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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सर्वमित्रा सुरजन।।

अमृतकाल में देश की राजनीति में सारी बहस एक इंसान के ठिठुरने या न ठिठुरने पर आकर टिक जाएगी, ये किसने सोचा था। महामानव को पता करवाना चाहिए कि इसके पीछे कोई अंतरराष्ट्रीय साजिश तो काम नहीं कर रही। महामानव से छोटे वाले यानी उपमहामानव ने तो कुछ दिनों पहले कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों को खत्म बता दिया था।

राहुल गांधी ने कह दिया कि जब तक वे ठिठुरेंगे नहीं, स्वेटर नहीं पहनेंगे। अपनी इस कड़ी प्रतिज्ञा का खुलासा उन्होंने हरियाणा आकर किया। हालांकि खुद ही बताया कि प्रतिज्ञा तो मध्यप्रदेश में तभी ले ली थी, जब कुछ बच्चे फटे हुए कपड़ों में उनके साथ फोटो खिंचाने आए और वो ठंड से कांप रहे थे। उन गरीब बच्चों के पास स्वेटर तो दूर की बात पहनने के लिए पूरे कपड़े भी नहीं थे। अब राहुल गांधी ने तो एक बार कमिटमेंट कर ली, तो वे न अपनी मां की सुन रहे हैं, न अन्य स्नेहीजनों की, जो बार-बार उनसे स्वेटर पहनने का आग्रह कर रहे हैं।

भाजपा भी इंतजार में है कि राहुल गांधी कब ठिठुरेंगे। उनके ठिठुरने पर ही बहुत सारी चीजें टिकी हुई हैं। वैसे भी राहुल गांधी भाजपा के साथ ठीक नहीं कर रहे हैं। पिछले आठ सालों से कितना सही हिसाब-किताब चल रहा था। एक आदमी, एक परिवार के पीछे पूरी ट्रोल आर्मी लगी हुई थी। इधर से आरोपों की मिसाइल दागी जाती थीं और उधर से कोई पलटवार ही नहीं होता था। ऐसी एकतरफा जीत के भरोसे ही भाजपा ने अगले दस नहीं पचास साल की सत्ता का हिसाब बिठा लिया था। भाजपा इसी मुगालते में थी कि अब तो कांग्रेस खत्म हो गई है। उसे जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि कभी ऐसे भी दिन आएंगे, जब राहुल गांधी का मजाक उड़ाने की जगह तारीफें सुनने मिलेंगी।

राहुल गांधी भी छिपे रुस्तम निकले। पहले तो भाजपा और उसके महामानव के सामने साढ़े तीन हजार किमी पैदल चलने की चुनौती पेश कर दी और वो भी कुछ बोलकर नहीं, खुद ही चलकर पेश कर दी। अब केवल टी शर्ट में हाड़ कंपाने वाली सर्दी में चले जा रहे हैं। महामानव ऐसा कारनामा करते तो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग की महिमा बताकर प्रचारित कर दिया जाता। बताया जा सकता था कि महामानव ने मगरमच्छ पकड़ने का कमाल ही नहीं किया, खूंटी लगी गुफाओं में चश्मा पहनकर जो ध्यान लगाया है, उससे उन्हें ठंड न लगने का वरदान मिला हुआ है।

लेकिन महामानव तो शॉल, जैकेट, टोपी सब कुछ पहने दिखाई दिए। और ये राहुल गांधी एक ही टी शर्ट में चले जा रहे हैं। अगर टी शर्ट के रंग बदलते रहते तब भी उन्हें घेरने में आसानी होती। कपड़ों से पहचान करने का खास गुण आखिर ऐसे मौकों पर ही काम आता है। यहां भी भाजपा को निराशा ही हाथ लग रही है। राहुल केवल सफेद टी शर्ट में दिख रहे हैं। कोशिश तो की गई थी कि टी शर्ट के नीचे झांककर देखा जाए कि वहां कौन सा राज छिपा है। मगर वहां भी कुछ सफेद सा ही दिखाई दिया। सुनने में आया है कि उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक राहुल गांधी को ठंड न लगने के कारण पर शोध करवाने वाले हैं। पाठक जी जानते हैं कि उत्तरप्रदेश की राजनीति में कोई भी पद आसानी से नहीं मिलता। इस बार उपमुख्यमंत्री का पद मिला है, तो आलाकमान तक अपने अंक बढ़वाने का यह अच्छा मौका है। जब वे बता देंगे कि राहुल गांधी ठिठुरते क्यों नहीं हैं, तो हो सकता है प्रदेश के बाद देश की राजनीति में उनके लिए जगह निकल आए। टी शर्ट के नीचे ताका-झांकी से तो रिसर्च शब्द ज्यादा सम्मानजनक लगता है।

अमृतकाल में देश की राजनीति में सारी बहस एक इंसान के ठिठुरने या न ठिठुरने पर आकर टिक जाएगी, ये किसने सोचा था। महामानव को पता करवाना चाहिए कि इसके पीछे कोई अंतरराष्ट्रीय साजिश तो काम नहीं कर रही। महामानव से छोटे वाले यानी उपमहामानव ने तो कुछ दिनों पहले कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों को खत्म बता दिया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये लोग खत्म ही नहीं हुए हैं और कोई खुफिया तरीके की राजनीति कर रहे हैं, जिससे विपक्ष तो टी शर्ट में बेखौफ चले और सरकार ठिठुरने पर मजबूर हो जाए। वैसे भी पूस बीत गया, माघ का महीना आ गया। तीन दिनों में मकर संक्रांति आ जाएगी। सूर्य उत्तरायण हो जाएंगे। गुजरात में पतंगों के पेंच आपस में भिड़ने लगेंगे। जगह-जगह खिचड़ी दान दी जाएगी। तिल और गुड़ खाकर मीठा-मीठा बोलने की शुभकामनाएं बांटी जाएंगी।

लेकिन इस सबसे क्या दिल्ली का मौसम बदलेगा। ऐसा लगता तो नहीं, क्योंकि मौसम विभाग अभी कुछ दिन औऱ शीतलहर की चेतावनी दे रहा है। ये चेतावनी वो किस उपग्रह से मिली जानकारी के बाद दे रहा है, इसकी भी सघन जांच की सलाह सरकार को दी जानी चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि इधर सरकार जी-20 की अध्यक्षता में मुदित है, और उधर अंतरराष्ट्रीय मंच पर टेली प्राम्प्टर ही हटाने के इशारे ही शायद कर दिए गए हैं। अगर ये सब अटकलबाजी लग रही हो, तो फिर इस तथ्य पर गौर किया जाना चाहिए कि एकदम से अडाणीजी इंटरव्यू मटेरियल क्यों बन गए। इतने सालों तक तो किसी ने उनसे नहीं पूछा कि आपकी सफलता का राज क्या है। अब अदालत लगवाकर राज उगलवाने की आखिर कौन सी मजबूरी आ गई। क्या मीडिया को भी अब ठंड लगने लगी है।

नागपुर में तो बर्दाश्त करने लायक सर्दी ही पड़ती है। मगर इस बार वहां का मौसम भी ठीक नजर नहीं आ रहा। ठिठुरते हुए जबान लड़खड़ाती है, और ऐसे ही लड़खड़ाते हुए नागपुर से संदेश आ गया कि इस्लाम को कोई खतरा नहीं है। लेकिन मुसलमानों को वर्चस्व की अपनी गलत बयानबाजी छोड़ देनी चाहिए। इसे ठंड का असर ही कहेंगे, क्योंकि हिंदुओं को तो पिछले कई दशकों से उकसाया जा रहा है कि गर्व से कहो हम हिंदू हैं, लेकिन मुसलमानों को नसीहत दी जा रही है कि अपने आपको महान मत बताओ।

यानी देश के जरूरी मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए फिर हिंदू-मुसलमान मुकाबले का नया मुद्दा खड़ा कर दिया गया है। कम से कम इस बहाने नागपुर को फिर से मीडिया में जगह मिलने लगेगी। वर्ना राहुल गांधी ने तो कुरुक्षेत्र में महाभारत को जिस तरह वर्तमान संदर्भों के साथ जोड़ा था, उससे फिर से पांडवों का पलड़ा ही भारी नजर आने लगा था।

पांडव वैसे भी हर बार कौरवों पर भारी ही पड़ते रहे। महर्षि वेदव्यास अगर हर मौके पर पांडवों को न जिताते और धर्मयुद्ध का मर्म न समझाते तो आज कौरवों के लिए कितनी आसानी हो गई होती। अब एक तो सत्ता बचाने की मुश्किल है, टू मच डेमोक्रेसी के कारण चुनाव पर चुनाव हैं, ऊपर से ठंड ने सारे समीकरण बिगाड़ दिए हैं। ये जो प्रवासी भारतीय सम्मेलन में गड़बड़ियां हुई हैं, तो कहीं न कहीं इसके पीछे भी ठंड का ही हाथ है। सरकार अब ठंड से ठिठुरने लगी है। ठंड के कारण सारे गर्मागर्म मुद्दे ठंडे पड़ गए हैं। भाजपा इसी उधेड़बुन में लगी है कि देश में सियासी गर्मी कैसे पैदा की जाए।

नागपुर से जो कोशिश हुई, उस पर फौरन जवाबों का ठंडा पानी फेंक दिया गया। इधर जोशीमठ की दरारों के कारण विकास का मुद्दा ठंडा पड़ गया है। भारत जोड़ो यात्रा को सूक्ष्मदर्शी से देख-देख कर जो थोड़ी बहुत गड़बड़ियां निकाली जाती हैं, उन्हें भी कांग्रेसी फौरन बर्फीली हवा में उड़ा दे रहे हैं। तो अब एक केवल इस बात का ही इंतजार है कि राहुल गांधी कब ठिठुरेंगे। जब उन्हें ठंड में ठंड का अहसास हो जाएगा। जब उनके टी शर्ट के ऊपर स्वेटर आ जाएगा, तब जाकर सरकार की ठिठुरन कम होगी।

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