-अंकित मूर्तिजा॥
बत्तीस इंच के बक्से के अंदर बड़े चुनाव विज्ञानी। घनी दाढ़ी और करीने से बनी मूंछों से भारी भरकम आवाज़ के साथ भविष्यवाणी कर रहे थे – मध्य प्रदेश में कांटे की टक्कर है। राजस्थान में रिवाज़ बदले यानी जादूगर की जादूगरी चल जाए तो हैरानी नहीं होगी। जबकि, छत्तीसगढ़ की तस्वीर तो बिल्कुल साफ़ है – भूपेश बघेल वापसी कर रहे हैं। लेकिन नतीजे आए तो एग्जिट पोल का वही हाल हो गया जैसा किसी समय मौसम विभाग का हुआ करता था। झमाझम बारिश की चेतावनी दी जाती तो तपती झुलसा देने वाली धूप और सूरज के सितम का पूर्वानुमान तो समा सुहावना हो जाता।
तीनों हिंदी भाषी राज्यों में केसरिया ब्रिगेड कि ऐसी आंधी चली कि आधुनिक सियासी पंडितों की एक्सल शीट के पन्ने हवा में उड़ गए पर सवाल दिमाग में गहरे कहीं बैठ गया – आख़िर 2023 के सियासी संग्राम की नब्ज़ टटोलने में चूक कहां हुई। इसी प्रश्न को दो दिन सिरहाने के नीचे रखकर सो गया। फिर गुज़री रात सपने में भगवान श्री कृष्ण आएं और कहा – स्त्री मनोभाव जानना बहुत कठिन है। स्त्री के मन को समझने केमोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ? लिए बहुत धैर्यवान होना चाहिए। सहसा बेटे के रोने की आवाज़ से नींद खुली। लेकिन वासुदेव ने ज्ञान के चक्षु खोल दिए। प्रश्न का उत्तर यही तो छिपा है – साइलेंट वोटर। महिला मतदाताओं का मन।
हमें बाद में समझ आया कि रसोई में रोटी बनाते वक़्त भोपाल के गोविंदपुरा में रहने वालीं इमली देवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहते सुना – मेरे लिए तो एक ही जाति है, वो है गरीब और महिला। ये बात उसे जम गई। हमने सोचा नहीं कि बचत से पाई-पाई जोड़ने वाली इंदौर की कुसुम लता के खाते में वोटिंग से महज़ सात दिन पहले ही लाड़ली बहना के तहत इस महीने के साढ़े बारह सौ रुपये आए। तो ये बात उसे भी जम गई। जबकि ये सिलसिला इसी साल जनवरी से शुरू हुआ। भले ही वादा विपक्ष की ओर से भी डायरेक्ट कैश ट्रांसफर का किया गया पर उन्होंने भविष्य की बजाय वर्तमान को चुना।
उधर, छत्तीसगढ़ में जो हुआ उसकी भनक तो फिर शपथ लेने की तैयारी कर चुके भूपेश बघेल को भी नहीं लग सकी। बड़ी खामोशी से केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया ने मोर्चा संभाला। हर विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं से कुल 53 लाख फॉर्म भरवाए। जब पुलिस ने कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया तो जवाब में फॉर्म भरवाने के लिए महिलाओं को ही मैदान में उतार दिया गया। सख्ती हुई तो संदेश देने में देर नहीं लगाई कि भूपेश सरकार महिला विरोधी है।
लेकिन न्यूज़ चैनलों से जुड़ी सर्वे एजेंसियों का डाटा सीमित रहा। सब तक पहुंचे नहीं। पहुंचे भी तो चाची ने यह नहीं कहा कि मैं जो कहूंगी सच कहूंगी, सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगी। उन्होंने सवाल करने वाले शख़्स का लहज़ा देखा और उसी के मुताबिक जवाब दे दिया।
वैसे आचार्य चाणक्य ने भी तो लिखा है – स्त्री मनोवृति अजीब है। उसे समझना मुश्किल है। कौटिल्य के उद्धरण से इतर एक मित्र के घर का ही उदाहरण देख लीजिए। पिताजी धुर दक्षिणपंथी। माता पहले मध्यमार्गी। दोनों के बीच कभी-कभी जमकर सियासी बाण चलते। लेकिन जब दिल्ली में एक नए नवेले दल ने हस्तक्षेप किया तो माताजी के बदले रूझान की भनक मतदान के बाद ही चली। इन दिनों मोह भंग की स्थिति है। 2024 में रूख किस तरफ होगा ये कोई नहीं जानता।
अब पता है तो ये कि मध्य प्रदेश की जिन 34 सीटों पर महिलाओं ने पुरूषों से ज्यादा वोटिंग की थी, उनमें 24 पर कमल खिला। इस बार नारी शक्ति का मतदान प्रतिशत 2018 के मुकाबले 11.2 फीसदी ज्यादा रहा। छत्तीसगढ़ में 10। इसी तरह राजस्थान में 9 फीसदी। तीनों में कुल वोटर करीब 14 करोड़ हैं जिनमें महिलाओं की तादाद 7 करोड़ के आसपास है।
महत्वपूर्ण बात : बीजेपी की महाविजय के कारण कई और भी हैं। यहां सिर्फ़ एक फैक्टर के बारे में बात की।