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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार।।

महाराष्ट्र में अभी सुबह-सुबह एक निजी मुसाफिर बस और ट्रक में टक्कर हुई जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई है, और बहुत से जख्मी हो गए हैं। बस की हालत देखें तो लगता है कि मानो अफगानिस्तान या इराक में बम के धमाके से उड़ा दी गई बस हो। ऐसी कोई सुबह नहीं होती जब इस किस्म की पांच-दस थोक मौतों की कोई खबर न आई हो। हर रात के अंधेरे में देश भर में जगह-जगह हादसों में ऐसी मौतें हो रही हैं, और अगर उनका आंकड़ा आधा दर्जन पार कर जाता है, तो ही उनकी खबर प्रदेश की सरहद पार कर पाती है। इक्का-दुक्का मौतों की तो मानो कोई गिनती नहीं है। सरकारी आंकड़ों को देखें तो 2021 में चार लाख बारह हजार सडक़ हादसे हुए हैं जिनमें डेढ़ लाख से अधिक लोग मारे गए हैं, और पौन चार लाख से अधिक लोग जख्मी हुए हैं। जाहिर है कि बाद में इन घायलों में से और बहुत सी मौतें हुई होंगी, या मौत से बदतर जिंदगी चल रही होगी। सडक़ हादसों का यह हाल भयानक है, लेकिन इस पर चर्चा इसलिए जरूरी है कि इसे रोका जा सकता है।

आए दिन शहरों की खबर आती है कि उनके किनारे हाइवे और रिंगरोड पर किस तरह ट्रांसपोर्ट कारोबारियों की स्थाई पार्किंग चलती है, और जिन दुपहिया-तिपहिया गाडिय़ों को सर्विस रोड से चलना चाहिए, वे हाइवे पर चलने को मजबूर रहती हैं, दुपहिया सवार लोगों की अधिकतर मौतें इसी तरह की सडक़ों पर होती हैं, और हर बार यह बात सामने आती है कि उन्होंने हेलमेट नहीं लगाया हुआ था। केन्द्र सरकार ने हेलमेट लगाने को जरूरी बना दिया है, और न लगाने पर एक जुर्माना भी लगाया है। लेकिन देश के अधिकतर प्रदेशों में राज्य सरकारें अपने लोगों के सिर पर बोझ रखकर उन्हें नाराज करना नहीं चाहतीं, इसलिए वोटर की चापलूसी के मकसद से उसकी आदत खराब होने दी जाती है, और हेलमेट, सीटबेल्ट जैसे नियमों को कुछ महानगरों को छोडक़र अधिकतर जगहों पर लागू नहीं किया जाता। हम शुरू से ही इसके लिए अभियान चलाते आए हैं, लेकिन सरकार ने मानो कसम खा रखी है कि वह किसी भी कीमत पर वोटर को नाराज नहीं होने देगी। इसलिए कंधे और कान के बीच मोबाइल दबाए हुए दुपहिया चलाते लोगों को भी कहीं नहीं रोका जाता, और न ही अंधाधुंध रफ्तार से सांप की तरह आड़ी-तिरछी मोटरसाइकिल चलाने वालों को रोका जाता। यह तय है कि अगर राज्य सरकार हेलमेट को लागू कर दे, दुपहिया और मोबाइल के मेल को खत्म कर दे, तो रोजाना आधा दर्जन मौतें तो छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में टल सकती हैं।

लेकिन बस और ट्रक जैसी टक्कर हेलमेट से परे का मामला है। हिन्दुस्तान के किसी भी राज्य में जितनी कारोबारी गाडिय़ां रहती हैं, वे आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस दोनों की मंजूरी और निगरानी वाली रहती हैं। ये गाडिय़ां ओवरलोड भी चलती हैं, बिना फिटनेस की भी चलती हैं, और अंधाधुंध रफ्तार से तो चलती ही हैं। ड्राइवर कई बार नशे में रहते हैं, और कई बार उनकी नींद अधूरी हुई रहती है। इन सबके साथ-साथ उन्हें माल और मुसाफिर को जल्द से जल्द मंजिल तक पहुंचाने का एक किस्म से ठेका दे दिया जाता है, और यहीं से रफ्तार और हड़बड़ी का जानलेवा मुकाबला शुरू होता है। फिर हिन्दुस्तान में जगह-जगह सडक़ों का हाल खराब है, सावधानी के निशान लगे नहीं रहते, कई गाडिय़ां बिना लाईट के चलती हैं, कई गाडिय़ां सडक़ किनारे बिना लाईट जलाए खड़ी रहती हैं, और यह सब पुलिस और आरटीओ की लापरवाही का नतीजा रहता है। ये दोनों ही विभाग परले दर्जे के भ्रष्टाचार में डूबे हुए रहते हैं, और ये जितनी मोटी कमाई करते हैं, वह लोगों की जिंदगी बेचकर ही हो पाती है। अगर इन दोनों विभागों के लोग ईमानदारी से जांच और जुर्माना करने लगें, तो सडक़ मौतें घटकर एक चौथाई रह जाएंगी। लोगों को जानलेवा लापरवाही, जानलेवा रफ्तार, और गाडिय़ों की जानलेवा कंडम हालत की छूट देकर जो कमाई की जाती है, उसी से सडक़ों पर लाशें बिखरती हैं।

केन्द्र सरकार सडक़ सुरक्षा के लिए कई तरह के नियम तो बना सकती है, लेकिन उन पर अमल राज्य सरकार के दायरे की बात रहती है। ऐसे में केन्द्र सरकार को यह सोचना चाहिए कि किस तरह सडक़ों की हिफाजत के काम में, हादसों को रोकने में आम जनता की मदद ली जा सकती है। जनता की भागीदारी से अगर उनके साथ मौजूद पुलिस और आरटीओ के अफसर जांच करेंगे, तो हो सकता है कि उतने संगठित भ्रष्टाचार की गुंजाइश न रह जाए। वैसे तो हिन्दुस्तान का राष्ट्रीय चरित्र देखें, तो एक खतरा यह भी लगता है कि जनता की ऐसी भागीदारी के नाम पर जनता को भ्रष्ट बनाने का भी एक सिलसिला शुरू हो सकता है। लेकिन कुछ समय पहले सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने यह कहा था कि केन्द्र सरकार ऐसा कानून बनाने जा रही है कि सडक़ों पर नियम तोडऩे वाली गाडिय़ों के फोटो-वीडियो लोग अगर पुलिस को भेजेंगे, तो उनके आधार पर होने वाले जुर्माने में उन्हें भी एक हिस्सा ईनाम की शक्ल में मिलेगा। हमने पहले भी इस सोच की तारीफ की थी, हालांकि कुछ अच्छे पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ लिखा था, और लिखा था कि सरकार अपना काम खुद करने के बजाय लोगों पर इसकी जिम्मेदारी डाल रही है। हम ऐसी सोच से सहमत नहीं हैं, और हमारा मानना है कि देश को चलाने का जिम्मा अकेले सरकार पर नहीं हो सकता, और हर नागरिक का यह जिम्मा और अधिकार है कि वे जहां कानून टूटते देखें, वे सरकार को खबर करें। हर जगह तो पुलिस को तैनात करना दुनिया की किसी भी सरकार के लिए मुमकिन नहीं है, और आम लोगों को भी अपनी नागरिक जवाबदेही निभानी चाहिए। और ऐसा करने में अगर जुर्माने के एक हिस्से पर उनका हक भी तय किया जा रहा है, तो यह सचमुच ही अच्छी बात है। वैसे तो केन्द्र सरकार के किए बिना भी कोई समझदार और जिम्मेदार राज्य सरकार भी यह काम कर सकती है, और हम तो नितिन गडकरी की बात के दस-बीस बरस पहले से यह सुझाव लिखते आए हैं। किसी भी जिम्मेदार राज्य सरकार को सडक़ों के नियम तोडऩे वालों के सुबूत भेजने के लिए जनता का हौसला बढ़ाना चाहिए, और जुर्माना वसूली के बाद उन्हें एक हिस्सा देना चाहिए, इससे हादसे रूकेंगे, और मौतें थमेंगी।

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