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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

ऐसे वक्त में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तमाम सांगठनिक तकलीफों के बावजूद देश में लोकतंत्र को बचाने एवं लोकहित की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही है, कई कांग्रेसी नेता पार्टी को अलविदा कर रहे हैं। छोड़ने के अलग-अलग कारण हैं, परन्तु एक बात जो सभी में एक सरीखी है वह यह कि इन सारे नेताओं को कांग्रेस ने ऊंचे पद, रसूख, सम्मान, दौलत, शोहरत सब कुछ दिया है। कई को यह पारिवारिक विरासत के रूप में मिला तो कई अयोग्यता के बावजूद दशकों तक संगठन द्वारा ढोये जाते रहे। सत्ता सुख के आदी हो चुके ये परजीवी जाते हुए बेशक दल का नुकसान तो कर रहे हैं, परन्तु नयी पौध भी संगठन के भीतर लहलहा रही है जो हर तरह की मुश्किलों से लड़ते हुए उन लक्ष्यों की ओर सतत बढ़ रही है, जिसे पाने के लिये दल ने खुद को तकरीबन 140 साल पहले स्थापित किया था, स्वतंत्रता के लिये 60 वर्षों से अधिक लम्बी लड़ाई लड़ी और देश निर्माण में कभी सत्ता पक्ष के रूप में तो कभी विपक्ष बनकर अपनी निर्धारित जिम्मेदारियां निभाईं- संसद से लेकर विधानसभाओं और स्थानीय संस्थाओं तक; और बाहर सड़कों पर भी।
जिन विभिन्न चुनौतियों से कांग्रेस आज जूझ रही है, उनमें कुछ बाहरी तो कई अंदरूनी हैं। सत्ताएं गंवाना, चुनाव हारना, उसके नेताओं व सदस्यों का दमन-उत्पीड़न जैसे संकटों को तो वह झेल ही रही है, लेकिन जो अलग किस्म की परेशानियों से वह दो-चार हो रही है, वह है कांग्रेस में बने रहकर अन्य दलों की ओर आकर्षित होना या छोड़ना। ऐसे नेता बड़ी संख्या में हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कई बार के सांसद रहे कमलनाथ ने भी संकेत दे दिये हैं कि वे कांग्रेस को टा…टा, बाय-बाय करने जा रहे हैं। अकेले नहीं, पुत्र नकुलनाथ के साथ। नाथ पिता-पुत्र फिलहाल दिल्ली में हैं। शायद वे भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं से मिलेंगे। वैसे पार्टी छोड़े जाने सम्बन्धी सवालों पर कमलनाथ ने यह कहकर शंका को बढ़ा दिया है कि ‘वे वक्त आने पर पत्रकारों को सूचित करेंगे। कमलनाथ ने, जो नौ बार सांसद रहे, प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तथा इंदिरा गांधी जिन्हें राजीव संजय के बाद अपना तीसरा बेटा कहती थी, यह नहीं कहा है कि वे पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं। छिंदवाड़ा के उद्योगपति-नेता कमलनाथ का यह व्यवहार एक नेता के रूप में जिम्मेदारीपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
उल्लेखनीय है कि 2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी ने जब पार्टी अध्यक्ष के पद से यह कहकर इस्तीफा सौंपा था कि ‘चुनाव में कई बड़े नेता पार्टी को जिताने की बजाय अपने बेटों को जिताने के लिये मेहनत कर रहे थे, तो उनका संकेत कमलनाथ व उनके जैसे लोगों की ओर ही था।Ó बालाकोट व पुलवामा के मुद्दों पर लड़े गये उस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सीट सारी सीटें जीत गई थी, सिवाय उस सीट के जिस पर नकुलनाथ खड़े थे। कहते हैं कि भाजपा ने वहां जान-बूझकर कमजोर उम्मीदवार खड़ा किया था। 2023 के नवम्बर में जब राज्य विधानसभा के चुनाव हुए थे तो पराजय की शाम को समीक्षा की बजाय कमलनाथ अपने बेटे के साथ गुलदस्ता लेकर निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के घर पहुंचे थे। उनके साथ हास-परिहास वाले वीडियो वायरल हुए थे। उस चुनाव में पहले ही कमलनाथ ने खुद को भावी मुख्यमंत्री बतलाना शुरू कर दिया था।
कांग्रेस में कमलनाथ अकेले नहीं है। अभी मुश्किल से 3 दिन पहले ही महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी भाजपायी हो गये हैं। आदर्श हाउसिंग घोटाले के मुख्य आरोपी अशोक के पिता शंकरराव चव्हाण भी दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। बहुत पुरानी बात नहीं जब मुंबई प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वर्षों अध्यक्ष तथा दक्षिण मुंबई के सांसद रहे मुरली देवड़ा के बेटे मिलिंद ने भी पार्टी छोड़ी। उन्हें भी पार्टी ने इसी सीट पर लोकसभा भेजा था। पिछले कुछ समय में जिन लोगों ने दल छोड़ा, उनमें प्रमुख हैं मध्यप्रदेश के ही ज्योतिरादित्य सिंधिया (केंद्रीय मंत्री रहे माधवराव के पुत्र), जितिन प्रसाद, महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सुष्मिता देव, पूर्व केन्द्रीय मंत्री आरपीएन सिंह, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के पुत्र सुनील जाखड़, जो पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, पार्टी के बड़े नेता कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, कांग्रेस शासनकाल में रक्षा मंत्री रहे ए.के. एंटोनी के पुत्र अनिल, अल्पेश ठाकोर आदि। इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो पार्टी एहसानों का बदला नेतृत्व, खासकर गांधी परिवार पर आरोप लगाते हुए दल से अलग होते हैं। आजाद जैसे नेता तो आलोचना की लम्बी चि_ी लिखकर छोड़ते हैं।
बहरहाल, इस माहौल में भी उम्दा तस्वीर यह है कि इन नेताओं के खुद से अलग होने के बावजूद दल के उत्साह में कमी नहीं आई है। राहुल की भारत जोड़ो न्याय यात्रा हर रोज अधिक समर्थक जुटा रही है। कुछ लोगों के अलग होने के बाद भी इंडिया गठबन्धन मजबूत है। यहां तक कि करीब ढाई दशक अलग रहने वाले शरद पवार उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अपने बचे हुए धड़े का कांग्रेस में विलय का सोच रहे हैं। बुजुर्ग नेता मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में एक ऐसी नयी कांग्रेस बन रही है जिसमें क्षेत्रीय स्तर पर नया नेतृत्व उभर रहा है और जो पार्टी की धुरी को मजबूत कर रहा है। इनमें जीतू पटवारी, अजय राय, भूपेश बघेल, डीके शिवकुमार, सिद्दारमैया, रेवंता रेड्डी, वाईएस शर्मिला, नाना पटोले आदि हैं। ये नये नेता न डरते हैं न नयी चुनौतियां लेने से घबराते हैं। ये भविष्य की कांग्रेस बनाएंगे पर कांग्रेस को अपने भीतर पनपती ‘कमल छाप नस्ल से निज़ात पानी ज़रूरी है।

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