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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

दुनिया के कई सबसे प्रतिष्ठित अखबारों के रिपोर्टरों ने मिलकर अभी एक सबसे बड़ी सनसनीखेज रिपोर्ट पेश की है जिसमें एक इजराइली कारोबारी को दुनिया के दर्जनों देशों ने चुनाव प्रभावित करने का ठेका लेते पाया गया है। रहस्य के पर्दों में रहने वाला यह इजराइली आखिरकार जाकर शातिर रिपोर्टरों के स्टिंग ऑपरेशन में फंसा, और वह कम्प्यूटर स्क्रीन पर इन रिपोर्टरों को यह बताते हुए कैद हुआ कि वे किस तरह लोगों के ईमेल खातों में घुसपैठ करते हैं, और सोशल मीडिया अकाऊंट्स को प्रभावित करके चुनाव के वक्त माहौल बदलने का काम करते हैं। बरसों से इस इजराइली चुनावी-सुपारी लेने वाले कारोबारी के बारे में चर्चा होती थी, लेकिन वह कभी सामने नहीं आया था, कभी फंसा नहीं था, लेकिन अब वह उजागर हो गया है, और उसने जिन दर्जनों देशों के नाम गिनाए हैं कि उसने वहां के चुनावों को प्रभावित किया है, उनमें भारत का नाम भी है। और उसका यह दावा भी है कि जिन अब तक 31 देशों में उन्होंने चुनाव प्रभावित किए हैं, उनमें से 26 देशों में नतीजे उनके मनमाफिक आए हैं। उन्होंने राजनीतिक दलों, सरकारों, और कारोबारियों से ठेके लेकर जनमत प्रभावित करने के ऐसे बड़े-बड़े साइबर-अभियान चलाए थे।

इस एजेंसी का भांडाफोड़ करने के लिए पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय संगठन, आईसीजे (इंटरनेशनल कन्सोर्र्टिएम ऑफ इंवेस्टीगेटिव जर्नलिस्ट्स, की जिस टीम में काम किया उसमें 30 से ज्यादा मीडिया संस्थानों के पत्रकार जुड़े हुए थे। इन पत्रकारों ने संभावित ग्राहक बनकर इस इजराइली कारोबारी से संपर्क किया था, और नए ग्राहक फंसते देख इस इजराइली ने बारीकी से यह बताया कि वे किस तरह किसी के भी ईमेल अकाऊंट को हैक कर सकते हैं, सोशल मीडिया पर कम्प्यूटर एप्लीकेशनों की मदद से चलाए जाने वाले अनगिनत अकाऊंट से वे किसी पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में या उसके खिलाफ माहौल खड़ा कर सकते हैं। यह इजराइली कारोबारी वहां का रिटायर्ड फौजी या खुफिया अफसर रहा हुआ है, और वह बिना किसी पहचान के, अपना नाम और चेहरा छुपाए हुए इसी तरह के खुफिया अभियान चलाने का कारोबार करता है। लोगों को याद होगा कि दो बरस पहले जब इजराइली फौजी घुसपैठिया सॉफ्टवेयर पेगासस का भांडा फूटा था, तो वह भी पत्रकारों की इसी किस्म की एक टोली की बनाई हुई रिपोर्ट थी, और उसमें इजराइली कंपनी का यह दावा था कि वह सिर्फ सरकारों को ही यह स्पाइवेयर बेचती है। इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी दावा था कि भारत में उसका इस्तेमाल हुआ है। फिर भारत के सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला पहुंचने पर अदालत के सामने भारत सरकार ने साफ-साफ यह कहा था कि वह ऐसा कोई हलफनामा नहीं देगी कि उसने पेगासस खरीदा या उसका इस्तेमाल किया है या नहीं। अभी तक सुप्रीम कोर्ट में इसकी जांच चल ही रही है, कि यह दूसरा इजराइली कारोबार सामने आया है जो लोगों के ईमेल अकाऊंट में घुसपैठ तो करता ही है, वह साथ-साथ जनधारणा बनाने, और जनमत को मोडऩे का ठेका भी लेता है ताकि चुनावों को प्रभावित किया जा सके।

पिछले कई बरस से भारत में भी यह फिक्र चल रही है कि सोशल मीडिया पर तमाम वक्त कुछ ताकतें एक खास किस्म के एजेंडा को बढ़ाने का काम कर रही हैं। लेकिन इसके कोई सुबूत सामने नहीं आए थे। यह पहला ऐसा सुबूत दिख रहा है जिसमें यह इजराइली कंपनी साइबर-जुर्म करके चुनावों को प्रभावित करने का ठेका ले रही है, और उसके ग्राहकों की लिस्ट में हिन्दुस्तानी चुनाव की कोई एक ताकत भी है। यह जांच किसी किनारे तक पहुंचे या न पहुंचे, लोगों को इस खतरे को समझने की जरूरत है कि जिस सोशल मीडिया को दुनिया एक बहुत बड़ा लोकतांत्रिक औजार मानकर चलती है, वह लोकतंत्र के खिलाफ एक उतने ही बड़े भाड़े के हथियार की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर यह रिपोर्ट सही है, और इजराइली घुसपैठिया कंपनी इजराइल की बहुत सी दूसरी बदनाम निगरानी-कंपनियों की तरह काम करती है, तो हिन्दुस्तान जैसे लोकतंत्र के लिए यह एक बहुत बड़ा खतरा है। हिन्दुस्तान के लिए खतरे को इस हिसाब से समझना चाहिए कि आज इजराइल के पूरे निर्यात का आधा हिस्सा अकेला हिन्दुस्तान खरीदता है। इसके अलावा भारत की आज की सरकार अपनी विदेश नीति में इजराइल के साथ खड़ी हुई है, और फिलीस्तीनियों को भारत का ऐतिहासिक और परंपरागत समर्थन अब तक खत्म हो गया दिखता है। ऐसे में भारत की कुछ ताकतें अगर एक ग्राहक की शक्ल में ऐसे इजराइली कारोबारी को ठेका देती हैं, तो यह बात इजराइल की सरकार और वहां के सारे कारोबार को भी माकूल बैठेगी क्योंकि वह कारोबार को जारी रखने वाली बात होगी। इसलिए भारत में इस पर अधिक बारीकी और चौकन्नेपन से गौर किया जाना चाहिए कि इस देश के किस चुनाव में किस पार्टी या संगठन, सरकार या नेता ने इन्हें जनमत प्रभावित करने की सुपारी दी थी।

सोशल मीडिया अच्छा हो या बुरा, वह अब एक अपरिहार्य ताकत बन चुका है, और किसी भी चुनाव में इसकी ताकत को अनदेखा करना ठीक नहीं होगा। फिर फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म दुनिया के कई देशों में तरह-तरह की जांच और संसदीय सुनवाई का सामना कर रहे हैं कि वह किस तरह अपने इस्तेमाल करने वाले लोगों की सोच को प्रभावित करने का काम करते आया है। फेसबुक और ट्विटर जैसे अमरीकी कारोबार को अमरीका में ही संसदीय जांच का सामना करना पड़ रहा है कि वे राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने, या पिछले राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के उकसावे पर हिंसा को बढ़ाने का काम करते रहे हैं। ऐसे माहौल में हिन्दुस्तान जैसे देश को यह समझना चाहिए कि अब यहां ईवीएम से चुनावी धोखाधड़ी के आरोपों से चिपके रहने से कुछ साबित नहीं होगा। अब सोशल मीडिया के खतरों को समझना होगा, और अनगिनत इजराइली कंपनियों की बदनीयत पर भी नजर रखनी होगी कि वे लोकतंत्रों को किस तरह अपना वफादार ग्राहक बनाने में लगी रहती हैं।

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