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फिल्म अभिनेता, निर्देशक सतीश कौशिक का असामयिक निधन फिल्म जगत के साथ-साथ उनके तमाम दर्शकों, प्रशंसकों के लिए बेहद दुखद खबर है। 66 बरस के सतीश कौशिक रूपहले पर्दे पर एक हास्य अभिनेता के तौर पर प्रतिष्ठित थे ही, वे असल जिंदगी में भी जिंदादिल इंसान माने जाते थे। हरियाणा के महेंद्रगढ़ में 13 अप्रैल, 1956 को जन्मे सतीश कौशिक की उच्च शिक्षा दिल्ली में हुई और कर्मभूमि मुंबई बनी।
दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में रंगमंच की दीक्षा ली और उसके बाद भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान से पर्दे पर अभिनय, निर्देशन, संवाद लेखन के गुर सीखे। मुंबई उनके लिए सपनों का शहर ही नहीं, सपनों को हकीकत में बदलने औऱ जिंदगी की सीख देने वाला शहर था। मुंबई की इस दरियादिली के लिए उन्होंने ट्विटर पर लिखा था कि ‘मैं पश्चिम एक्सप्रेस से 9 अगस्त 1979 में एक्टर बनने के लिए मुंबई आया था। 10 अगस्त को मेरी पहली सुबह मुंबई में ही थी। मुंबई ने मुझे खुश रहने के लिए काम, दोस्त, पत्नी, बच्चे, घर, प्यार, सुकून, संघर्ष, सफलता, विफलता और साहस दिया। सुप्रभात मुंबई और उन सभी का शुक्रिया जिन्होंने मुझे वो सब दिया जो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।’
कई नामचीन कलाकारों की तरह सतीश कौशिक ने भी हुनर का धनी होने के बावजूद फिल्म इंडस्ट्री में काम और पहचान पाने के लिए कड़ा संघर्ष किया। आजीविका के लिए छोटे-मोटे काम किए। लेकिन उन्होंने अपने जीवन व्यवहार में तल्खी नहीं आने दी। उनका नाम लेते ही हंसता-मुस्कुराता चेहरा याद आता है और यही सहज मुस्कान उनकी अमिट पहचान बनी रही। अपनी मृत्यु से कुछ पहले वे अपने मित्र के साथ दिल्ली में होली मना रहे थे और इसी दौरान उन्होंने बेचैनी की शिकायत की।
उन्हें नजदीक के अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां पहुंचने से पहले सतीश कौशिक दम तोड़ चुके थे। माना गया कि उनकी मौत हृदयाघात से हुई है। हालांकि डॉक्टरों ने इस पर संदेह किया, तो दिल्ली पुलिस ने उनके शव का पोस्ट मार्टम भी कराया, लेकिन उसमें कुछ भी संदेहास्पद नहीं मिला। इसलिए दिल के दौरे को ही फिलहाल मौत का कारण माना जा रहा है। कोरोना के बाद से अच्छे-खासे नजर आने वाले इंसानों की दिल के दौरे से मौत के मामले काफी बढ़ गए हैं। समाज में यह एक नए खतरे की तरह उभर गया है, जिसका निदान ढूंढना डॉक्टरों के लिए बड़ी चुनौती है।
सतीश कौशिक की आखिरी इंस्टाग्राम पोस्ट पर होली मनाते हुए उनकी कुछ तस्वीरें हैं और एक पोस्ट भी, जिसमें उन्होंने बताया कि वे जावेद अख्तर के जुहू स्थित बंगले पर कुछ और फिल्म कलाकारों के साथ होली मना रहे हैं। यानी आखिरी वक्त तक सतीश कौशिक जीवन के रंगों का आनंद लेते रहे। लेकिन इन रंगों की अंतिम सच्चाई मौत का काला रंग है, जिससे कोई भी नहीं बच सकता। सतीश कौशिक के निधन पर उनके प्रशंसकों को कैलेंडर, पप्पू पेजर और मुत्तू स्वामी जैसे उनके किरदार बेसाख्ता याद आए, जो उन्होंने फिल्मों में निभाए हैं। मि.इंडिया फिल्म में अनिल कपूर, श्रीदेवी और अमरीश पुरी जैसे दिग्गज कलाकारों के होते हुए भी कैलेंडर की भूमिका निभाने वाले सतीश कौशिक का किरदार लोगों को हमेशा याद रहा। इसकी वजह केवल पात्र का नाम कैलेंडर होना ही नहीं है, उनका अभिनय भी इस तरह रहा कि वे सहनायक की तरह किनारे नहीं दिखे, अदाकारी की एक अलग लकीर उन्होंने खींच दी। यही पप्पू पेजर जैसे किरदार के साथ भी था, जिसमें सूचना क्रांति के दौर के आगाज का संकेत देता हुआ पेजर शब्द पप्पू नाम के साथ मिला दिया गया और सतीश कौशिक ने दीवाना मस्ताना फिल्म में अपने इस छोटे से किरदार को हमेशा के लिए यादगार बना दिया।
सतीश कौशिक की पहचान हिन्दी फिल्मों में हास्य अभिनेता के तौर पर बनी, हालांकि वे खुद इस से इत्तेफाक नहीं रखते थे। उनका कहना था कि मैं जो भी किरदार करता हूं, वह एक अभिनेता के तौर पर ही करता हूं। वह किरदार कॉमेडी का हो सकता है लेकिन मैं कॉमेडियन नहीं हूं। वैसे सतीश कौशिक ने वेब सीरीज स्कैम 1992′ में ब्लैक कोबरा यानी मनु मानिक के नकारात्मक किरदार को निभाया। फिल्म सूरमा में दिलजीत दोसांझ के पिता की भूमिका की, जो संजीदा थी। फिल्म जाने भी दो यारो में उन्होंने भूमिका निभाई, साथ ही इसके संवाद भी लिखे। इसके अलावा तेरे नाम, हम आपके दिल में रहते हैं और रूप की रानी, चोरों का राजा जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया। व्यावसायिक फिल्मों के अलावा सारा गैवरन की ब्रिटिश फिल्म ब्रिक लेन और अभय देओल के साथ रोड नाम की गैर व्यावसायिक फिल्में भी सतीश कौशिक ने की।
लेकिन एक अभिनेता के तौर पर सतीश कौशिक मुकम्मल होते हैं, सेल्समैन रामलाल, नाम के नाटक से। सुप्रसिद्ध लेखक आर्थर मिलर के नाटक डेथ ऑफ ए सेल्समैन का यह नाटक हिंदी रूपातंरण है। इस नाटक में सतीश कौशिक ने ऐसा कमाल का अभिनय किया, कि चार साल तक इसके अनेक शो होते रहे। सतीश कौशिक का मानना था कि थियेटर से उनकी कला को नया आयाम मिलता है, लेकिन जिंदगी की जरूरतें अलग होती हैं और इसलिए उन्हें व्यावसायिक फिल्मों में आना ही पड़ा। अपने पूरे जीवन में सतीश कौशिक ने हर सुख-दुख को हिम्मत के साथ अपनाया। दो साल के बेटे की असामयिक मौत, उसके कई साल बाद सरोगेसी से बेटी का जन्म, फिल्मों की सफलताएं, असफलताएं, सब कुछ वे हंसते-मुस्कुराते अपनाते चले गए और इसी तरह जीवन का अंतिम सफर भी तय किया। इस साल के कैलेंडर का एक दिन कैलेंडर की याद को अमर कर गया।

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