Latest Post

कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

दुनिया के कामगारों के बीच एक खतरा छाया हुआ दिखता है कि मशीनें उनका काम छीन लेंगी। मशीन मानव, या रोबो तो आंखों से दिखते हैं, इनमें से कुछ-कुछ तो इंसानी बांहों सरीखे मशीनी हाथों वाले भी होते हैं, इनमें से कुछ पहियों पर चलते इंसानों की तरह एयरपोर्ट पर आने-जाने वाले मुसाफिरों को उनकी जरूरत की जानकारी देने का काम भी करते हैं। लेकिन अभी तक रोबो मोटेतौर पर कारखानों के ऐसे काम करते हैं जिनमें इंसानों को खतरा रहता है, या गोदामों में सामान छांटकर पैक करके उसे किसी जगह भेजने के एक सरीखे दुहराव वाले काम करते हैं। अब ताजा खबरों के मुताबिक रोबो अस्पतालों और घरों की सफाई का काम भी करने लगे हैं जिनके लिए कई जगहों पर कामगार मुश्किल से मिलते हैं। अस्पतालों के संक्रामक हिस्सों में कई तरह के काम कर्मचारियों के लिए खतरे के भी रहते हैं, और वहां पर भी रोबो का इस्तेमाल इंसानों को बीमारी से बचाता है। अब दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में रोबो चिकन नाम की एक ऐसी फूडचेन शुरू हुई है जहां पर पकाने का काम रोबो कर रहे हैं, और यह भी माना जा रहा है कि जब किसी ब्रांड के रेस्त्रां चारों तरफ बिखरे हुए हों, तब वहां पकाने के तरीके में कोई फेरबदल सिखाने में लंबा वक्त लग सकता है, लेकिन अगर कम्प्यूटर से चलने वाली ऐसी रोबोटिक मशीनों के हाथों से वहां पकाया जा रहा है, तो फिर किसी एक कम्प्यूटर से इन्हें इंस्ट्रक्शन देकर पल भर में अगले व्यंजन को बदला जा सकता है।

अब पिछले कुछ महीनों से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित एक वेबसाइट बहुत खबरों में हैं जिसे चैटजीपीटी कहा जाता है। इसमें कोई भी जानकारी पूछने पर, लिखने का सुझाव मांगने पर यह कम्प्यूटर पल भर में आज तक की तमाम कम्प्यूटरीकृत जानकारी में से काम की बातें लेकर एकदम ताजा लिखकर पेश कर देता है। इसकी ताकत का अहसास करने के लिए इसे इस्तेमाल करने से कम में बात समझ में नहीं आएगी। अब अभी तो इस चैटजीपीटी को ही अधिक से अधिक उत्कृष्ट बनाने का काम चल रहा है, लेकिन क्या वह दिन बहुत अधिक दूर है जब इंसानी हुक्म पर काम करने वाले रोबो इस तरह की कृत्रिम बुद्धि का भी इस्तेमाल करके लोगों के हुक्म को इंसानी खूबियों की हद तक पूरा मान सकें? आज एक रोबो का पकाया हुआ खाना उसमें डाली गई व्यंजन-विधि के मुताबिक होगा, लेकिन अलग-अलग इंसानों के स्वाद की अलग-अलग पसंद के मुताबिक इसमें फेरबदल शायद ये रोबो अभी खुद न कर पाए, लेकिन हो सकता है कि बहुत जल्द ही एक ऐसी कृत्रिम बुद्धि इसमें जोड़ी जा सके कि यह लोगों की पसंद से अधिक मिर्च डाल सके, कम तल सके, छोटे टुकड़े कर सके, और उस पर हरा धनिया छिडक़ सके।

लेकिन आज की यह चर्चा महज रोबो तक सीमित नहीं है, यह रोबो से जुड़े इंसानी रोजगारों की बात भी है। ऐसा लगता है कि रोबो बहुत तेजी से इंसानी कामकाज को छीन लेंगे, वे कई किस्म के काम आज भी इंसानों से बेहतर कर रहे हैं, कम देर में, अधिक खूबी के साथ कर रहे हैं, और सस्ते भी पड़ रहे हैं, वे न बीमार पड़ते हैं, न तनख्वाह बढ़ाने की मांग पर हड़ताल करते हैं। इसलिए कुछ किस्म की जगहों में मैनेजमेंट तेजी से रोबो का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन दुनिया में लाखों किस्म के ऐसे काम हैं, जो उतने दुहराव वाले नहीं हैं जो कि रोबो की खूबी होता है, वे खुद होकर छोटे-छोटे फेरबदल करने के लायक नहीं है, इसलिए वे इंसानों की नौकरियां अगले कई बरस तक तो बहुत धीमी रफ्तार से ही छीनेंगे। अब इस नौबत को एक और बात से जोडक़र देखने की जरूरत है। दक्षिण कोरिया, जहां पर कि रोबो का इस्तेमाल कारखानों के कामगारों में अब दस फीसदी तक पहुंच गया है, जहां पर दुनिया का सबसे अधिक रोबो इस्तेमाल हो रहा है, वहां पर यह एक मजबूरी भी है। दक्षिण कोरिया की आबादी जिस रफ्तार से गिर रही है, वह दुनिया में सबसे अधिक है, और नई जन्मदर वहां दुनिया में सबसे कम है, आबादी बनाए रखने के लिए जितनी होनी चाहिए, उससे बहुत ही कम है। फिर इलाज और बेहतर जिंदगी की वजह से आबादी में बूढ़ों का अनुपात बढ़ते जा रहा है, मतलब यह कि कामगार आबादी का अनुपात भी घटते जा रहा है, गिनती भी घटते जा रही है। ऐसे में बिना मशीनों तो काम चलना नहीं है, यही वजह है कि सबसे तेजी से आबादी और कामगार दोनों खोने वाला यह देश रोबो का अधिक से अधिक इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन हिन्दुस्तान जैसे देश को देखें जहां पर कि आबादी अगले कुछ दशक बढ़ती ही चली जानी है, यहां पर कामगार इतने सस्ते हैं, और अधिकतर काम इतने असंगठित हैं कि यहां रोबो का दखल लंबे समय तक गिने-चुने कामों में ही रहेगा।

इससे जुड़ी हुई एक तीसरी बात भी जोडक़र देखने की जरूरत है। अब संपन्न दुनिया में लोग पहले की तरह जानवरों सरीखा काम करना नहीं चाहते। एक-एक करके बहुत से ऐसे संपन्न और विकसित देश होते जा रहे हैं जहां पर बिना रोबो के इस्तेमाल के भी इंसान अब हफ्ते में चार दिन काम कर रहे हैं, और कुछ जगहों पर तो महज तीन दिन। इसका यह मतलब है कि लोगों को अपनी पसंद की जिंदगी जीने के लिए इतना पैसा मिल रहा है कि वे आधे से कम दिन काम करके भी मजे से जी रहे हैं। ऐसे लोगों को अपनी जिंदगी के सुख के लिए ऐसे कई किस्म के इंसानी कामगार लगेंगे जो काम रोबो से नहीं चल सकेगा। इसलिए इंसानों की जरूरत बहुत तेजी से कम होगी, यह डर भी बेबुनियाद लगता है। यह जरूर हो सकता है कि आज जहां पर इंसानों को काम मिला हुआ है, कल वहां से उनका काम मशीनें छीन लें, और इंसानों को कोई दूसरा काम तलाशना पड़े। लेकिन वैसे भी अधिकतर इंसान वक्त और जगह की जरूरत के मुताबिक अलग-अलग किस्म के काम करते भी रहते हैं। एक वक्त बैंकों में काउंटर के पीछे बैठे लोग जो काम करते थे, वह धीरे-धीरे एटीएम पर होने लगे, और अब तो हिन्दुस्तान में छोटे-छोटे से चाय और ठेलेवाले लोग भी मोबाइल फोन से मिलने वाले डिजिटल भुगतान को पाना सीख चुके हैं, मतलब यह कि धीरे-धीरे एटीएम भी बेरोजगार होते जा रहे हैं।

आने वाली दुनिया अगर इंसानों के रोजगार को छीनने वाली होगी, तो उसमें संपन्नता की वजह से लोगों में बढऩे वाली सुख की चाहत पूरी करने के लिए कई किस्म के इंसानी कामगारों की जरूरत बढ़ेगी भी। यह जरूर हो सकता है कि एक एटीएम पर गार्ड की ड्यूटी करने वाले की नौकरी घटेगी, लेकिन कहीं पर एक मालिश करने वाले का रोजगार बढ़ जाएगा। इस तरह का यह तालमेल बदलती हुई दुनिया में लोगों को सीखना पड़ेगा, और आने वाले वक्त किस जगह, किस जुबान को बोलने वाले, किस हुनर के, किस देश के कितने लोगों के रोजगार का रहेगा, यह भी कृत्रिम बुद्धि से लैस कोई रोबो तेजी से निकाल देगा। इस बीच अमरीका का एक आंकड़ा देना जायज होगा, वहां पर आज हुनर वाले रोजगार के लिए कामगार कम हैं, हर हुनरमंद कामगार के लिए दो रोजगार आज मौजूद हैं, और आने वाले बरसों में ऐसे रोजगार और बढऩे जा रहे हैं। मतलब यह कि फिक्र रोजगार की नहीं, अपने हुनर की करनी चाहिए, रोबो अगर कभी काम छीनने आएंगे भी, तो वे सबसे पहले सबसे कमजोर हुनर वाले कामगारों का काम छीनेंगे, बेहतर कामगार तो रोबो के साथ-साथ भी बने ही रहेंगे।

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *