और फिक्र बाकी बातों के साथ-साथ इस बात के लिए भी करें कि उन्हें जरूरत पड़ेगी तो किडनी पाने की सबसे अधिक संभावना परिवार की महिला की तरफ से ही मौजूद रहेगी। इसलिए परिवार की महिलाओं को ठीक रखना एक किस्म का पूंजीनिवेश भी है, जिन लोगों को और कोई वजह नहीं दिखती है, उन्हें भी चाहिए कि वे कम से कम इसे एक काफी वजह मानकर चलें।