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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार।।

दुनिया के कुछ बिल्कुल ही अलग-अलग किस्म के मुस्लिम देशों में कट्टरता का एक नया दौर दिखाई पड़ रहा है। ये तमाम जगहें एक-दूसरे से इतनी अलग हैं कि इनके बीच कोई रिश्ता ढूंढना मुश्किल है, लेकिन एक बात एक सरीखी है कि इस धार्मिक कट्टरता के एक नए उफान से गुजर रहे हैं। अभी साल भर के पहले अफगानिस्तान में फिर से काबिज हुए कट्टरपंथी तालिबानों ने अभी पहली सार्वजनिक मौत की सजा दी है, और दुनिया को समझ आ रहा है कि इनसे किसी बेहतर बर्ताव की उम्मीद नहीं की जा सकती। लोगों को लाउडस्पीकर पर आवाज देकर इकट्ठा किया गया, और अफगान सरकार के कई मंत्री भी मौत की यह सजा देखने पहुंचे जिनमें वहां के विदेश मंत्री भी शामिल थे। इस पर संयुक्त राष्ट्र सहित बहुत से देशों ने बहुत निराशा जाहिर की है क्योंकि इस देश में दसियों लाख लोग आज भूखे पड़े हुए हैं, और यह विश्व समुदाय की जिम्मेदारी मानी जा रही है कि इन्हें मरने से बचाए। लेकिन ऐसे तालिबानी शासन के बीच दुनिया अपनी मदद भी भेजना नहीं चाह रही है। संयुक्त राष्ट्र सहित बहुत से देशों ने तालिबान पर इस बात के लिए दबाव डालकर देख लिया कि अगर उन्हें अंतरराष्ट्रीय मदद चाहिए तो उन्हें अपनी छात्राओं को स्कूल जाने देना चाहिए, महिलाओं को काम करने देना चाहिए, लेकिन तालिबानों की इस्लामिक जीवनशैली की अपनी एक सबसे कट्टर व्याख्या है, जिसके चलते वे लड़कियों और महिलाओं को कोई इंसानी हक देना नहीं चाहते। अब सार्वजनिक रूप से मौत की सजा के बाद उसकी एक खूंखार शक्ल सामने आई है। दूसरी तरफ बगल के ईरान में कल एक प्रदर्शनकारी को मौत की सजा दी गई है जिस पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान एक सुरक्षा अधिकारी को चोट पहुंचाने का दोषी कहा गया था। ये प्रदर्शन ईरान की कट्टरपंथी इस्लामिक सरकार के खिलाफ देश भर में चल रहे हैं जिनमें सरकार के हिजाब नियमों का विरोध किया जा रहा है। हिजाब ठीक से न पहनने के आरोप में गिरफ्तार एक युवती की हिरासत-मौत के बाद देश भर में लगातार सरकार विरोधी आंदोलन चल रहे हैं। इन सबसे बढक़र इंडोनेशिया की संसद ने अभी एक नए कानून को पास किया है जिसके मुताबिक शादी के बाहर सेक्स पर एक साल तक की कैद का प्रावधान किया गया है। दिलचस्प बात यह है कि सभी राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया है क्योंकि इंडोनेशिया की मुस्लिम बहुल आबादी के बीच धर्मगुरूओं ने इसे एक मुद्दा बनाकर जनता का रूख इसके लिए अनुकूल बनाकर रखा था। लेकिन इससे यह डर पैदा हो रहा है कि दुनिया के एक बड़े पर्यटन केन्द्र इंडोनेशिया का यह कारोबार मार खाएगा क्योंकि इसके तहत गैरशादीशुदा जोड़े के साथ रहने पर भी रोक लगाई गई है, और यह कानून पर्यटकों पर भी लागू होगा।

आज दुनिया के सामने यह एक सोचने की बात है कि जब योरप के कई विकसित देशों में लगातार नास्तिकों की संख्या बढ़ रही है, धर्म को मानने वाले घट रहे हैं, वैसे में दुनिया के कई देशों में धार्मिक कट्टरता बढ़ती क्यों जा रही है? यह बात न सिर्फ मुस्लिम देशों में हो रही है, बल्कि हिन्दुस्तान जैसे देश में भी जनता के बीच धर्मान्धता और साम्प्रदायिकता लगातार ऊपर जा रहे हैं, और ये इस्लाम धर्म या मुस्लिम समुदाय से परे की बात है। हिन्दुस्तान में बहुसंख्यक हिन्दू आबादी को जिस तरह आक्रामक हिन्दुत्व का नशा कराया जा रहा है, वह भयानक है। ऐसा लगता है कि कार्ल मार्क्स ने डेढ़ सौ से अधिक बरस पहले धर्म के अफीम होने के बारे में जो कहा था, वह बात आज की दुनिया को देखकर कही थी। आज दुनिया भर के आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहे ईरान के सामने अपने भविष्य की कई तरह की चिंताएं हैं, लेकिन वह कट्टर इस्लाम में डूबा हुआ है। भारत में बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, और कुपोषण की भारी समस्याएं हैं, लेकिन लोग धर्म को एक रामबाण दवा मानकर चल रहे हैं, और उससे परे किसी और बात की फिक्र उन्हें अब नहीं दिखती है। जिस इंडोनेशिया की बात ऊपर की गई है, उसके पर्यटन उद्योग को कोरोना ने बहुत बुरी तरह मारा था, और अब 2025 तक इस नुकसान से उबरने की उम्मीद थी, कि यह नया कानून वहां लगभग सर्वसम्मति से आ गया है, जो कि जीने के तथाकथित इस्लामिक तौर-तरीकों के मुताबिक बनाया गया बताया जा रहा है।

दो दशक लंबे अमरीकी कब्जे के बाद अफगानिस्तान उससे आजाद हुआ, तो वह सीधे तालिबानों के हाथों में आया, देश की अर्थव्यवस्था, उसका कारोबार सब खत्म है, लोगों के जिंदा रहने की चुनौती है, बिना अंतरराष्ट्रीय मदद के भूख से निपटा नहीं जा सकता, लेकिन धार्मिक उन्माद है कि तालिबानों को अंतरराष्ट्रीय मदद के लिए भी कट्टरता छोडऩे को तैयार नहीं कर पा रहा। धर्म ऐसा ही नशा होता है जिसके असर में लोग तमाम किस्म की तकलीफों को भूल जाते हैं, और कट्टरता के शिकार हो जाते हैं। अभी यहां पर हमने कई अफ्रीकी देशों में भुखमरी के बीच भी लगातार चल रहे कट्टरपंथी इस्लामी आतंकियों के बड़े-बड़े हमलों की चर्चा नहीं की है, जो कि धर्म के नाम पर अनगिनत लोगों को मार रहे हैं, अनगिनत महिलाओं और बच्चों से बलात्कार भी कर रहे हैं। यह पूरा सिलसिला धर्म के उसी खूनी चेहरे को उजागर करता है जिसके खतरे से कार्ल मार्क्स ने डेढ़ सदी के पहले आगाह किया था। जहां पर आज यह उन्माद इस हद तक खूनी नहीं हुआ है, उन्हें भी आज इसके खतरों को समझ लेने की जरूरत है।

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