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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार।।

अभी कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर बेशरम रंग के बारे में काफी कुछ लिखा जा रहा है। यह शाहरूख खान और दीपिका पादुकोण के अभिनय वाली फिल्म, पठान, का एक बड़ा ही मादक फिल्माया गया गाना है। जिन लोगों को खूबसूरत शरीर को उघड़ा देखकर हीनभावना होती है, वैसे तमाम औरत-मर्दों की भावनाओं को यह गाना गहरी चोट दे सकता है क्योंकि इसमें थोक में, दर्जनों के भाव से खूबसूरत जिस्म उत्तेजक हाव-भाव दिखाते नाचते हैं, और दीपिका और शाहरूख इन दोनों के बदन देखते ही बनते हैं। जैसा कि मादकता के किसी भी मामले में हो सकता है, लोगों की सोच उसे लेकर अलग-अलग हो सकती है। नग्न बदन कुछ लोगों को अश्लील लग सकते हैं, कुछ लोगों को इस तरह के मादक और उत्तेजक डांस आपत्तिजनक लग सकते हैं। लेकिन हमारा यह मानना यह है कि खूबसूरत और गठे हुए बदनों को देखकर लोगों को आपत्ति कम होती है, रश्क अधिक होता है, और इसी जलन से हीनभावना में आकर वे इसे अश्लील करार देने लगते हैं क्योंकि खुद ऐसी अश्लीलता दिखाने लायक बदन नहीं रखते।

शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण अभिनीत पठान फ़िल्म के इस गाने “बेशर्म रंग” पर मचा हंगामा..

लेकिन बेशरम रंग नाम के इस गाने को लेकर लोगों की आपत्ति देखने लायक है। इस नाच-गाने में दीपिका ने दर्जनों पोशाकें बदली होंगी, लेकिन लोगों को उसमें से एक पोशाक से खास परहेज दिख रहा है जो कि भगवा-केसरिया जैसे रंग की है। इस रंग की बिकिनी में दीपिका की खूबसूरती देखते ही बनती है, बदन कुछ अधिक ही झांकते दिखता है, और इन्हीं पलों में वह शाहरूख की बांहों में, उसकी पकड़ में दिखती है। किसी भी फिल्म में नायक और नायिका का किरदार करने वाले लोगों के बीच यह अंतरंगता देखने लायक है, और ऐसे लोग सौंदर्यबोध के मामले में एकदम कंगाल दिखते हैं जिनको इतने खूबसूरत बदन के इतने खूबसूरत हिस्सों के बजाय गिने-चुने छोटे से कपड़ों का रंग दिख रहा है! और दिलचस्प बात यह है कि इसे शाहरूख के मजहब से जोडक़र देखा जा रहा है, और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया ऐसी आ रही है कि मानो एक मुस्लिम ने एक हिन्दू का शोषण कर लिया है। ये दोनों कलाकार शादीशुदा हैं, दोनों परले दर्जे के कामयाब हैं, दोनों की जिंदगी विवादों से परे है, और एक फिल्म के किरदारों की शक्ल में इन्होंने जो किया है वह तारीफ के काबिल है। फिर भी शाहरूख के मुस्लिम होने से, और दीपिका पादुकोण के कुछ बरस पहले जेएनयू के आंदोलन में जाने की वजह से ये दोनों ही हिन्दुस्तान के दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक आक्रामक हिन्दुत्ववादियों के निशाने पर रहे हैं। अब इस तबके की तमाम नफरत निकलकर सामने आ रही है कि मुसलमान अपनी औरतों को किस तरह ढांककर रखते हैं, और हिन्दू औरतों को किस तरह उघाडक़र दिखा रहे हैं। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर बॉलीवुड और इस फिल्म के बायकॉट का फतवा जारी हो गया है, जो कि हो सकता है कि फिल्म के निर्माता की तरफ से एक गढ़ी गई योजना भी हो। सोशल मीडिया इसे लेकर हिन्दू-मुस्लिम, ‘पवित्र भगवे रंग’ के अपमान जैसी बातें देख रहा है। दीपिका ने इस एक गाने में दर्जनभर से अधिक रंगों की अलग-अलग बिकिनियां पहनी होंगी, लेकिन जिन्हें हिन्दू-मुस्लिम किए बिना डकार नहीं आती, अपच के शिकार ऐसे लोगों को उनमें से सिर्फ भगवा रंग दिखा। अब इसी हिन्दुत्व-सेना की सबसे पसंदीदा अभिनेत्री कंगना रनौत के भी तरह-तरह की पोशाकों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर मौजूद हैं, लेकिन वह अर्धनग्नता हिन्दुत्व को ठीक उसी तरह मंजूर है जिस तरह खजुराहो के मंदिरों की दीवारों पर मंजूर है। बस पठान नाम की फिल्म, और एक मुस्लिम अभिनेता की बांहों में एक हिन्दू अभिनेत्री को देखकर एकदम से भगवे रंग पर हमला शुरू हो गया। यह हिन्दू-मुस्लिम मामला नहीं रहता, तो हिन्दी और हिन्दुस्तानी फिल्मों में अनगिनत खलनायक भगवे कपड़ों में रहते आए हैं, और वैसे ही कपड़ों में बलात्कार भी करते आए हैं, उनमें से किसी से हिन्दू भावनाओं को कभी चोट नहीं पहुंची।

हैरानी यह है कि आज के हिन्दुस्तान के जिस हिन्दू राज को सैकड़ों बरस बाद आया हिन्दू राज कहा जा रहा है, उसी राज के चलते हिन्दुत्व सबसे अधिक खतरे में दिख रहा है। इसके पहले हिन्दुत्व कभी इतना नाजुक नहीं रहा, न ही इतने खतरे में रहा। आज हर कुछ घंटों में हिन्दू भावनाओं पर कोई न कोई हमला मान लिया जाता है, और हिन्दू देवी-देवताओं को भी इतना कमजोर करार दिया जा रहा है कि मानो वे अपनी और अपने धर्म की हिफाजत करने लायक नहीं रह गई है। जो तबका आज विश्वगुरू बनने पर आमादा है, जो आज की अपनी ताकत के सामने चीन को भी कुछ नहीं गिन रहा है, जिसे हिन्दुस्तान इन बरसों में सोने की चिडिय़ा बनते दिख रहा है, उन लोगों का हिन्दू धर्म आज इस कदर कमजोर हो गया है कि भगवे रंग की बिकिनी से उसकी बुनियाद हिलने लगी है। अब इनमें से कोई यह बताएंगे कि हिन्दुस्तान के इतिहास में जिन सुंदरियों और अप्सराओं का चित्रण किया गया है, क्या उनमें से किसी के भगवा-केसरिया पहनने पर रोक लगी रहती थी? और संस्कृत और हिन्दी के कितने ही श्रंृगार रस साहित्य में सुंदरी के सीने पर बंधने वाले छोटे से कपड़े या चोली का जिक्र होता था? जो साम्प्रदायिक ताकतें हरा रंग देखकर सांड की तरह भडक़ती हैं, वे अब भगवे-केसरिया रंग से भडक़ रही हैं, और दीपिका के पहने दर्जनों रंगों में से बेशरम रंग उन्हें सिर्फ भगवा-केसरिया दिख रहा है, यह कैसी गजब की हैरानी की बात है।

हो सकता है कि यह पूरा सिलसिला फिल्म की शोहरत बढ़ाने की तरकीब हो, और हिन्दुत्व के झंडाबरदार लोग ऐसी किसी बाजारू साजिश में भाड़े के भोंपू बनकर सोशल मीडिया पर अपने जख्म दिखा रहे हैं। आज देश में, देश के इतिहास की सबसे मजबूत हिन्दुत्व-सरकार है, फिर भी हिन्दुत्व पर इतने बड़े-बड़े जख्म दिखना हैरान करता है। फिलहाल हमारी सलाह यही है कि लोगों को शाहरूख और दीपिका के खूबसूरत और सेहतमंद बदन देखकर यह प्रेरणा पाना चाहिए कि फिट कैसे रहा जा सकता है, फिट रहने पर कितना अधिक खूबसूरत दिखा जा सकता है, और फिट रहने पर बदन कितने किस्म के उत्तेजक और मादक करतब कर सकता है। जख्मी हिन्दुत्ववादियों को किसी वैदिक मरहम की तलाश करने दें, और इस खूबसूरत गाने की उत्तेजना का मजा उठाएं, इसमें जिन लोगों को इसके सबसे उत्तेजक पलों में बदन पर कुछ इंच के कपड़ों का रंग दिख रहा है, उन्हें अपनी आंखों का इलाज कराना चाहिए, अपने सौंदर्यबोध का भी।

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