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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

हिन्दी फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर अपनी फिल्मों से कहीं अधिक अपनी सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता के लिए खबरों में रहती हैं। वे आला दर्जे की अभिनेत्री हैं लेकिन देश में धर्मनिरपेक्षता के लिए वे एक खुली लड़ाई लड़ती हैं, और जेएनयू से निकले अमूमन अच्छे लोगों के मुताबिक वे अपने सिद्धांतों के लिए सडक़ों पर लडऩे से पीछे नहीं रहतीं। ऐसे में एक मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ता से उनकी शादी को लेकर देश के साम्प्रदायिक लोग बुरी तरह घायल हैं। वे तमाम लोग भी जो स्वरा को रात-दिन सोशल मीडिया पर बलात्कार की धमकियां देते थे, उनके बारे में अश्लील और गंदी बातें लिखते थे, उन्हें भी अचानक एक हिन्दू लडक़ी के मुस्लिम से शादी करने पर चोट लगी है। तरह-तरह के लोग तरह-तरह की अपमानजनक बातें लिख रहे हैं और मानो इसी के एक जख्मी ने कर्नाटक में अभी एक ताजा साम्प्रदायिक बयान दिया है।

कर्नाटक के घोर साम्प्रदायिक संगठन श्रीराम सेना को उसकी दूसरी कट्टर बातों के लिए भी जाना जाता है, और कई बरस पहले के वो वीडियो लोगों को याद होंगे जिनमें बेंगलुरू शहर के पब में पहुंची लड़कियों को निकाल-निकालकर मारते हुए इस श्रीराम सेना के नेता-कार्यकर्ता कैमरों पर कैद हुए थे। उस समय से इसके मुखिया प्रमोद मुथालिक खबरों में आए थे, और अब तक वे अपने हिंसक बयानों को लेकर हर कुछ महीनों में अखबारी सुर्खियों में लीज नवीनीकरण करवाते रहते हैं। अभी उन्होंने कर्नाटक के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में खुलकर कहा- अगर हमारी एक हिन्दू लडक़ी जाती है, तो हमे दस मुस्लिम लड़कियों को फंसाना चाहिए, और आप ऐसा करते हैं तो श्रीराम सेना आपकी जिम्मेदारी लेगी। उन्होंने ऐसा करने वालों को हिफाजत और रोजगार देने का वायदा किया है। उनके इस बयान का वीडियो चारों तरफ फैला हुआ है। पिछले बरस उन्होंने टीपू सुल्तान का विरोध करते हुए सावरकर के पोस्टर पूरे कर्नाटक में लगाने का अभियान छेड़ा था, और बयान दिया था कि अगर मुस्लिम या कांग्रेस के किसी ने इन पोस्टरों को छुआ तो उनके हाथ काट दिए जाएंगे। पिछले साल का उनका बयान तो सुप्रीम कोर्ट की हेट-स्पीच की चेतावनी के पहले का था, लेकिन अब दस मुस्लिम लड़कियों को फंसाने का यह ताजा साम्प्रदायिक बयान तो सुप्रीम कोर्ट की कई बार दुहराई जा चुकी हेट-स्पीच चेतावनी के बाद का है, और देखना है कि कोई अदालत, कोई अफसर इस पर कार्रवाई करते हैं या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने अभी कल ही दिल्ली पुलिस से कहा है कि उसने 2021 के दिल्ली हेट-स्पीच केस की चार्जशीट की एफआईआर फाईल करने में पांच महीने क्यों लगाए, और क्या अभी तक उसमें किसी को गिरफ्तार किया गया है? देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चन्द्रचूड़ इस बेंच के मुखिया हैं, और यह बेंच एक सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी की दाखिल की गई अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें कहा गया है कि उत्तराखंड पुलिस, और दिल्ली पुलिस नफरत के तेजाबी भाषणों के मामलों में कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पुलिस ने इस मामले में नफरती भाषण देने वालों को संदेह का लाभ देने की पूरी कोशिश की, लेकिन अदालत ने उनकी इस हरकत को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट इस मामले एक कड़ा रूख दिखा रही है, और हो सकता है कि यह रूख बाकी देश के लिए भी एक मिसाल बने। फिलहाल तो अदालत ने इस तरह के नफरती भाषणों के लिए किसी को जेल भेजा नहीं है, इसलिए कर्नाटक में श्रीराम सेना के नफरती नेता फिर से अपने पुराने हिंसक मिजाज वाले साम्प्रदायिक रूख को दोहरा रहे हैं। ऐसे में अदालत को देश के बाकी हिस्सों में डिजिटल सुबूतों पर दर्ज हो रही नफरती और हिंसक बातों को भी कटघरे में लेना चाहिए क्योंकि उत्तराखंड में किसी को सजा हो भी जाए तो उससे कर्नाटक में किसी के सहमने की गुंजाइश कम ही रहती है। लोगों को अपने आसपास सजा दिखने पर ही उन पर इसका असर होता है।

हिन्दुस्तान में साम्प्रदायिक नफरत की बातों पर अगर देश का कोई कानून लागू होता है, तो उस पर सुप्रीम कोर्ट को एक कड़ी और व्यापक मिसाल पेश करने की जरूरत है। जब तक ऐसी मिसालें देश की बाकी अदालतों के लिए मौजूद नहीं रहेंगी, तब तक नफरती लोग कानून के ढीले-ढाले इस्तेमाल का फायदा उठाते रहेंगे। यह सिलसिला पूरी तरह से तोडऩे की जरूरत है, खासकर इसलिए कि आज देश में साम्प्रदायिकता के आधार पर चुनाव जीतने की जुगत में लगी हुई कुछ राजनीतिक ताकतें, और देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने में लगी हुई कुछ गैरचुनावी ताकतें रात-दिन नफरत फैलाने में लगी हुई है। इनकी नफरत के झांसे में सबसे पहले तो इनके अपने बच्चे खुद आ रहे हैं जो कि समझ आने के पहले से घर से ही ऐसी नफरत का नमूना पाते चलते हैं। इसलिए देश को बचाने के लिए यह जरूरी है कि संविधान की मूल भावना, लोकतंत्र, और इंसानियत की तथाकथित बातों को नफरत से बचाया जाए। आज एक बहुत बड़ी जरूरत यह भी आ खड़ी हुई है कि देश में अल्पसंख्यकों को दूसरे धर्मों के लोगों में से साम्प्रदायिक-हमलावर लोगों से बचाया जाए। और यह काम आज चुनाव हार चुकी राजनीतिक ताकतें नहीं कर पा रही हैं, इस काम को फिलहाल तो अदालत को ही करना पड़ेगा जहां पर आज जजों का रूख पहले के मुकाबले थोड़ा सा बेहतर दिख रहा है, साम्प्रदायिकता से परे का दिख रहा है, सरकार के सामने दंडवत हो जाने से अलग दिख रहा है। आज अदालत को तेज रफ्तार से देश की हवा में घुल चुकी साम्प्रदायिक नफरत को साफ करने का काम करना है, और इस काम को करने में जिन राज्यों की पुलिस की बेरूखी दिख रही है, वहां के आला अफसरों को कटघरे में खड़ा भी करना है, उससे कम किसी कार्रवाई से काम नहीं बनेगा।

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