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जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के खुलासों से मचा राजनीतिक बवाल..

-अनुभा जैन॥
2019 के पुलवामा हमले के बारे में जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक की टिप्पणियों ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है।
पुलवामा में 14 फ़रवरी 2019 को हुए दहला देने वाले आतंकी हमले को लेकर भाजपा नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक द्वारा किए गए खुलासे पर यह सवाल उठाया जाना लाजमी है कि आतंकी हमले की घटना के तुरंत बाद मलिक द्वारा प्रधानमंत्री से यह कहने पर कि ’ये हमारी गलती से हुआ है ! अगर हम एयरक्राफ्ट दे देते तो यह नहीं होता’ और मोदी द्वारा जवाब देने ‘तुम अभी चुप रहो! यह सब मत बोलो, हमें बोलने दो‘ के सिर्फ़ दो महीने बाद ही होने वाले चुनावों के ज़रिए देश का भविष्य तय करने वाली सच्चाई को मलिक ने आखिर क्यों चार साल तक छुपाये रखा?
पुलवामा हादसे के लगभग दो महीने बाद ही लोकसभा के लिए सात चरणों में 11 अप्रैल से 19 मई के बीच मतदान हुआ। हादसे के तुरंत बाद विपक्षी दलों ने पुलवामा में सरकार के ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता सहित कई गंभीर आरोप मोदी सरकार पर लगाये और जवाबों की माँग की। सत्ता पक्ष एक भी सवाल का जवाब नहीं दे पाया बल्कि भाजपा ने पुलवामा को चुनावी मुद्दा बनाते हुए सारा ठीकरा पाकिस्तान पर मढ दिया था। मलिक ने करण थापर को दिये इंटरव्यू में कहा कि ’मुझे लग गया था कि अब सारा फोकस पाकिस्तान की तरफ़ जाना है तो चुप रहना चाहिए’! मलिक ने अपनी चुप्पी को बनाए रखा और भाजपा भारी बहुमत के साथ 2019 का चुनाव जीत गई।
द वायर के साथ साक्षात्कार में, श्री मलिक ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के बारे में “गलत जानकारी“ है।
मलिक का कहना है कि वे जवानों की सड़क मार्ग से यात्रा के पक्ष में नहीं थे। भारी संख्या में जवानों को वाहनों से जम्मू से श्रीनगर पहुँचाया जा रहा था। सीआरपीएफ़ द्वारा गृह मंत्रालय से विमानों की माँग की गई थी पर उसे मंज़ूरी नहीं दी गई। मलिक के अनुसार अगर विमानों की माँग उनसे की गई होती तो वे कैसे भी उस मांग को पूरा करते। इन सब में वे सीआरपीएफ और बाद में गृह मंत्रालय को दोषी मानते हैं।
सत्तारूढ़ भाजपा ने कहा कि उनके “यू-टर्न“ ने उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। दूसरी ओर, विपक्ष पुलवामा घटना की जांच से जानकारी मांग रहा है।
कांग्रेस पार्टी ने पीएम मोदी पर 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले अपनी व्यक्तिगत छवि को “बचाने” के लिए इस घटना को “दबाने” का आरोप लगाया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर “न्यूनतम शासन और अधिकतम चुप्पी“ का आरोप लगाया और भाजपा को मलिक के दावों पर टिप्पणी करने को कहा है।
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने कहा कि पुलवामा हमले पर सवाल उठाने वाले विपक्षी नेताओं को “सत्तारूढ़ भाजपा ने चुप करा दिया और देशद्रोही कहा।“
समाजवादी पार्टी ने पुलवामा हमले को रोकने में भाजपा सरकार की “अक्षमता“ पर भी जवाब मांगा।
इंटरव्यू में दिये अपने खुलासों में मलिक ने माना कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले आर्टिकल 370 को भी उन्होने चुपचाप ख़त्म हो जाने दिया क्योंकि इस बारे में उनको कोई अंदेशा या जानकारी नहीं थी। उन्हें सिर्फ प्रधानमंत्री द्वारा आदेश पर हस्ताक्षर करने को कहा गया। मलिक ने दुनिया के सबसे लंबे इंटरनेट शटडाउन को भी राज्य में लागू होने दिया, मीडिया के खिलाफ़ होने वाली अन्यायपूर्ण कार्रवाई का भी उन्होंने कोई विरोध नहीं किया और महबूबा मुफ़्ती को सरकार बनाने का मौक़ा यह मानते हुए नहीं दिया कि उनके पास पर्याप्त बहुमत नहीं था। घाटी में मीडिया के खिलाफ की गई कार्रवाई को लेकर लगाए जाने वाले प्रत्येक आरोप से मलिक इंकार करते हैं। उनके अनुसार मीडिया की हर जरूरत की मांग को पूरा किया जा रहा था और मीडिया को हर सुविधा प्राप्त थी।
करण थापर के साथ इंटरव्यू में मलिक ने आत्मविश्वास के साथ यह भी कहा भी ’ये लोग मुझे मरवा नहीं सकेंगे, मेरे साथ किसान हैं। जिस दिन मुझे छेड़ेंगे, फिर ये कभी रैली नहीं कर पाएँगे
पूर्व राज्यपाल हर बात का अब खुलासा कर रहे हैं। उन्होने यहां तक कहा कि प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार से नफ़रत नहीं है । अदाणी से प्रधानमंत्री के रिश्तों के बारे में मलिक ने खुलकर बात की।
करण थापर के यह पूछने पर कि क्या जम्मू-कश्मीर पुलिस अधिकारी दविंदर सिंह के पुलवामा घटना में शामिल होने की जो कहानियां कही जा रही हैं क्या वो गलत हैं पर मलिक का कहना था कि वह बातें सरासर गलत हैं और सिंह कोई राष्ट्र विरोधी या एंटी नेशनल व्यक्ति नहीं है।
दविंदर सिंह का पुलवामा की घटना को अंजाम देने में गहरा हाथ
दविंदर सिंह, एक वरिष्ठ जम्मू-कश्मीर पुलिस अधिकारी संसद और पुलवामा हमलों में आतंकवादियों को फेरी लगाने के आरोप में गिरफ्तार हुये हैं। ज्ञातव्य रहे कि मुठभेड़ के लिए सिंह को वीरता के लिए सर्वोच्च पुलिस पुरस्कार भी मिला था।
दविंदर सिंह मई 2017 से 8 अगस्त 2018 तक पुलवामा में तैनात थे। दविंदर जो आमतौर पर रात भर डीपीएल परिसर में नहीं रुकते थे, मुठभेड़ की रात को रुके थे। हालांकि उस समय इस अधिकारी के आतंकी संबंधों के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं चल पाया था, लेकिन अब अधिकारी इस घटना में उसकी संलिप्तता की जांच करने जा रहे हैं।
सुरक्षा ग्रिड के एक अधिकारी ने बताया, “यह न केवल असामान्य है कि सिंह वापस रुके, बल्कि यह तथ्य भी है कि हमलावर इलाके को अच्छी तरह से जानते थे। यह संदेह पैदा करता है।“
दविंदर सिंह तब पकड़ा गया जब हिजबुल मुजाहिदीन के एक शीर्ष आतंकवादी नवीद बाबू को निगरानी में रखा गया था।

इसके चलते जम्मू-कश्मीर पुलिस सीधे डीएसपी के पास पहुंची। इतना ही नहीं, पुलिस को हिजबुल मुजाहिदीन के 2 गुर्गे मिले, जिन्हें बाद में डीएसपी के साथ पकड़ा गया था, जो उनके आवास पर रह रहे थे।
जब पुलिस पार्टी उसे पकड़ने के लिए पहुंची, तो दविंदर सिंह ने दोनों आतंकवादियों को अपने निजी सुरक्षा अधिकारी के रूप में पेश किया।
डीआईजी दक्षिण कश्मीर अतुल गोयल, जो कुछ दूरी पर थे, अपने वाहन से बाहर आए और डीएसपी से भिड़ गए।
डीएसपी ने कहा, आपने खेल को बर्बाद कर दिया है।
कहा जाता है कि क्रोधित डीआईजी ने राजद्रोह के कार्य के लिए सिंह को थप्पड़ मारा था। इसके बाद उन्हें राज्य पुलिस ले गई।
डीएसपी ने दावा किया था कि वह अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण सुनिश्चित करने के लिए अपनी I10 कार में आतंकवादियों के साथ जा रहा था। लेकिन जेकेपी, सीआरपीएफ और सेना में अधिकारियों के साथ गहन जांच में दावा झूठा पाया गया।
दविंदर और दो आतंकवादियों के साथ शोपियां निवासी इरफान मीर के रूप में पहचाने जाने वाले एक वकील थे।
इरफान के पिता शफी मीर 1990 के दशक में उग्रवाद के चरम पर हिज्ब कमांडर थे। खुफिया सूत्रों के मुताबिक, मीर हिज्ब प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन का करीबी सहयोगी था।
जबकि इरफ़ान का आतंक से कोई पुराना संबंध नहीं है, लेकिन वकील को अब 2 एचएम आतंकी गुर्गों और दविंदर सिंह के बीच प्रमुख सूत्रधार और संपर्क बिंदु के रूप में देखा जा रहा है। उनकी पासपोर्ट डिटेल्स से पता चलता है कि इरफान मीर इससे पहले 5 बार पाकिस्तान जा चुके थे।
जिस तरह के खुलासे मलिक साक्षात्कारों में इस समय कर रहे हैं वे अगर 14 फ़रवरी 2019 से 11 अप्रैल 2019 के बीच किये होते तो आज स्थिति शायद कुछ और ही होती।

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