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कर्नाटक चुनाव में इस बार भाजपा के लिए कई तरह के संकट खड़े हुए हैं। सबसे बड़ा संकट तो सत्ता बचाने का है। इसके अलावा पार्टी में चल रही भगदड़, वरिष्ठ नेताओं, पूर्व मंत्रियों का कांग्रेस प्रवेश, आरक्षण, सांप्रदायिक मसलों को लेकर खड़े हुए विवाद भी चुनावी जीत की संभावनाओं को क्षीण कर रहे हैं। भाजपा की कोशिश हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलने की है, क्योंकि यह कार्ड हमेशा उसे फायदा दे जाता है। लेकिन इस बार राहुल गांधी ने कर्नाटक में चुनाव से ठीक पहले दो ऐसे मुद्दों को हवा दे दी, जिन पर भाजपा फंस सकती है। राहुल गांधी ने कर्नाटक से जातिगत जनगणना का कार्ड खेला है, जिस पर भाजपा बिहार और उत्तरप्रदेश में पहले ही फंसी हुई है और अब कर्नाटक से भी इसी मांग को राहुल गांधी ने उठा दिया है।
16 और 17 अप्रैल को राहुल गांधी दो दिन के कर्नाटक दौरे पर थे। वैसे तो उनका यह दौरा दो-तीन बार टला और तारीखें आगे बढ़ती रहीं। और जब-जब श्री गांधी के दौरे की अगली संभावित तारीख आती, तब-तब यह चर्चा उठती कि क्या कर्नाटक कांग्रेस में अंदरूनी कलह के कारण यह यात्रा टल रही है। मीडिया इस मुद्दे को तरह-तरह से बढ़ाता ताकि कांग्रेस के लिए माहौल खराब हो और भाजपा के पक्ष में बात बने। मगर फिर भी भाजपा अपनी फूट को रोक नहीं पाई। भाजपा को यह भी उम्मीद थी कि सांसदी गंवाने और मानहानि मामले में सजा के बाद राहुल गांधी थोड़े शांत हो जाएंगे। लेकिन राहुल गांधी अडानी मुद्दे पर सवाल उठाते रहे, पूछते रहे कि 20 हजार करोड़ किसके हैं और कर्नाटक के कोलार से सभा करके उन्होंने ऐसा दांव चल दिया, जिसका सामना करने के लिए भाजपा के रणनीतिकार शायद तैयार नहीं थे। गौरतलब है कि कोलार वही जगह है, जहां राहुल गांधी ने मोदी उपनाम को लेकर टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी को ही पूर्णेश मोदी ने मानहानि प्रकरण बनाया। कर्नाटक का मामला सूरत की अदालत में पेश हुआ और वहां से राहुल गांधी को अधिकतम सजा यानी 2 साल की कैद सुनाई गई। हालांकि इसके बाद उन्हें जमानत मिल गई और अब राहुल गांधी ने सजा के खिलाफ अपील की है, जिस पर फैसला आना अभी बाकी है। सजा के ऐलान के अगले ही दिन उनकी संसद सदस्यता रद्द हो गई और अब सरकारी बंगला भी छिन गया है। भाजपा संसद से राहुल गांधी को बाहर करने में सफल हो गई, लेकिन इसके बाद भी उसकी मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। राहुल गांधी अपने पुराने तेवर के साथ ही भाजपा के सामने ऐसे सवाल उठा रहे हैं, जिनके जवाब भाजपा के पास नहीं हैं।
16 अप्रैल को कोलार पहुंचे राहुल गांधी ने ओबीसी के हक का सवाल और जातिगत आधारित जनगणना की मांग मोदी सरकार के सामने रखी। कांग्रेस की ‘जय भारत’ चुनावी रैली में उन्होंने कहा कि संप्रग ने 2011 में जाति आधारित जनगणना की। इसमें सभी जातियों के आंकड़े हैं। प्रधानमंत्री जी, आप ओबीसी की बात करते हैं। उस डेटा को सार्वजनिक करें। देश को बताएं कि देश में कितने ओबीसी, दलित और आदिवासी हैं। आंकड़ों को सार्वजनिक करने की जरूरत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि अगर सभी को देश के विकास का हिस्सा बनना है तो प्रत्येक समुदाय की आबादी का पता लगाना जरूरी है। बता दें कि यूपीए सरकार ने 2011 में सामाजिक आर्थिक एवं जातिगत जनगणना (एसईसीसी) की थी। लेकिन इसके बाद ऐसी कोई पहल मौजूदा सरकार ने नहीं की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी प्रधानमंत्री श्री मोदी को एक पत्र लिखकर कहा है कि मैं एक बार फिर नवीनतम जाति जनगणना के लिए आधिकारिक रुप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मांग को रखने के लिए आपको ये पत्र लिख रहा हूं। मेरे सहयोगियों ने और मैंने पहले भी कई अवसरों पर संसद के दोनों सदनों में इस मांग को उठाया है। कई अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी इस मांग को रखा है। श्री खड़गे ने 2011 में एसईसीसी कराए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि मई 2014 में आपकी सरकार आने के बाद कांग्रेस और अन्य सांसदों ने इसे जारी करने की मांग की, लेकिन कई कारणों से जातिगत आंकड़े प्रकाशित नहीं किए गए।
जातिगत जनगणना की मांग पर भाजपा बिहार में पहले ही बुरी फंसी हुई है। अब कर्नाटक में कांग्रेस ने फिर इस मुद्दे को खड़ा किया है। कांग्रेस की इस पहल से जेडीयू, राजद और सपा जैसे दल भी खुश होंगे और विपक्षी एकता की संभावनाएं मजबूत होंगी। राहुल गांधी के लिए इस मसले का दोहरा महत्व है। एक ओर यह विपक्ष को एक करने की कोशिश है, दूसरी ओर उस ओबीसी समुदाय को साधना है, जिसके अपमान का आरोप राहुल गांधी पर उनके विरोधियों ने लगाया है। भाजपा उस अपमान की बात करती रही, जो राहुल गांधी ने किया ही नहीं और अब खुद श्री गांधी ने ओबीसी के आंकड़े जारी करने की मांग सरकार से कर के भाजपा को पसोपेश में डाल दिया है। अगर वह श्री गांधी की मांग को पूरा न करे तो ओबीसी विरोधी कहलाएगी और पूरा करे तो राहुल गांधी के आगे झुकी नजर आएगी। इससे जनता के बीच भाजपा की कमजोर छवि बनेगी।
राहुल गांधी ने दूसरा सधा कदम कर्नाटक के दुग्ध केंद्र नंदिनी के स्टोर पर जाकर उठाया। पिछले कई दिनों से अमूल बनाम नंदिनी विवाद कर्नाटक में चल रहा था। नंदिनी के अमूल द्वारा अधिग्रहण की आशंकाओं के बीच माहौल में बाहरी बनाम स्थानीय का सवाल गहराता जा रहा था, इस बीच राहुल गांधी ने नंदिनी की आइसक्रीम खरीदकर ब्रांड कर्नाटक का गौरव बता दिया। यानी कांग्रेस ने अपना पक्ष साफ कर दिया कि वह कर्नाटक के लोगों के साथ है। इसका तगड़ा संदेश जनता के बीच जाएगा। कुल मिलाकर चुनावी वादों और घोषणाओं के अलावा राहुल गांधी ने दो ऐसे मुद्दों को अपने दौरे में उठाया है जो सीधे जनता तक पहुंचेंगे और इसमें मीडिया कुछ नहीं कर पाएगा।

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