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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

पंजाब में जिस तरह खालिस्तानी नारा एक बार फिर बुलंद होते दिख रहा है, उस पर लोगों का एक विश्लेषण यह भी है कि पंजाब में पिछले बरसों की राजनीतिक अस्थिरता के चलते हुए, कांग्रेस के अलग-अलग मुख्यमंत्रियों के रहते, और फिर आम आदमी पार्टी का मुख्यमंत्री बनते हुए प्रशासन पर राजनीतिक पकड़ कमजोर हो गई है, और खालिस्तान-समर्थक फिर से सिर उठा रहे हैं। आज की एक अखबार की खबर यह है कि इस बार वहां अराजकता खड़ी करने वाले, और खालिस्तान की मांग करने वाले अमृतपाल सिंह नाम के आदमी ने भारत आने के पहले प्लास्टिक सर्जरी कराकर अपना चेहरा जनरैल सिंह भिंडरावाले की तरह का करवाया था। लोगों को याद होगा कि 1980 के दशक में भिंडरावाले खालिस्तान आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा था, और 1984 के ऑपरेशन ब्लूस्टार में वह सेना के हाथों मारा गया था।

अब कुछ अलग-अलग जानकार लोगों के जो विश्लेषण सामने आए हैं वे भी गौर करने लायक है। पंजाब से रिटायर होने वाले एक बड़े वरिष्ठ अफसर ने कहा है कि खालिस्तान आंदोलन को खड़ा करने, और उससे जुडऩे की एक बड़ी वजह यह भी रहती है कि विदेशों में राजनीतिक शरण की अर्जी लगाने वाले लोगों को ऐसे आंदोलनों में अपने शामिल होने की तस्वीरें, और उसके वीडियो उन देशों में अर्जी के साथ काम आते हैं। इनकी मदद से वे वहां पर यह साबित कर सकते हैं कि इस आंदोलन की वजह से भारत की सरकारें उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं, इसलिए उन्हें उन देशों में शरण दी जाए। इस तरह जाहिर तौर पर जो दिखता है, उससे परे भी बहुत कुछ रहता है। बहुत से लोग जो कि ऐसे आंदोलनों की अगुवाई करते हैं, उन्हें दुनिया के दूसरे देशों में बसे हुए लोगों से रूपया-पैसा मिलते रहता है, और उसके लिए आंदोलनों का अस्तित्व साबित करते रहना जरूरी रहता है।

ठीक ऐसा ही हिन्दुस्तान के और भी दूसरे बहुत से आंदोलनों को लेकर है। धर्म और सम्प्रदाय, जाति, या किसी और संगठन के झंडेतले बहुत से आंदोलन करवाने वाले नेताओं की यही नीयत रहती है कि वे किसी राजनीतिक संगठन के बीच, या कि चंदा देने वाले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय लोगों के बीच अपनी मौजूदगी साबित करते रह सकें। आज देश भर में धर्म के नाम पर झंडे-डंडे लेकर नौजवानों को झोंक दिया गया है, और कुछ पार्टियों के बड़े-बड़े नेता मंच और माइक से बड़े हिंसक फतवे देते रहते हैं। वे सोते-जागते पश्चिमी संस्कृति को गालियां देते हैं, भारत में धर्म के महत्व को स्थापित करते रहते हैं, लेकिन ऐसे नेताओं की पूरी लिस्ट बीच-बीच में आती है कि उनके खुद के बच्चे पश्चिम के कौन से बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं। वे हिन्दुस्तानी बेरोजगार नौजवानों को जिस तरह हिंसक और नफरती आंदोलनों में झोंकते चलते हैं, उससे वे अपने बच्चों को परे रखते हैं, उनके कोई बच्चे सडक़ों पर ऐसी अराजकता मेें शामिल नहीं दिखते। ऐसा ही हाल खालिस्तान के लिए विदेशों से चंदा देने वाले लोगों का है, ऐसा ही हाल हिन्दुस्तान के दूसरे धर्मान्ध संगठनों को चंदा देने वाले विदेशियों का है। अपनी जमीन से कटे हुए ये लोग उससे जुडऩे की चाहत में उसके सबसे धर्मान्ध लोगों से जुड़ जाते हैं, उनकी आर्थिक मदद करने लगते हैं। और यह सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं लेता। चूंकि दूसरे देशों में बसे हुए लोग अपनी जरूरत से अधिक कमाने लगते हैं, इसलिए वे मनचाहे आंदोलनों को सींचने भी लगते हैं।

आज कुछ लोग इस बात को लेकर भी हैरान हैं कि हिन्दुस्तान का एक आर्थिक दबदबा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बना हुआ है, और इसे एक बड़ी अर्थव्यवस्था गिना जा रहा है, दुनिया के बहुत से देशों के साथ इसका लंबा व्यापार चलता है, और ऐसे में भी अगर भारत सरकार उन देशों की सरकारों से बात करके भारत के कुछ आंदोलनों को मिलने वाला चंदा बंद नहीं करवा पा रही है, उन देशों में रहकर हिन्दुस्तान में जुर्म करवाने वाले लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं करवा पा रही है, तो यह एक किस्म की नाकामयाबी है। हम इतनी तेजी से ऐसे किसी नतीजे पर इसलिए नहीं पहुंचना चाहते, क्योंकि यह पहला दौर नहीं है जब देश के बाहर बसे हुए भारतवंशी लोगों का एक छोटा तबका भारत के ऐसे अलगाववादी, अराजक, और हिंसक आंदोलनों को बढ़ावा दे रहा हो। ऐसा पहले भी होते आया है, और भिंडरावाले के वक्त तो पंजाब से लगे हुए सरहद पार के पाकिस्तान से बहुत बड़ी हथियारों की मदद हिन्दुस्तानी आतंकियों को मिलती ही थी। उस वक्त के मुकाबले पंजाब का आतंक आज कहीं नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि ठीक हो चुके कैंसर के मरीज के बदन में एक बार फिर कैंसर के लक्षण दिखने लगे हों, इसे कम खतरनाक मानना भी ठीक नहीं है।

लेकिन जैसा कि आज की यहां की चर्चा है, देश और दुनिया के किसी भी आंदोलन के पीछे कई किस्म की अदृश्य और रहस्यमय ताकतें भी रह सकती हैं। किसी कारोबार के खिलाफ चल रहे आंदोलन के पीछे उस कारोबारी के किसी प्रतिद्वंद्वी का हाथ भी हो सकता है, किसी एक टेक्नालॉजी के खिलाफ चल रहे आंदोलन के पीछे उसी काम के लिए विकसित किसी नई टेक्नालॉजी के कारोबारी भी हो सकते हैं। पंजाब के खालिस्तानी आंदोलन के साथ एक दूसरा खतरा यह है कि देश भर का सिक्ख समुदाय धर्म के नाम पर बड़ी तेजी से भडक़ जाता है। अमृतपाल सिंह नाम के इस खालिस्तान आंदोलनकारी की पुलिस तलाश शुरू ही हुई थी, कि दूर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अमृतपाल के समर्थन में जुलूस निकल गया था। सिक्खों में धार्मिक एकजुटता बहुत अधिक है, और इस एकता का प्रदर्शन भी तेजी से होने लगता है। इसलिए पंजाब के इस मामले को अधिक सावधानी से देखने की जरूरत है। आज दुनिया में किसी एक प्रदेश के लोगों की सबसे अधिक वीजा अर्जियां लगी होंगी, तो वे पंजाब के लोगों की ही हैं। पंजाब एक आर्थिक असमानता का शिकार भी है जहां एक तबका विदेशों में हो रही कमाई से देश में सुख पा रहा है, और दूसरा तबका अपने प्रदेश में ही बैठा हुआ बेरोजगार सा हो गया है, नशे का शिकार हो गया है। ऐसे बेरोजगार-नशेड़ी लोगों को किसी भी आंदोलन से जोड़ लेना आसान है, खासकर तब जब वह धर्म से जुड़ी कोई बात हो। देश को ऐसे अलगाववादी आंदोलनों को लेकर बहुत चौकन्ना रहना चाहिए क्योंकि इन्हीं के रास्ते दूसरे देशों के साजिश करने वालों को दाखिल होने का मौका मिलता है।

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