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चीन से शुरु हुई कोरोना महामारी ने दुनिया को दो साल तक अधमरा सा कर दिया था। अब एक बार फिर चीन में कोरोना के मामले बढ़ने की खबरें आ रही हैं। वहां की जमीनी सच्चाई के बारे में शत-प्रतिशत दावे के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता, फिर भी संक्रमितों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ मृतकों के आंकड़े बढ़ने की भी खबरें आ रही हैं, जिनसे दुनिया में फिर डर बढ़ रहा है। भारत में भी चीन की स्थिति देखते हुए घबराहट फैल रही है। बहुत से लोग सोशल मीडिया पर सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि पहली और दूसरी लहर जैसा हाल न हो, इसलिए पहले से सावधानी बरती जाए।

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने भी उच्च स्तरीय बैठक कर कोविड के प्रसार को रोकने पर चर्चा की है। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने राजस्थान के तीन सांसदों के पत्र का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राहुल गांधी से भारत जोड़ो यात्रा में कोविड नियमों के पालन की हिदायत दी। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि यात्रा में जुड़ने से पहले और बाद में यात्रियों को आइसोलेट किया जाए और अगर कोरोना के प्रोटोकॉल का पालन करना संभव नहीं हो तो जनस्वास्थ्य की आपात स्थिति को ध्यान में रखते हुए और कोरोनावायरस से देश को बचाने के लिए भारत जोड़ो यात्रा को देश हित में स्थगित कर दिया जाए।

स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते श्री मंडाविया की चिंताएं वाजिब हैं कि कहीं भीड़ जुटने से कोरोना का प्रसार न बढ़ जाए। अभी दो साल पहले देश जिन आपात स्थितियों से गुजर रहा था, तब सरकार ने ऐसी तत्परता दिखाई होती, तो न जाने कितनी जिंदगियां बचाई जा सकती थीं। जब विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना को महामारी बतला रहा था, बहुत से देश अंतरराष्ट्रीय आवाजाही को रोककर संक्रमण को रोकने की कोशिश में लगे थे। तब भारत में नमस्ते ट्रंप और बिहार के विधानसभा चुनाव हुए। जब अस्पतालों में सुविधाओं को बढ़ाने की युद्धस्तर पर तैयारियां होनी चाहिए थी, तब कभी प्रधानमंत्री जनता से ताली-थाली बजाने का आह्वान करते। कभी बालकनी में आकर दिया और टार्च जलाने कहते।

सनातनी संस्कृति के ठेकेदारनुमा नेताओं ने गौमूत्र का सेवन और छिड़काव के टोटके भी जनता को बता दिए। अंधविश्वासों और अवैज्ञानिक तरीकों का ऐसा फूहड़ प्रदर्शन किसी देश में नहीं हुआ होगा। हम यहां भी विश्वगुरु बन गए। रातोंरात लॉकडाउन का ऐलान करके लाखों मजदूरों को पैदल घर लौटने के लिए कैसे विवश किया गया, मानवाधिकार हनन का ऐसा दर्दनाक उदाहरण भी हमने पेश कर दिखाया। जब प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेनें चलनी शुरु हुईं तो उनमें असुविधाओं की वजह से मौतें हो गईं।

देर रात तक श्मशान में जलती चिताएं, नदी में बहती लाशें, आक्सीजन सिलेंडर को तरसते लोग, अस्पताल के बाहर तड़पते मरीज और उनके बदहवास परिजन, ऐसी सैकड़ों, हजारों दर्दनाक यादों से आज भी लोग कराह रहे हैं। ये और बात है कि धर्म की अफीम स्मृतियों को धुंधला करने में मददगार साबित होती है। दो साल बाद जिंदगी फिर से पटरी पर लौटती दिख रही है। तो फिर कोरोना का डर तारी हो रहा है।

अब सवाल ये है कि क्या सरकार को केवल भारत जोड़ो यात्रा से ही जनस्वास्थ्य की आपात स्थिति की चिंता हो रही है। ऐसी ही चिंता शाहीन बाग आंदोलन के कारण भी बनने लगी थी, क्योंकि महिलाएं ठंड की अंधेरी रात में भी अपने बच्चों के और देश के भविष्य के लिए धरने पर बैठने से नहीं घबरा रही थीं। अगर कोरोना की लहर नहीं आई होती, तो शाहीन बाग आंदोलन सरकार को और परेशान कर सकता था। नागरिकता के मुद्दे पर धर्म के आधार पर भेदभाव करने के खिलाफ शाहीन बाग आंदोलन खड़ा हुआ था। इसके बाद जिस तरह कोरोना के प्रसार में तब्लीगी जमात को निशाने पर लिया गया और फिर अल्पसंख्यकों के आर्थिक बहिष्कार की कोशिशें हुईं, उससे सवाल किए जाने लगे कि कोरोना के वायरस का इलाज तो फिर भी हो जाएगा, लेकिन नफरत के वायरस का क्या इलाज किया जाए। राहुल गांधी ने इसके लिए भारत जोड़ो यात्रा शुरु की, ताकि लोगों के बीच भाईचारे और प्रेम को फिर से जिंदा किया जाए।

भारत जोड़ो यात्रा तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, और राजस्थान में कामयाबी के झंडे गाड़ते हुए अब हरियाणा पहुंच गई है। यहां तीन दिनों तक यात्रा बढ़ेगी, फिर 24 तारीख को दिल्ली पहुंचने के बाद 9 दिनों का विराम लिया जाएगा। यात्रा ने लगभग 3 हजार किमी का सफर तय कर लिया है और अब 5-7 सौ किमी ही शेष रह गए हैं।

हरियाणा में बुधवार की धुंध भरी सुबह ही राहुल गांधी ने एक बार में 14 किमी की दूरी तय कर ली। इस दौरान वे लोगों से मिलते-बतियाते बढ़ते रहे। राहुल गांधी ने कहा कि नेताओं औऱ जनता में जो दूरी बन गई थी, इस यात्रा ने उसे पाटने का काम किया है। बहुत से लोग राहुल गांधी के इतने दूर तक पैदल चलने और ठंड में सुबह-सुबह निकलने पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं, उन्हें तपस्वी कहते हैं। इस बारे में राहुल गांधी ने कहा कि उनसे अधिक तपस्या करोड़ों लोग करते हैं, जो सुबह उठकर खेतों में काम करते हैं या छोटे व्यापार चलाते हैं। किसानों, मजदूरों के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले नेता तो बहुत मिलेंगे, लेकिन उनके शारीरिक श्रम का सम्मान नहीं होता। राहुल गांधी इस कमी को पूरा कर रहे हैं।

भारत जोड़ो यात्रा से असल मायनों में लोग जुड़ते जा रहे हैं, यही इसकी कामयाबी है। यह कामयाबी कांग्रेस की राजनैतिक कामयाबी का आधार बन सकती है, या कम से कम भाजपा को कई कारणों से असहज कर सकती है। भाजपा सरकार की ओर से जिस तरह यात्रा स्थगित करने की सलाह दी गई है, वह इस असहजता का उदाहरण है।

वैसे अगर सरकार वाकई कोरोना से देश को बचाना चाहती है, तो उसे नियम सबके लिए एक जैसे बनाने होंगे। ऐसी पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयों से बीमारी दूर नहीं होगी।

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