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देश में नफरत से मोहब्बत और मोहब्बत से बैर के उदाहरण हर दिन नए-नए रूप में सामने आते हैं। लव जिहाद का शिगूफा, अंतरधार्मिक विवाहों पर सरकारी नजर रखने की कोशिश, सम्मान के नाम पर प्रेमी युगल या अपनी ही संतानों की हत्या के कई प्रकरण देश ने देखे हैं। लेकिन अब प्रेम के खिलाफ संस्कारों को खड़ा करने के नाम पर एक नया ही पैंतरा आजमाया गया है।
पशुपालन और डेयरी विभाग के तहत आने वाले भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने एक नोटिस में कहा कि लोग 14 फरवरी के दिन गायों को गले लगाएं, इससे ‘भावनात्मक संपन्नता आएगी और सामूहिक प्रसन्नता बढ़ेगी।’ बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि यह अपील केंद्रीय मत्स्य और पशुपालन मंत्रालय के निर्देश पर जारी की गई है।
नोटिस में लिखा है कि सभी गाय प्रेमी गौ माता की महत्ता को ध्यान में रखते हुए तथा जिंदगी को खुशनुमा और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण बनाने के लिए 14 फरवरी को काउ हग डे मना सकते हैं। बोर्ड के सचिव डॉ. सुजीत कुमार दत्ता के हस्ताक्षर वाली अपील में लिखा है कि, ‘हम सभी जानते हैं कि गाय भारतीय संस्कृति और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, हमारे जीवन को बनाए रखती है, पशु धन और जैव विविधता का प्रतिनिधित्व करती है। इसे ‘कामधेनु’ और ‘गौमाता’ के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह एक मां की तरह पौष्टिक प्रकृति की है, जो मानवता को सभी धन प्रदान करने वाली है।’ इसमें यह भी कहा गया है कि वैदिक परंपराएं पश्चिमी संस्कृति की प्रगति के कारण लगभग विलुप्त होने के कगार पर हैं और पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध ने हमारी भौतिक संस्कृति तथा विरासत को लगभग भुला दिया है।
गाय हो या कोई भी जानवर, पशुप्रेमियों को उन्हें गले लगाने में कोई दिक्कत नहीं है। सरकारी नोटिस के बिना भी समाज में निरीह, बेजुबान प्राणियों की देखभाल करने वाले अपने काम में लगे ही रहते हैं। लेकिन भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने जिस तरह 14 फरवरी को ही काउ हग डे यानी गौ आलिंगन दिवस मनाने कहा है और इसमें पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति की चकाचौंध का जिक्र हुआ है, उससे समझ आता है कि वैलेंटाइन्स डे मनाने से रोकने की यह एक और पहल है। अब तक बजरंग दल जैसे दक्षिणपंथी संगठनों ने नैतिक पुलिस बनने का जिम्मा संभाल रखा था, अब बाकायदा सरकारी विभाग इस जिम्मेदारी को निभाने आगे आ रहे हैं। करीब 10-12 साल पहले वैलेंटाइन्स डे पर संदेश प्रसारित होने लगे थे कि 14 फरवरी को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी, लेकिन शहीदों को याद करने की जगह हम प्रेम के फूहड़ प्रदर्शन वाले त्योहार को मनाने लग गए हैं। देशप्रेम के नाम पर बहुत से लोग बिना सोचे-विचारे इन संदेशों को आगे बढ़ाने लग जाते थे।
जबकि भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च को फांसी दी गई थी। शहीद दिवस को लेकर फैलाया गया झूठ जल्द ही लोगों ने समझ लिया। वैलेन्टाइन्स डे मनाने का जोश समाज में बरकरार रहा, तो प्रेमी जोड़ों को सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने, डराने, प्रताड़ित करने की दबंगई भी दिखाई गई। इसके उदाहरण भी हर साल मिल ही जाते हैं। फिर भी अपने प्रेम का उत्सव मनाने से लोग पीछे नहीं हटते। पिछले कुछ बरसों से वैलेन्टाइन्स डे पर मातृ-पितृ दिवस मनाने की मुहिम शुरु हुई। जिन देशों में वैलेन्टाइन्स डे पूरे उमंग से मनाया जाता है, वहां मदर्स डे, फादर्स डे, डॉटर्स डे भी उसी उत्साह से मनाए जाते हैं।
लेकिन पाश्चात्य सभ्यता से दूरी के नाम पर प्रेम से छिटकने वाले लोगों ने कोशिश की कि इस दिन को भारतीय समाज से हटाने के लिए माता-पिता के प्रेम को मैदान में उतारा जाए। लेकिन ऐसा लगता है कि इस मुहिम में उन्हें खास सफलता नहीं मिली। क्योंकि अब भारतीय समाज का बड़ा तबका वैलेन्टाइन्स डे नहीं पूरा सप्ताह मनाता है और इसमें केवल प्रेमी जोड़े ही एक दूसरे से प्रेम का इजहार और तोहफों का आदान-प्रदान नहीं करते, बल्कि नयी पीढ़ी अपने दोस्तों, भाई-बहनों, मां-बाप, निकट संबंधियों सबसे अपने लगाव का खुलकर इजहार करने लगी है। और अब तो ये चलन भी हो गया है कि आप खुद को महत्व देते हुए, खुद से प्यार का वादा करें। जिन लोगों को वैलेन्टाइन्स डे मनाना होगा, वो किसी भी तरह इसे मना ही लेते हैं। बाजार भी इस दिवस का जोश बढ़ाने में पूरा योगदान करता है। आखिर ऐसे दिवसों का अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान रहता है।
लेकिन अब जो सरकारी फरमान आया है, वह प्रेम की भावना ही नहीं, अर्थव्यवस्था पर भी चोट करने वाला साबित हो सकता है। विचारणीय यह है कि प्रेम भाव से इतना अलगाव क्यों बढ़ाया जा रहा है। अपनी संस्कृति और संस्कारों पर भरोसा रखने की जगह दूसरों की संस्कृति को कोसने की नौबत क्यों आ गई है। वैसे याद रखने की बात ये है कि भारतीय संस्कृति में प्रेम कभी वर्जित नहीं रहा है। और जहां तक बात गाय को माता मानने की है, तो गौपालकों के इस देश में सदियों से गौ माता की पूजा अलग-अलग अवसरों पर करने की परिपाटी चली आई है। कभी किसी दिन को काउ हग डे घोषित करने की जरूरत नहीं पड़ी।
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड को अगर गायों की इतनी फिक्र थी तो लंपी वायरस को प्रसारित होने से रोकने की कोशिश करते, जिससे लाखों गायों का जीवन बच जाता। देश के कई राज्यों में अब भी सैकड़ों गाएं लावारिस, लाचार सड़कों पर भटकती हैं। कई गौ शालाओं की स्थिति बुरी है। बूढ़ी गायों को लोग मरने के लिए सड़कों पर छोड़ देते हैं। इन सब विसंगतियों पर सरकार का ध्यान होना चाहिए। सहकारिता के सिद्धांत के साथ गौ शालाओं का संचालन, डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने जैसे कार्य किए जाएं, तो दूध की कीमतें इस तरह नहीं बढ़ेंगी। तब जाकर गाय सही अर्थों में माता जैसी पौष्टिकता और समृद्धि दे पाएंगी।

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