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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ राज्य में इस वर्ष के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं। इस बार भी कांग्रेस की वापसी के आसार मजबूत हैं, जबकि भाजपा के लिए अपनी खोई सत्ता को दोबारा हासिल करना कठिन होता जा रहा है। इस कठिनाई के बीच भाजपा को एक जोरदार झटका लगा है। भाजपा के तीन बार विधायक, तीन बार सांसद, नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष रह चुके, कद्दावर आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद सोमवार को कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। चुनावी मौसम में राजनेताओं का दलबदल करना अब मामूली बात हो गई है। पद और सत्ता के लोभ में बहुत से नेता विचारधारा को ताक पर रखकर उस दल में चले जाते हैं, जिसके सत्ता में आने की संभावनाएं अधिक होती हैं।

दलबदलू नेताओं की साख और प्रभाव सवालों के दायरे में रहते हैं। लेकिन नंदकुमार साय का प्रकरण अलहदा है। वे राजनीति के शुरुआती दौर से भाजपा से जुड़े रहे। पहले अविभाजित मध्यप्रदेश और फिर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा की जड़ें मजबूत करने में उनकी अहम भूमिका रही। हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा की पैठ आदिवासी इलाकों में बनाने के लिए नंदकुमार साय ने बहुत मेहनत की। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो आदिवासी चेहरे को आगे करने के लिए कांग्रेस ने अजीत जोगी पर दांव लगाया। उनके सामने नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भाजपा ने आदिवासी नेता नंदकुमार साय को दी। श्री साय ने अपनी भूमिका से पूरा न्याय किया।

अजीत जोगी के मुख्यमंत्रित्व काल में नंदकुमार साय ने भाजपा नेताओं के साथ रायपुर में विशाल प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था जिसमें नंदकुमार साय भी घायल हुए। उनका पैर फै्रक्चर हो गया था। इसके बाद उन्होंने जोगी सरकार के अत्याचार को पूरे प्रदेश में मुद्दा बनाया और इसका ऐसा असर हुआ कि अगले चुनाव में कांग्रेस की हार हुई। अजीत जोगी के हाथ से सत्ता तो गई ही, कांग्रेस को लगातार 15 साल तक विपक्ष में बैठना पड़ा। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को खड़ा करने में नंदकुमार साय की अहम भूमिका रही।

2017 में मोदी सरकार में उन्हें राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का प्रमुख बनाया गया था। इस पद पर वे 2020 तक रहे। लेकिन बीते कुछ समय से वे खुद को पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रहे थे। उन्होंने कई बार पार्टी को लेकर अपनी नाराजगी सार्वजनिक तौर पर प्रकट की। रविवार को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को भेजे गए अपने इस्तीफे में भी उन्होंने लिखा कि पिछले कुछ समय से मेरी छवि धूमिल करने के उद्देश्य से मेरे विरुद्ध अपनी ही पार्टी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा षड्यंत्रपूर्वक मिथ्या आरोप एवं अन्य गतिविधियों द्वारा लगातार मेरी गरिमा को ठेस पहुंचाया जा रहा है।

भाजपा के नेताओं ने इस इस्तीफे के बाद कहा तो था कि नंदकुमार साय को मनाने की कोशिश की जाएगी। लेकिन इस्तीफे के घंटे भर के भीतर ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने उन्हें कांग्रेस में आने का न्यौता दिया और सोमवार को नंदकुमार साय का राजनैतिक कायांतरण हो गया। अब वे भाजपाई से कांग्रेसी बन गए हैं और इस घटनाक्रम से राज्य की सियासत में हलचल तेज हो गई है।

श्री साय ने कांग्रेस प्रवेश के मौके पर कहा कि, अटल,आडवाणी की जो पार्टी थी, वो पार्टी अब उस रूप में नहीं है। परिस्थितियां बदल चुकी हैं। दल महत्वपूर्ण नहीं है, आम जनता के लिए काम करना है। मिलकर काम करेंगे तो छत्तीसगढ़ अच्छा होगा। उन्होंने भूपेश सरकार की नरवा गरुवा घुरवा बाड़ी जैसी योजनाओं की तारीफ की और कहा कि इस योजना के जरिए भूपेश सरकार ने गौ का सम्मान किया है। भूपेश बघेल राम वन गमन पथ का निर्माण कर रहे हैं। नंद कुमार साय के इस्तीफे से लेकर कांग्रेस प्रवेश तक की बातों को विश्लेषित करें तो कुछ बातें स्पष्ट होती हैं।

पहली, भाजपा में पुराने नेताओं के सम्मान को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े हो रहे हैं। जब मोदीजी प्रधानमंत्री बने थे तो कई कद्दावर नेता मार्गदर्शक मंडल के नाम पर किनारे कर दिए गए थे। इस उपेक्षा का नतीजा अब नजर आ रहा है। दूसरी, श्री साय ने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा षड्यंत्रपूर्वक आरोपों का जिक्र किया है, यानी पार्टी में अंदरूनी खींचतान चल रही है। कर्नाटक में इस बार भाजपा इसी खींचतान का शिकार होते दिख रही है। राजस्थान में भी यह गुटबाजी है। तीसरी, नंदकुमार साय राम और गाय का जिक्र कर यह संदेश अपने समर्थकों को दे रहे हैं कि वे पार्टी बदल रहे हैं, विचारधारा नहीं। उन्होंने पार्टी से अधिक जनता के काम करने को महत्वपूर्ण बताया है।

नंदकुमार साय के भाजपा छोड़ने के पीछे वजहें जो भी रही हों, यह तय है कि भाजपा के लिए अब चुनावों में कठिनाइयां बढ़ेंगी। छत्तीसगढ़ में 32 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है और 90 में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। पिछली बार भाजपा को आदिवासी इलाके में एक भी सीट नहीं मिली थी, तो इस बार भी जीत के आसार दिख नहीं रहे। बल्कि विधानसभा के बाद आम चुनावों में भी भाजपा के लिए मुश्किल बढ़ सकती है। जबकि श्री साय के कांग्रेस प्रवेश से अब बस्तर से लेकर सरगुजा तक कांग्रेस को जो मुश्किलें पेश आ रही हैं, उन्हें दूर करने में मदद मिल सकती है। यानी कांग्रेस के लिए दोनों तरह से जीतने वाली स्थिति है, बशर्ते वह नंदकुमार साय जैसे वरिष्ठ और जमीन से जुड़े राजनेता का सही इस्तेमाल राज्य और आदिवासियों के हित में करे।

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