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पूंजीपोषक दक्षिणपंथ और फासीवादी विचारधारा को लोकतंत्र की आड़ में पनपने और फैलने देने का नतीजा कितना खतरनाक हो सकता है, इसका ताजा उदाहरण ब्राजील से सामने आया है। ब्राजील में सत्ता से बाहर हो चुके धुर दक्षिणपंथी नेता जेयर बोलसोनारो के समर्थकों ने रविवार को देश की संसद और सुप्रीम कोर्ट पर हमला बोला, इसके साथ ही राष्ट्रपति भवन का घेराव किया। हालांकि पुलिस ने राजधानी ब्रासीलिया में रविवार शाम को कुछ घंटों की झड़प के बाद प्रमुख इमारतों पर वापस नियंत्रण हासिल कर लिया।
बोलसोनारो समर्थकों के हमले के बाद कम से कम 400 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से वैश्विक समुदाय स्तब्ध रह गया है। चुनावों में धांधली, परस्पर हमले, प्रतिद्वंद्वियों के बीच तकरारें, ये सब लगभग हर देश में होता रहा है। लेकिन निर्वाचित सरकार को नकार के उपद्रव के बूते सत्ता पर नियंत्रण कोशिश लोकतंत्र का अपमान है। दुख की बात ये है कि अपमान का ये सिलसिला किसी न किसी तरह पूरी दुनिया में चल रहा है। राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों की भावनाएं भड़काने वाले, उन्हें अराजक होने के लिए उकसाने वाले अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए जनादेश से खिलवाड़ कर रहे हैं।
ब्राजील में सत्ता के केंद्रों पर हमला राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा के सत्ता ग्रहण के कुछ दिन बाद हुआ है। पिछले साल अक्टूबर में ब्राजील में चुनाव हुए थे, जिसमें लूला डी सिल्वा ने फिर से वापसी कर अपने विरोधियों को हैरान कर दिया था। लूला को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल होने पर खुश होने वाले उनके विरोधी ये मान कर चल रहे थे कि वे अब फिर से सत्ता में नहीं आएंगे।
लेकिन ब्राजील की जनता ने एक बार फिर से उन्हें ही चुना। हालांकि बोलसोनारो को काफी कम अंतर से लूला ने हराया था, मगर फिर भी बोलसोनारो इस हार को बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहे थे, बल्कि उन्होंने हार मानने से ही इनकार कर दिया था। चुनाव के काफी दिनों तक उन्होंने चुप्पी धारण कर रखी थी और उसके बाद बोलसोनारो ने ब्राजील की सेना से संविधान का सम्मान करने का आह्वान किया था। बोलसोनारो ने अपने समर्थकों से कहा था कि देश में समाजवाद को रोकने के लिए सशस्त्र बल ब्राजील की दीवार थे।
उन्होंने यह भी कहा था कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। लोग अभी नहीं संभले तो उन्हें एक दिन जरूर पछताना पड़ेगा। बोलसोनारो की ये बातें तख्ता पलट के लिए उकसाने वाली थीं। पिछले हफ्ते नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण में हिस्सा लेने के बजाय बोलसोनारो ने देश छोड़ दिया था। और अब उनके समर्थकों ने चुनावों में धांधली के नाम पर संसद और सुप्रीम कोर्ट पर हमला बोल दिया।
ब्राजील में जनवरी 2023 में जो कुछ घटा, वैसा ही दो साल पहले 6 जनवरी, 2021 को अमेरिका में हुआ था, जब ट्रंप समर्थकों ने नव निर्वाचित बाइडेन सरकार के विरोध में अमेरिकी संसद पर हमला बोल दिया था। इस वक्त व्हाइट हाउस में रणनीतिकार रहे स्टीव बैनन ने हमले से एक दिन पहले अपने पॉडकास्ट पर कहा था- कल सब कुछ तबाह होने वाला है।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इन्हीं बैनन ने पिछले साल अक्टूबर में ब्राजील में राष्ट्रपति चुनाव के पहले चरण के बाद पॉडकास्ट पर एक मेहमान ने कहा था ‘ये पूरा मामला ठीक नहीं दिखता।’ बीबीसी के मुताबिक बैनन कई हफ़्तों तक चुनावों में धांधली की आधारहीन अफ़वाहों को फैलाते रहे और उन्होंने ब्राज़ीलियन स्प्रिंग हैशटैग को प्रमोट किया। यानी कहीं न कहीं ब्राजील की घटना के तार अमेरिका से जुड़ रहे हैं। या ये कहा जा सकता है कि अमेरिका में ट्रंप और ब्राजील में बोलसोनारो के तार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
ट्रंप के समर्थकों ने अमेरिका में सब कुछ तबाह करने की कोशिश तो पूरी की थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। अब यही असफलता बोलसोनारो समर्थकों को भी मिली है। बोलसोनारो समर्थक इंटरनेट पर अस्तित्व संकट और वामपंथी टेकओवर जैसा नैरेटिव गढ़ रहे हैं। वामपंथ विरोध के नाम पर अराजकता फैलाने की यही कोशिश अमेरिका में भी की गई थी। हालांकि लोकतंत्र की ताकत के आगे ये नापाक मंसूबे ध्वस्त हो गए।
स्टीव बैनन ने ब्राज़ील की सरकारी इमारतों में जबरन घुसने वालों को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ क़रार दिया है, जबकि लूला डी सिल्वा ने इन हमलों को ‘बर्बर’ कहा है और बोलसोनारो समर्थकों को ‘फासीवादी’ बताया है। संरा महासचिव, राष्ट्रपति जो बाइडेन समेत कई वैश्विक नेता ब्राजील की आत्मा को चोट पहुंचाने वाली इस घटना की निंदा कर रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा को टैग करते हुए ट्वीट किया- ब्रासीलिया (राजधानी) में सरकारी संस्थानों में दंगों और तोड़फोड़ की खबरों से बेहद चिंतित हूं। लोकतांत्रिक परंपराओं का सभी को सम्मान करना चाहिए। हम ब्राजील के अधिकारियों को अपना पूरा समर्थन देते हैं।

ब्राजील और भारत ब्रिक्स में भागीदार हैं, इसके अलावा दोनों देशों के बीच परस्पर मैत्रीपूर्ण संबंध हैं, इस नाते प्रधानमंत्री मोदी का वहां के घटनाक्रम पर फिक्र जतलाना स्वाभाविक है। मगर जब वे ब्राजील के लोगों से लोकतांत्रिक परंपराओं के सम्मान की अपेक्षा कर रहे हैं, तो उन्हें भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों में आ रही गिरावट पर भी गंभीरता से ध्यान देना होगा।
भाजपा ने कितने राज्यों में निर्वाचित सरकारों के विधायकों को खरीद कर सत्ता हासिल की है। केंद्र सरकार पर बार-बार जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगते हैं। विपक्ष के नेताओं पर निजी हमले किए जाते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बार-बार हमले हो रहे हैं। ये तमाम मिसालें लोकतंत्र में गिरावट की ओर इशारा कर रही हैं। अमेरिका और ब्राजील में सरकारों ने हालात संभाल लिए, लेकिन भारत में कभी हालात बिगड़े ही नहीं, ये मौजूदा सरकार को सुनिश्चित कर लेना चाहिए।

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