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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

आमतौर पर दुनिया के लोकतंत्रवादी लोग इजराइल को एक देश के रूप में नीची नजरों से देखते हैं क्योंकि यह देश फिलस्तीन की जमीन पर कब्जा करके, वहां के लोगों को बेदखल करके, दुनिया की सबसे बड़ी बेइंसाफी दर्ज करते चले आ रहा है, और इस गुंडे की पीठ पर जिस तरह अमरीका के बीटो का हाथ बना रहता है, उसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ भी जुबानी जमाखर्च से अधिक आज तक कुछ नहीं कर पाया है, और इजराइल दुनिया के एक सबसे बड़े मुजरिम की तरह लोकतांत्रिक देशों को नामंजूर बना हुआ है। यह एक अलग बात है कि हिन्दुस्तान के साथ हाल के बरसों में उसके रिश्ते ऐसे मजबूत हुए हैं कि हिन्दुस्तानी सरकार के लोग अपने बच्चों के अक्षर ज्ञान से फिलस्तीन का फ अक्षर हटा देने की सोच रहे हैं। ऐसे में आज अगर इसी इजराइल के भीतर के लोग अपने देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए इस अंदाज में सडक़ों पर हैं कि जिसकी किसी ने वहां सपने में भी कल्पना न की होगी, तो यह बात गौर करने लायक है। इजराइल में लोकतंत्र को बचाने के लिए सरकार के खिलाफ आम लोगों के साथ-साथ कौन-कौन और लोग जुड़े हैं, यह देखना हैरान करता है। दुनिया के बाकी तमाम देशों को भी लोकतंत्र खत्म करने की हरकतों के पहले यह सोच लेना चाहिए कि इजराइल जैसे फौलादी फौजी शिकंजे वाले देश में अगर आज सरकारी पायलट प्रधानमंत्री के विमान को उड़ाने से इंकार कर दे रहे हैं, विमान कर्मचारी प्रधानमंत्री के विमान में ड्यूटी से मना कर दे रहे हैं, और इनसे कहीं आगे बढक़र इजराइल की एयरफोर्स के सबसे चुनिंदा लड़ाकू विमान-पायलटों का स्क्वॉड्रन सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज करते हुए अगर ट्रेनिंग लेने से मना कर दे रहा है, तो दुनिया के कितने देश ऐसी नौबत का खतरा उठा सकते हैं। इजराइली प्रधानमंत्री सरकारी विमानसेवा के पायलटों और बाकी कर्मचारियों की मनाही का शिकार उस वक्त हुए जब वे इटली के प्रधानमंत्री से मिलने वहां जाने वाले थे। इस इजराइल में किसी ने ऐसे जनआंदोलन की कल्पना भी नहीं की होगी क्योंकि इस देश के लोग दुनिया के सबसे कामयाब कारोबारी हैं, और छोटी सी जमीन से ये पूरी दुनिया में फौजी, खुफिया, सुरक्षा सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का दुनिया का सबसे बड़ा कारोबार करते हैं। ऐसे व्यस्त कारोबारी देश में अगर लोग सरकार के एक फैसले के खिलाफ इस हद तक सडक़ों पर उतर आए हैं, तो दुनिया के उन तमाम देशों को इससे एक सबक लेना चाहिए जो आज अपनी-अपनी सरहदों में लोकतंत्र को खत्म करने के तरीके ईजाद करने में लगे हुए हैं। लगे हाथों अभी अमरीका के न्यूयॉर्क में सैकड़ों यहूदियों का निकाला हुआ एक जुलूस भी काबिल-ए-जिक्र है जिसमें यह मांग की गई कि जिस तरह इजराइल फिलीस्तीनियों पर जुल्म कर रहा है, अमरीका इजराइल को दी जाने वाली सारी फौजी मदद बंद करे। ये यहूदी लोग इजराइल के ही मूल निवासी हैं, लेकिन अपने देश की सरकार के फिलीस्तीन-विरोधी रूख से असहमत हैं।

अब यह समझने की जरूरत है कि आज इजराइल में इतना बड़ा यह आंदोलन क्यों छिड़ा है? वहां के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं, और किसी तरह खींचतान कर उन्होंने अटपटी पार्टियों से मिलकर इजराइल के इतिहास की आज तक की सबसे कट्टरपंथी और दकियानूसी सरकार बनाई है। इसमें ऐसी दक्षिणपंथी पार्टियां शामिल हैं जिनके मन में मानवाधिकारों के लिए हिकारत के अलावा कुछ नहीं है, और जो खुलेआम फतवे देती हैं कि किस तरह फिलीस्तीन का नाम भी दुनिया के नक्शे से मिटा देना चाहिए। ऐसी कट्टरपंथी सरकार ने अभी संविधान में ऐसा संशोधन करना शुरू किया है जिससे अदालतों के ऊपर सरकार का काबू हो जाएगा, और सरकार ही संसद से लेकर अदालत तक इन सबके ऊपर राज करेगी। इजराइल की जनता चाहे वह फिलीस्तीन पर अपने देश के जुल्मों पर मोटेतौर पर चुप रहती आई है, लेकिन अपने देश में लोकतंत्र खत्म होने के इस खतरे को उसने तुरंत भांप लिया है, और लाखों लोग सडक़ों पर निकल आए हैं। किसी भी देश में किसी हड़ताल या सरकारविरोधी आंदोलन में फौज शायद ही कभी शामिल होती हो, और अगर फौज ही सरकार के खिलाफ उठ खड़ी हुई है, तो यह बगावत या सत्तापलट से कुछ ही कदम पीछे की नौबत है। ऐसे में यह देखना अविश्वसनीय लगता है कि इजराइली एयरफोर्स के लड़ाकू पायलटों की तरफ से यह बयान आ रहा है कि वे एक तानाशाह सरकार के लिए काम नहीं करेंगे, और सरकार को यह रूख बता भी दिया गया है। इजराइल के दस भूतपूर्व वायुसेना प्रमुखों ने एक खुली चि_ी में प्रधानमंत्री को देश के संविधान से छेड़छाड़ बंद करने को कहा है, और लिखा है कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ रही है। इजराइल की फौज का एक अहम हिस्सा यूनिट-8200 है जो कि फौज के लिए लुके-छुपे ऑपरेशन करती है, उसकी रिजर्व फोर्स ने भी यह कह दिया है कि उसके लोग ड्यूटी नहीं करेंगे।

इजराइल की मौजूदा सरकार अपने बदनाम प्रधानमंत्री नेतन्याहू की अगुवाई में कुछ महीने पहले ही तमाम घटिया किस्म की पार्टियों के साथ मिलकर सत्ता पर आई है, और अब ऐसे गिरोह ने संविधान में ऐसा संशोधन करना शुरू कर दिया है जिससे जजों की नियुक्ति पर सरकार का पूरा कब्जा हो जाएगा, और संसद के बनाए हुए कानूनों का सुप्रीम कोर्ट कुछ भी नहीं कर पाएगी। सरकार का यह तर्क है कि पिछले चुनाव में वह वोटरों द्वारा चुनी गई है, और उसे संविधान में ऐसे फेरबदल का हक है, लेकिन देश की जनता ने इस तर्क को खारिज कर दिया है कि निर्वाचित होने का मतलब संविधान से छेड़छाड़ का हक होता है। आज वहां चल रहा जनआंदोलन न सिर्फ इजराइल के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन है, बल्कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में सरकार के खिलाफ फौज में मौजूदा लोगों का अपने किस्म का अनोखा आंदोलन है।

हम इजराइल के भीतर के हालात को लेकर अधिक फिक्रमंद नहीं हैं क्योंकि यह देश दुनिया का सबसे जुल्मी देश बना हुआ है, लेकिन हम वहां उठ खड़े हुए इस लोकतांत्रिक आंदोलन को देखकर राहत महसूस कर रहे हैं कि सबसे अधिक मतलबपरस्त दिखते कारोबारी जनता वाले देश में भी लोकतंत्र को एक सीमा से अधिक कुचलने का क्या नतीजा हो सकता है। हम इस जागरूकता को दुनिया के उन बाकी लोकतंत्रों के लिए अहमियत का मानते हैं जहां पर सरकारें संसद और अदालत को काबू में रखने की संभावनाओं पर लार टपका रही हैं। इजराइल की जनता की आज की लोकतांत्रिक जागरूकता बाकी दुनिया के लिए भी एक मिसाल बन सकती है, और जिन देशों में जनता आज मुर्दा बनी हुई है, वहां भी हो सकता है कि लोगों को लोहिया की कही बात याद आए, और उन्हें यह समझ आए कि जिंदा कौमें पांच बरस इंतजार नहीं करतीं।

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