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-सुनील कुमार॥

यूक्रेन पर रूस के हमले का एक साल पूरा होने के ठीक पहले अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन अचानक ही यूक्रेन पहुंचे, और वहां खुले में यूक्रेनी राष्ट्रपति के साथ घूमकर तस्वीरें खिंचवाकर उन्होंने एक अलग किस्म का भरोसा जताया है। लेकिन तस्वीरों से परे उनके भाषण ने भी यूक्रेन का साथ देने का पश्चिमी देशों और नाटो देशों का एक वायदा सामने रखा है जो कि इस जंग में आज बहुत मायने रखता है। यह जंग यूक्रेन पर रूस के हमले के साथ शुरू हुई थी, और मास्को का यह अंदाज था कि यह कुछ महीनों में यूक्रेनी सत्ता के साथ-साथ खत्म हो जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, और यह जंग आज दुनिया की एक महाशक्ति रूस पर भारी पड़ते दिख रही है। यह एक अलग बात है कि पूरी जंग यूक्रेनी जमीन पर लड़ी जा रही है, यूक्रेन बड़ा नुकसान झेल रहा है, उसके कई इलाकों पर रूस का कब्जा हो चुका है, लेकिन यूक्रेन एक असाधारण मनोबल के साथ रूस के खिलाफ डटा हुआ है, और पश्चिमी देश एक अभूतपूर्व और असाधारण एकता दिखाते हुए यूक्रेन का फौजी साथ दे रहे हैं। आज मोर्चे पर लड़ तो यूक्रेनी सैनिक रहे हैं, लेकिन उनका साज-सामान अमरीका और ब्रिटेन से लेकर जर्मनी और दूसरे यूरोपीय देशों से आ रहा है, आते ही जा रहा है। दूसरी तरफ ऐसा माना जा रहा है कि रूस की युद्ध की क्षमता अब कमजोर पड़ रही है, एक तरफ तो पश्चिम के लागू किए गए बहुत कड़े आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से रूस की जनता की जिंदगी पर थोड़ा सा फर्क पड़ा है, और थोड़ा सा फर्क रूसी सरकार के खजाने पर भी पड़ा है जिसे कि अपनी फौज पर, भाड़े के सैनिकों पर अंधाधुंध खर्च करना पड़ रहा है। दूसरी तरफ यूक्रेन का साथ देने के लिए तमाम नाटो देश अपना खजाना खोल रहे हैं, और फौजी साज-सामान भेज रहे हैं। इसलिए गैरबराबरी की यह लड़ाई भी रूस पर कई मायनों में भारी पड़ रही है, फिर चाहे उसे आज अपनी जमीन नहीं खोनी पड़ी है।

अब रूस ने यूक्रेन के परमाणु हथियार पाने की आशंका गिनाते हुए अपनी सरहद तक नाटो के पहुंच जाने का तर्क या बहाना गिनाते हुए यह हमला किया था। लेकिन अमरीका से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक, और दुनिया के दर्जनों और देशों ने भी इसे यूक्रेन की स्वायत्तता पर हमला माना है, और संयुक्त राष्ट्र बार-बार रूस के इसे रोकने के लिए कहते भी आ रहा है। आज नौबत यह आ गई है कि इन दोनों देशों के बीच किसी भी तरह की बातचीत मुमकिन नहीं दिख रही है, और रूस एक अंतहीन जंग के लिए डटा हुआ है, और अमरीका और उसके साथी देश यूक्रेन का अंतहीन साथ देने के लिए डटे हुए हैं। दिक्कत यह है कि इस जंग में सीधा-सीधा नुकसान अकेले यूक्रेन का हो रहा है जो कि जमीन खो चुका है, जिसके दसियों हजार लोग मारे गए हैं, और जिसके देश का ढांचा तबाह हो गया है, एक करोड़ से अधिक लोग बेदखल हो चुके हैं। यूक्रेन की बर्बादी के आंकड़े गिन पाना भी आसान नहीं है। ऐसे में उसे रूस के साथ जंग जारी रखने के लिए तो पश्चिम की मदद मिल रही है, लेकिन खुद यूक्रेन के पुनर्निर्माण की जरूरतें पश्चिम से कितनी पूरी होंगी, वह पुनर्निर्माण कब शुरू हो सकेगा, इसमें कुछ भी अभी साफ नहीं है। फिर यह भी है कि योरप और अमरीका की कोई भी मदद किफायत और पारदर्शिता की कई शर्तों के साथ आएगी, जिन्हें यूक्रेन पता नहीं कितना पूरा कर पाएगा।

इन्हीं तमाम बातों के बीच एक बात यह साफ है कि अमरीका और नाटो देश यूक्रेन की फौजी मदद इसलिए भी कर रहे हैं कि वे नाटो देशों के फौजी गठबंधन के चलते हुए रूस के आसपास के अपने सदस्य देशों की हिफाजत को लेकर फिक्रमंद हैं। और इस हिफाजत की गारंटी उसी हालत में हो सकती है जब रूस से लगे हुए कई देश नाटो में शामिल हो जाएं, और नाटो की फौजी क्षमता रूस की सरहदों तक पहुंच जाए। ठीक यही फिक्र रूस इस हमले के पीछे बताता है जिसे वह हमला या जंग कहने से कतराता है, और जिसे वह महज एक फौजी कार्रवाई कहता है। लेकिन शब्दों से परे सच तो यह है कि एक महाशक्ति ने एक छोटे से पड़ोसी पर इतना बड़ा फौजी हमला किया कि जिसका कोई मुकाबला नहीं हो सकता था, लेकिन रूसी फौजी तेवर देखकर उसके खिलाफ दर्जनों देश जिस तरह एकजुट हुए हैं, और उन्होंने जिस हद तक यूक्रेन का साथ दिया है, उसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। नतीजा यह है कि आज यूक्रेन के फौजियों की मौत, उसकी तबाही की कीमत पर रूस कमजोर होते चल रहा है, और यह बात अमरीका और नाटो के बाकी देशों के फौजी फायदे की बात है। अब सवाल यह उठता है कि अपने फौजियों को शामिल किए बिना, इस युद्ध को विश्व युद्ध में तब्दील होने के खतरे से बचाते हुए यूक्रेन का जो साथ दिया जा रहा है, उससे रूस का नुकसान तो जाहिर तौर पर हो रहा है, लेकिन इसकी जो कीमत यूक्रेन चुका रहा है, उसकी भरपाई कैसे होगी? आज यूक्रेन के लोग शरणार्थी होकर दर्जन भर दूसरे देशों में पड़े हुए हैं। यूक्रेन का ढांचा बुरी तरह तबाह हो चुका है, और अगली शायद चौथाई सदी भी यह देश इस नुकसान से उबर नहीं पाएगा। ऐसे में रूस को खोखला करने की हसरत लिए हुए जो लोग यूक्रेन का साथ दे रहे हैं, वे अपने फौजियों की शहादत के बिना सिर्फ खर्च करके यह मकसद हासिल कर रहे हैं। यह एक अलग नैतिक सवाल है कि यूक्रेनी जनता की जिंदगी और देश के कितने नुकसान की कीमत पर रूस का कितना नुकसान जायज कहा जाएगा? आज इस जंग को एक बरस पूरा हो रहा है, और इस मौके पर पूरी दुनिया को यह सोचना चाहिए कि इस तबाही से कैसे उबरा जा सकता है क्योंकि इससे न सिर्फ इन दो देशों का सीधा नुकसान हो रहा है, यूक्रेन का साथ देने वाले देशों का बड़ा खर्च हो रहा है, और इन दोनों देशों से बाहर निकलने वाले अनाज, खाद, पेट्रोलियम की कमी से दुनिया की अर्थव्यवस्था कितनी तबाह हो रही है। ऐसी बहुत सी बातों पर जंग की इस पहली सालगिरह पर लोगों को सोचना चाहिए, और अपने-अपने देशों की सरकारों से सवाल भी करना चाहिए।

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