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देश की राजधानी दिल्ली के लिए नए साल की शुरुआत एक शर्मनाक, खौफनाक घटना के साथ शुरु हुई। 31 दिसम्बर और एक जनवरी की दरम्यानी रात 20 बरस की अंजलि सिंह नाम की लड़की अपनी सहेली के साथ स्कूटी से लौट रही थी। सुल्तानपुरी के कृष्णविहार इलाके में स्कूटी को एक कार ने टक्कर मारी, इसके बाद अंजलि कार के नीचे आ गई और लगभग 12 किमी तक कार के साथ घिसटती गई। इस हादसे में उसकी जान चली गई।

अंजलि का शव दिल्ली के जौंती गांव इलाके में निर्वस्त्र मिला। जिसके बाद आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि फिर से निर्भया कांड जैसी कोई भयावह घटना न हुई हो। लड़की की मां ने भी यह डर व्यक्त किया कि उनकी बेटी के साथ हादसे से पहले कोई यौन शोषण तो नहीं हुआ, क्योंकि उसके शरीर पर कोई कपड़े नहीं थे।

हालांकि पुलिस पहले से ही इस बात से इंकार कर रही थी कि बलात्कार नहीं हुआ है और गाड़ी में शरीर के फंसने, सड़क पर घिसटने के कारण कपड़े फट गए होंगे। अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी बलात्कार जैसी किसी बात से इंकार किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक अंजलि के शरीर पर जितने भी जख्म हैं, वो तेज झटका लगने और गाड़ी से घिसटने के कारण हैं। चोट लगने और अत्यधिक खून बहने की वजह से अंजलि ने दम तोड़ दिया। अंजलि के मामा ने भी कहा कि परिवार को पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भरोसा है।

गनीमत है कि अंजलि यौन हिंसा का शिकार नहीं हुई। हालांकि जिन परिस्थितियों में उसकी मौत हुई, वह इतनी त्रासद हैं कि उसके बारे में सोचकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस कड़कड़ाती ठंड में कुर्सी या मेज की जरा सी ठोकर भी बर्दाश्त नहीं होती, लेकिन अंजलि तो 12 किमी तक सड़क पर कार के साथ घिसटती रही। उसके हिस्से ऐसी दर्दनाक मौत आई, क्योंकि समाज का एक तबका पूरी तरह संवेदनाओं से शून्य है, इसमें पुलिस प्रशासन भी आता है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट तो बाद में आई, लेकिन पुलिस ने पहले ही बता दिया था कि गाड़ी के साथ घिसटने के कारण कपड़े फट गए और बलात्कार नहीं हुआ है। क्या दिल्ली पुलिस में यह विशेषज्ञता भी है कि वह 12 किमी तक घिसटे हुए शरीर को देखकर बता दे कि मरने से पहले उसके साथ क्या हुआ था, क्या नहीं। पुलिस के दावे और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साम्यता है और पीड़ित परिवार ने भी इसे स्वीकार कर लिया है, तो फिर बलात्कार वाले कोण से जांच अब नहीं होगी। वैसे यह जानकारी भी सामने आई है कि 20 बरस की मृतका अपने परिवार में इकलौती कमाऊ सदस्य थी, उसके पिता की कुछ साल पहले मृत्यु हो गई थी। अंजलि की मां का कहना है कि हमारे पास 10 रुपए भी अंतिम संस्कार के नहीं हैं।

अंजलि शादी या अन्य समारोहों में मेहमानों के स्वागत का काम किया करती थी और रोजाना लगभग 5 सौ रुपए कमाती थी, जिससे घर चलता था। हादसे की रात भी वह बाहर थी और रात साढ़े आठ बजे उसने अपनी मां को फोन पर कहा था कि उसे देर हो जाएगी। इसके बाद सीधे सुबह उन्हें अपनी बेटी की मौत की खबर मिली। अंजलि के घर के हालात देखकर समझा जा सकता है कि अपनी आशंकाएं व्यक्त करने की शक्ति शायद उनमें न हो और उन्होंने वही बात स्वीकार कर ली हो, जो रिपोर्ट में सामने आई है।

जो पांच आरोपी इस मामले में गिरफ्तार किए गए हैं, उन पर अब केवल सड़क दुर्घटना वाले कोण से जांच बिठाई जाएगी और संभवत: सजा भी इसी मुताबिक हो। हालांकि उनका दोष कब और कैसे सिद्ध हो पाएगा, अभी यही नहीं कहा जा सकता, सजा तो उसके बाद की बात है। फिलहाल इस मामले ने राजनैतिक मोड़ भी ले लिया है, क्योंकि आरोपियों में से एक मनोज मित्तल का संबंध भाजपा से बताया जा रहा है। सुल्तानपुरी और मंगोलपुरी में भाजपा के स्वागत वाले पोस्टर्स में मनोज का चेहरा भी है। दिल्ली पर सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी ने इस मामले में भाजपा पर उंगली उठानी शुरु कर दी। जिसके बाद गृहमंत्री अमित शाह ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं। राजनैतिक तौर पर मामला भाजपा के खिलाफ जाता और बात आगे बढ़ती, इससे पहले ही गृहमंत्रालय ने जांच का आदेश दे दिया है। जिससे कम से कम विरोधियों को उंगली उठाने का मौका नहीं मिलेगा।

लेकिन ये सवाल तो उठेगा ही कि आखिर ऐसी किसी भी जांच की नौबत क्यों आई। 31 दिसंबर का वक्त अतिरिक्त सावधानी बरतने का होता है, क्या यह बात दिल्ली पुलिस नहीं जानती है। कोई तेज रफ्तार गाड़ी किसी को ठोकर मार कर भाग जाए या कोई नशे में धुत्त सवार गाड़ी पलटा दे, यह ऐसा मामला नहीं है। इस घटना में एक इंसानी शरीर को सौ-पांच सौ मीटर नहीं, पूरे 12 किमी तक कार के साथ घसीटा गया। खबरें हैं कि एक सामान पहुंचाने वाले लड़के ने और एक दूध वाले ने कार के साथ लड़की को घिसटते देखा और इसकी इत्तिला पुलिस को की, लेकिन पुलिस फिर भी सुस्त बनी रही।

पुलिस को पता होना चाहिए कि नए साल के जश्न में किस तरह असामाजिक तत्व नशा करके वाहन चलाने या हुड़दंग मचाने सड़कों पर निकलते हैं। फिर उसके पास कोई शिकायत आई, तो उसने फौरन कार्रवाई क्यों नहीं की। 12 किमी के उस दायरे में पुलिस का गश्ती वाहन क्यों नहीं था। कायदे से तो राजधानी को ऐसे संवेदनशील मौके पर सुरक्षित रखने के लिए चप्पे-चप्पे पर पुलिस का पहरा होना चाहिए। अगर कड़ा पहरा होता तो शायद दुर्घटना होते ही अंजलि को मदद मिल जाती और उसकी जान बच जाती। अभी कुछ महीने पहले दिल्ली की सड़कों पर निगरानी के लिए 56 हजार सीसीटीवी लगाने की योजना केजरीवाल सरकार ने बनाई थी। क्या ये कैमरे ऐसे हादसों को रिकार्ड करने का ही काम करेंगे या फिर इनसे बचाव का भी कोई इंतजाम होगा।

आखिर में एक सवाल समाज से, कि किस तरह की परवरिश हम अपने लड़कों की कर रहे हैं, जो नशा करने, लड़कियों के साथ बदसलूकी करने और अपने गलत काम पर शेखी बघारने से बाज नहीं आते। जिन लड़कों ने रफ्तार का मजा लेने के लिए एक लड़की को अपनी कार के नीचे घसीटा, क्या वे हाड़-मांस के इंसान नहीं थे, जो इस तरह संवेदनहीन हो गए। क्या मृतका की चीखें उन्हें सुनाई नहीं दी थीं। क्या समाज इन चीखों को सुनकर कोई सबक लेगा।

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