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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार।।

हिन्दुस्तान में आज छाए हुए हिन्दू-मुस्लिम विवाद के बीच एक और मामला सामने आया जब टीवी अभिनेत्री तुनिषा शर्मा की शूटिंग के दौरान खुदकुशी के बाद उनकी मां की रिपोर्ट पर तुनिषा के दोस्त या प्रेमी शीजान खान को गिरफ्तार किया गया है। इस नौजवान पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने बताया कि इस अभिनेत्री ने अपनी मां को कहा था कि उसका ब्रेकप हो गया है, और लडक़ा उससे बात नहीं करता, अब उसके साथ रिश्ता नहीं रखना चाहता। मां का कहना था कि इस वजह से वो टेंशन में थी और इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

हम इस मामले की बारीकियों पर जाना नहीं चाहते क्योंकि इसकी जांच अभी चल ही रही है। लेकिन हम इस तरह के मामलों को लेकर यह सोचने पर जरूर मजबूर हैं कि संबंधों के टूट जाने को आत्महत्या के लिए उकसाना मान लेना कितना ठीक है? दुनिया में दोस्ती और प्रेम स्थाई नहीं हो सकते। स्थाई तो शादियां भी नहीं होतीं, और उनमें भी अलग हो जाने, अलग रहने, या तलाक की गुंजाइश रहती ही है। जब परिवार और समाज के रिवाजों के मुताबिक हुई शादियां भी टूट जाती हैं, तो दोस्ती या प्रेमसंबंध, या लिव इन रिलेशनशिप का खत्म हो जाना कोई अनहोनी बात नहीं मानी जा सकती। ऐसे में अगर हर रिश्ते के टूट जाने को आत्महत्या के लिए उकसाना मान लिया जाएगा, तो फिर किसी रिश्ते के टूटने के साथ हुई आत्महत्या पर जिंदा जोड़ीदार को अनिवार्य रूप से कैद होने लगेगी। इसलिए इस बात को समझना जरूरी है कि रिश्तों को लेकर तोहमत की एक सीमा होना जरूरी है।

हिन्दुस्तानी अदालतों में ढेर सारे ऐसे मामले पहुंचते हैं जिनमें लोगों के बीच बरसों तक प्रेमसंबंध रहे, और देहसंबंध भी जारी रहा। इसके बाद अगर प्रेमी ने शादी से इंकार कर दिया तो प्रेमिका ने बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा दी, और प्रेमी को गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसी नौबत पर हमने पहले भी इसी जगह कई बार लिखा है कि किसी से प्रेम और देहसंबंध बनते हुए क्या भविष्य में इस हद तक झांककर देखा जा सकता है कि उससे शादी हो ही जाएगी या नहीं? अगर इतनी दूर तक का देख पाना इंसान के लिए मुमकिन होता तो बहुत से प्रेम तो कभी शुरू ही नहीं हुए होते। प्रेमसंबंधों के चलते देहसंबंध एक आम बात है, और बरसों तक अगर दो बालिग लोगों के बीच आम सहमति से देहसंबंध हो रहे हैं, तो शादी भर न हो पाने से उसे धोखा देकर बलात्कार मान लेना बहुत ही नाजायज है। हिन्दुस्तान का कानून ऐसी शिकायत का हक देता है, और पुरूष की गिरफ्तारी की गारंटी भी रहती है। लेकिन इस कानूनी इंतजाम के खिलाफ देश की कई अदालतें समय-समय पर राय दे चुकी हैं।

इंसान की सोच की इस संभावना को अनदेखा नहीं करना चाहिए कि आज जो उसे शादी के लायक लग रही है, या लग रहा है, वह हो सकता है कि कल उस लायक न लगे। जिंदगी पत्थर की तरह स्थिर नहीं रहती, वह बहती हुई नदी की तरह आगे बढ़ती है। जिंदगी में कई रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं, साथ रहते हुए लोगों को एक-दूसरे की खूबियां और खामियां दोनों दिखती हैं, और एक-दूसरे के बारे में खयाल बनते और बिगड़ते हैं। प्रेम और देहसंबंधों के बाद भी अगर लोगों को लगता है कि उनकी शादी नहीं निभ पाएगी, तो ऐसी अनचाही शादी और उसके बाद की घरेलू हिंसा या तलाक से बेहतर तो यही है कि लोग प्रेम या लिव इन के दौरान ही अलग हो जाएं। ऐसा संबंध टूट जाना लोगों के लिए, परिवार और समाज के लिए शादी के टूट जाने के मुकाबले कम नुकसान का होता है। शादी के बाद टूटने वाले रिश्तों से बच्चों की जिंदगी भी खराब होती है, अनचाही शादी टल जाने से इसकी नौबत भी नहीं आती। इसलिए दबाव में अनचाही शादी में पडऩे से बेहतर प्रेम और देहसंबंधों का टूट जाना रहता है।

अब सवाल यह है कि हिन्दुस्तान के मौजूदा कानून के मुताबिक दो बालिग लोगों में भी बरसों तक आपसी सहमति से चले देहसंबंधों के बाद भी महिला जब चाहे तब बलात्कार की रिपोर्ट लिखा सकती है, और कानून पुरूष के खिलाफ है। आज जरूरत तो ऐसे कानून को बदलने की है जो एक बालिग महिला को इस तरह का हक देता है जो कि इंसानी मिजाज और आपसी संबंधों के ठीक खिलाफ है। सच तो यह है कि 21वीं सदी में आकर भारतीय बालिग महिला को यह समझने की जरूरत है कि उसका प्रेम, या कि उसका देहसंबंध किसी तरह के स्थायित्व या शादी की गारंटी नहीं है, हो भी नहीं सकती। जब तक यह परिपक्वता नहीं आ जाती, तब तक हिन्दुस्तानी युवतियां एक नाजायज कानून को सहारा मानकर चलती रहेंगीं, और अपनी जिंदगी के लिए अधिक सुरक्षित और बेहतर फैसला नहीं ले पाएंगी। आज किसी बालिग लडक़ी को देहसंबंध में पडऩे के पहले यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ऐसे रिश्ते शादी तक पहुंचने से पहले खत्म हो सकते हैं।

लोगों को याद होगा कि गुजरात में अभी कुछ बरस पहले तक मैत्री करार नाम की एक ऐसी कानूनी व्यवस्था जारी थी जिसे बाद में गैरकानूनी करार दिया गया और बंद करवाया गया। ऐसे मैत्री करार में दो बालिग स्त्री-पुरूष स्टाम्प पेपर पर किसी तय समय के लिए एक-दूसरे के साथ प्रेम और देहसंबंध बनाने का अनुबंध करते थे, और उसके बाद वे एक-दूसरे के लिए जवाबदेह नहीं रह जाते थे। ऐसा शादीशुदा लोगों में भी दूसरों के साथ होता था। समाज में यह आम प्रचलित रिवाज माना जाता था। फिर इसे गैरकानूनी करार दिया गया। अब आज अगर बालिग लोगों में प्रेम और देहसंबंधों के बाद अगर किसी युवक या आदमी को सुरक्षित रहना है, तो क्या उसे स्टाम्प पेपर पर ऐसा एक अनुबंध करना पड़ेगा कि वह शादी के किसी वायदे के बिना ऐसा करने जा रहा है, और इन रिश्तों के चलते अगर कोई तनाव होगा तो उसके लिए वह जिम्मेदार नहीं होगा? हिन्दुस्तान में महिला की सुरक्षा के लिए उसे अधिक अधिकार देने की कई तरकीबें निकाली गई हैं, लेकिन ऐसा कानून बिल्कुल नाजायज है जो कि पुरूष को देहसंबंध के बाद शादी न करने पर बलात्कारी करार दे-दे, या जोड़ीदार की खुदकुशी की नौबत में प्रेमसंबंध टूटने को जिम्मेदार मानकर जोड़ीदार को सजा दे-दे। इक्कीसवीं सदी की भारतीय युवतियों को परिपक्व होने की जरूरत है, और किसी भी तरह के संबंधों में पडऩे के पहले उनके अनिश्चित भविष्य के खतरे को भी उन्हें समझ लेना चाहिए। इसके बाद भी अगर इस बात के कोई सुबूत मिलते हैं कि पुरूष साथी ने उनके साथ बलात्कार किया, या आत्महत्या के लिए उकसाया, तो वह सजा के लायक अलग मामला रहेगा।
-सुनील कुमार

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