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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

सुप्रीम कोर्ट में एक के बाद एक धार्मिक और साम्प्रदायिक मुद्दों को लेकर याचिका लगाने वाले वहां के एक वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की एक ताजा याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया, और उन्हें बड़ा सा एक आईना दिखाया। अश्विनी उपाध्याय पहले भी इस किस्म की बहुत सी याचिकाएं लगा चुके हैं जिनसे देश का साम्प्रदायिक सद्भाव प्रभावित हो सकता है। लेकिन यह पहला मौका था जब दो जजों ने उन्हें सैद्धांतिक आधार पर जमकर फटकार लगाई। अश्विनी उपाध्याय ने अदालत में याचिका लगाई थी कि देश में मुस्लिम आक्रमणकारियों के नाम वाली जितनी जगहें हैं उनके नाम बदलने के लिए एक आयोग गठित किया जाए। उन्होंने राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान करने की मिसाल दी, और कहा कि आक्रमणकारियों के नामों को बनाए रखना संविधान के तहत नागरिक अधिकारों के खिलाफ है।

यह याचिका खारिज करते हुए दो जज, जस्टिस के.एम. जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा-भारत धर्मनिरपेक्ष है, और संविधान की रक्षा करने वाला है, आप अतीत के बारे में चिंतित हैं, और वर्तमान पीढ़ी पर इसका बोझ डालने के लिए इसे खोदते हैं। आप अतीत को चुनिंदा रूप से देख रहे हैं, और आपकी उंगलियां एक विशेष समुदाय पर उठ रही हैं जिसे आप बर्बर कह रहे हैं, क्या आप देश को उबालते रखना चाहते हैं? आप इस याचिका से क्या हासिल करना चाहते हैं, क्या देश में और कोई मुद्दे नहीं हैं? जजों ने कहा- देश अतीत का कैदी नहीं रह सकता, देश को आगे बढऩा चाहिए, और यह अपरिहार्य है, अतीत की घटनाएं वर्तमान और भविष्य को परेशान नहीं कर सकतीं। जजों ने कहा- हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है जिसके कारण भारत ने सभी को आत्मसात कर लिया है, उसी के कारण हम साथ रह पाते हैं, अंग्रेजों की बांटो, और राज करो की नीति ने हमारे समाज में फूट डाल दी है।
इस याचिका में अश्विनी उपाध्याय ने दर्जनों शहरों के नाम, दर्जनों जगहों के नाम गिनाते हुए एक नामकरण आयोग बनाने की मांग की थी ताकि मुस्लिम आक्रमणकारियों से जुड़े नामों को हटाया जाए। इस पर जस्टिस के.एम.जोसेफ ने कहा कि हिन्दुत्व जीने की एक महान शैली है, इसके महत्व को मत घटाइये। उन्होंने कहा कि वे ईसाई हैं, लेकिन वे हिन्दुत्व के प्रशंसक हैं, और इसे पढऩे की कोशिश भी की है, इसकी महानता को समझने की कोशिश की है, इसे किसी और मकसद के लिए इस्तेमाल मत कीजिए। उन्होंने मिसाल दी कि वे जिस केरल से आए हैं वहां हिन्दुओं ने चर्च बनाने के लिए जमीनें दान दी हैं। दोनों जजों ने यह कहा कि हिन्दुस्तान को अतीत का कैदी बनाकर नहीं चला जा सकता। जजों के रूख को देखते हुए याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय ने याचिका वापिस लेने की कोशिश की लेकिन जजों ने उसकी इजाजत नहीं दी और वे उसे खारिज करके ही माने। जजों ने कहा कि इस तरह की याचिकाओं से समाज को नहीं तोडऩा चाहिए, कृपया देश को ध्यान में रखें, किसी धर्म को नहीं।
कुछ ही ऐसे मौके रहते हैं जब संसद या बाहर दिए गए किसी भाषण या अदालत के किसी फैसले के शब्दों को ज्यों का त्यों लिख देने की इच्छा होती है कि इस अखबार की अपनी विचारधारा और सोच यही है। यह फैसला ऐसा ही एक फैसला है। अश्विनी उपाध्याय लगातार किसी न किसी मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगे रहते हैं जिनसे कि धर्म, सम्प्रदाय, या साम्प्रदायिकता जुड़ी रहती है। हमारा ख्याल है कि उनकी इस याचिका में जिस तरह पूरे मुस्लिम समाज को बर्बर लिखा गया है, उससे भी जज विचलित हुए, और उपाध्याय की पुरानी साख भी जजों को याद रही होगी कि वे ऐसे ही मुद्दों को लेकर बार-बार अदालत पहुंचते रहते हैं। जजों का यह रूख तारीफ के काबिल है कि उन्होंने याचिका वापिस लेने की इजाजत नहीं दी, और उसे खारिज ही किया। जजों ने संविधान के बुनियादी मूल्यों को भी गिनाया कि किस तरह भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और तमाम तबके यहां बराबरी से जीने का हक रखते हैं। ऐसा भी नहीं है कि संविधान के ये मूल तत्व सुप्रीम कोर्ट के इस चर्चित वकील को मालूम नहीं रहे होंगे, लेकिन मुस्लिमों का नामोनिशान मिटा देने की यह याचिका कुछ भारी पड़ी, और इस तरह के नामकरण का मामला अब जब तक किसी बड़ी बेंच के लिए मंजूर न हो, तब तक के लिए तो यह खारिज हो ही चुका है।
इन जजों ने न तो कोई नई बात कही है, और न ही कोई अनोखी बात। उन्होंने संविधान की बुनियादी बातें, और लोकतंत्र की बुनियादी समझ को ही गिनाया है। होना तो यह चाहिए था कि इस देश को हांकने वाले प्रधानमंत्री, और उनकी पसंद से बनाई गईं राष्ट्रपति को ही यह सोचना था कि राष्ट्रपति भवन की मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान रखने से यह खौलता हुआ लाल लावा दूर तक बहते जाएगा। यह मुगल गार्डन मुगलों का बनाया हुआ नहीं था, इसे अंग्रेजों ने बनाया था, लेकिन उद्यान की शैली मुगल उद्यान शैली रहने की वजह से उसका नाम मुगल गार्डन रखा गया था। उस नाम को बदलकर प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली सरकार, और उनकी मनोनीत राष्ट्रपति ने मानो कोई बड़ी कामयाबी हासिल कर ली थी। उसी से उत्साह और हौसला पाकर ऐसी पिटीशन लगी थी, और जजों की की हुई समझदारी की बातों पर सरकार और राष्ट्रपति को भी गौर करना चाहिए। भाजपा के राज वाले उत्तरप्रदेश में यह सिलसिला बेकाबू चल रहा है कि हर उस शहर का नाम बदल दिया जाए जिसमें कुछ भी मुस्लिम, कुछ भी ऊर्दू दिखाई देता है। यह सोच हिन्दुस्तान के भीतर मुस्लिम तबके में एक असुरक्षा पैदा कर रही है, और वे अपने आपको दूसरे दर्जे का नागरिक महसूस कर रहे हैं। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। जो लोग हिन्दुस्तान को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने पर आमादा हैं, उन्हें धर्म के आधार पर चलने वाले अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल जैसे बहुत से देशों की हालत देखनी चाहिए। हिन्दुस्तान अगर पिछली पौन सदी में इतना आगे बढ़ पाया है, तो वह सभी समुदायों के योगदान से आगे बढ़ा है, सिर्फ किसी एक धर्म के लोगों के बढ़ाए नहीं बढ़ा है। अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट में ऐसी बदनीयत उजागर हुई, जजों ने भारतीय लोकतंत्र की बुनियादी मजबूती याद दिलाई, और लोगों को देश की संवैधानिक व्यवस्था एक बार फिर सुनाई पड़ी।

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