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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-शकील अख्तर।।

राहुल के साथ पूरे परिवार की एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली गई है। इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद 1988 में एसपीजी का गठन ही इसलिए हुआ था कि वह देश की सर्वोच्च सुरक्षा एजेन्सी के तौर पर प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार को सुरक्षा दे। मगर राजीव गांधी की हत्या से पहले उनकी भी एसपीजी सुरक्षा तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने वापस ली थी।

यात्रा की सफलता अपनी जगह मगर राहुल गांधी की सुरक्षा पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। यात्रा सोमवार को महाराष्ट्र में प्रवेश कर रही है। और वहां घुसने के साथ ही यह कहना जरूरी है कि देश के लिए गढ़ भी और सिंह भी दोनों जरूरी हैं। शिवाजी ने कहा था ‘गढ़ आला पण सिंह गेला!’

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अभूतपूर्व सफलता अर्जित कर रही है। ऐेसी उम्मीद किसी को नहीं थी। खुद कांग्रेसियों को भी नहीं थी। अगर उन्हें मालूम होता तो वे बहुत पहले ही ऐसी यात्रा निकलवा चुके होते। मुनाफे के सौदे में कांग्रेसी कभी पीछे नहीं रहते हैं। मगर कुछ न मिलने वाला हो और काम कितने ही बड़े महत्व का हो तो वे हाथ नहीं डालते। ऐसी ही इस यात्रा के साथ हुआ। उन्हें खुद राहुल की क्षमताओं पर भरोसा नहीं था। इसीलिए यात्रा का प्रोग्राम हमेशा टाला जाता रहा। और राहुल के अंदर जो एक सबसे बड़ी कमी है जो नेता में होना नहीं चाहिए कि उन्हें जो बात सही लगती है उसे अगर दूसरे मना करते हैं तो वे मान जाते हैं। अपने मन को मार लेते हैं मगर साथ वालों का दिल नहीं तोड़ते। राजनीति में यह कोई अच्छी चीज नहीं है। और तब तो बिल्कुल नहीं जब आपके आसपास के लोग आपके प्रति और पार्टी के प्रति वफादार न होकर खुद अपने निजी हित के लिए राजनीति करते हों।

हम तो यह बात कई बार लिख चुके, दिग्विजय सिंह ने भी कह दिया मगर इस बार खुद राहुल ने कह दिया कि पद यात्रा करके लोगों से मिलना वे पहले से चाह रहे थे। मगर हर बार कांग्रेसी नेता इसमें अड़ंगे डाल देते थे। कहते थे अभी समय ठीक नहीं है। उनका मुख्य तर्क होता था कि इस समय लोग मोदी के खिलाफ सुनना नहीं चाहते। राहुल हर बार चुप रह जाते थे। दिग्विजय सिंह 2017 में अपनी नर्मदा यात्रा पर निकलने से पहले जब राहुल गांधी से मिलने गए थे तब भी उन्होंने कहा था कि आपको पद यात्रा करते हुए कश्मीर जाना चाहिए। मगर तब भी राहुल को खुद यात्रा करने तो जाने ही नहीं दिया गया बल्कि दिग्विजय की यात्रा में भी शामिल होने से रोका गया।
मगर राहुल ने इस बार पक्का ठान लिया था। यात्रा शुरू होने से पहले उन्होंने साफ बोल दिया था कि कोई आए या न आए मैं अकेला ही चलूंगा। उसी समय का ट्वीट है हमारा। संयोग से उस प्रोग्राम में हम थे। बड़े नेताओं में दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश थे।

राहुल का फैसला बिल्कुल सही साबित हुआ। आज दो महीने हो गए। सितम्बर की 7 तारीख को ही राहुल ने कन्याकुमारी से यात्रा स्टार्ट की थी। आज 7 नवंबर है। इन दो महीनों में दुनिया बदल गई। योगेन्द्र यादव जिन्होंने कहा था कांग्रेस मर क्यों नहीं जाती वे तो पहले दिन से यात्रा में घुस गए थे मगर रविवार को प्रशांत भूषण भी पहुंच गए। हमें इसमें आश्चर्य नहीं। अन्ना हजारे के जरिए कांग्रेस के खिलाफ विष वमन करने वाले इन लोगों को मोदी जी और केजरीवाल जी दोनों ने अच्छी तरह पहचान लिया था।

वे सारे चेहरे जो खुद को राजनीति से दूर बताते हुए कांग्रेस के खिलाफ राजनीति कर रहे थे मोदी और केजरीवाल की कृपा नहीं पा सके। और सही भी था। मोदी और केजरीवाल दोनों राजनीतिक बुद्धिसंपन्न लोग थे। उन्होंने इन अवसरवादियों को पहचानने में देर नहीं लगाई। इसलिए अब यह राहुल जैसे भोले भंडारी के साथ पैदल चलने लगे। राहुल को ज्ञान की कई पुड़ियां यह लोग दे चुके हैं। अब यह राहुल के नजदीकी लोगों का काम है कि वे देखें। क्योंकि ये ऐसे लोग हैं कि इनके काटे का मंत्र नहीं मिलता। सिर्फ एहतियात से ही इनसे बच सकते हैं। ये अन्ना हजारे को भी लाने की गोली दे सकते हैं। हालांकि वे आएंगे नहीं। बहुत डरते हैं। केवल कांग्रेस के खिलाफ ही साजिशें कर सकते हैं।

खैर तो यह सब यात्रा की कामयाबी के परिणाम हैं। भाजपा और केन्द्र सरकार सकते में है कि हजारों करोड़ रुपए जिस आदमी को पप्पू बनाने पर खर्च किए थे वह जब सड़क पर निकला तो ऐसा छाया कि रोज हजारों हजार लोग उसके साथ पैदल चलते हैं। हर राज्य में पिछले राज्य के मुकाबले उत्साह और समर्थन बढ़ता जाता है। कांग्रेस के बागी नेता भी सदमे में हैं कि उनके सारे आकलन गलत साबित हो गए। और राहुल के नजदीकी भी जो सोचते थे कि राहुल की राजनीति वे चलाएंगे सनाका खा गए कि दो महीने में यह कैसा परिवर्तन हो गया कि राहुल उन के हाथ से निकलकर पब्लिक फेस हो गया। जनता का ऐसा दुलारा कि जो आ रहा है गले लग रहा है। बच्चे माथा चूम रहे हैं। वृद्ध औरतें सीने से लगकर रो रही हैं। कोई खुशी से, कोई अपने दुख कहकर तो कोई भावावेग में। यह जननायक से भी ऊपर जनप्रिय, लाडले, भरोसेमंद अपनेपन की छवि है।

लेकिन यह सब ठीक है। अच्छा है। कांग्रेस के लिए, उसकी बढ़ती राजनीति संभावनाओं के लिए। वापस सत्ता में आने के सपनों के लिए। मगर राहुल की सुरक्षा के लिए यह भीड़, लोगों का बिल्कुल नजदीक तक आ जाना बड़ा खतरा भी है।

अभी पाकिस्तान में इमरान खान पर हमला करने वाला उसी तरह के बयान दे रहा था जैसे अन्य बहकाए लोग देते हैं। मैं उनकी इस बात से नाराज था। एक माहौल बनाया जाता है कि बढ़ता हुआ नेता यह गलत कर रहा है वह गलत कह रहा है। भावनाओं को चोट पहुंचा रहा है और बहकाए हुए लोग इन बातों में आकर हमला कर देते हैं।

सरदार पटेल जिनका नाम आजकल भाजपा और उसके मंत्री भी बहुत ले रहे हैं ने कहा था कि जो माहौल बनाया गया था वही गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार है। अन्ना हजारे और उनके साथियों ने भी वैसा ही माहौल बनाया था। शरद पवार जैसे हर लिहाज से प्रभावी नेता के गाल में चांटा मार दिया गया और हजारे रहे हें करते हुए कहते हैं कि एक ही गाल में क्यों? केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम पर कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कान्फ्रेंस में जूता फेंका गया। कांग्रेस आफिस में तो और भी कई हंगामे किए। तो क्या इन प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव ने उन हिंसक घटनाओं का विरोध किया था? केजरीवाल ने तो गृहमंत्री पर जूता फेंकने वाले को विधानसभा का टिकट भी दिया। तो क्या खुद को सिविल सोसायटी कहने वाले इन लोगों ने इस अनसिविल काम का विरोध किया था?

आजादी के बाद से देश के तीन बड़े नेता, जो कांग्रेस के थे राजनीतिक हत्याओं के शिकार हो चुके हैं और जिस माहौल की हम बात कर रहे थे वह आज इस कदर बढ़ा हुआ है कि महात्मा गांधी, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी की हत्याओं का सार्वजनिक जस्टिफिकेशन किया जाने लगा है। हत्या को उचित बताना हत्या से कम अपराध नहीं है। कहते हैं कि शाब्दिक हिंसा सबसे बुरी, सबसे खतरनाक होती है।

राहुल के साथ पूरे परिवार की एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली गई है। इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद 1988 में एसपीजी का गठन ही इसलिए हुआ था कि वह देश की सर्वोच्च सुरक्षा एजेन्सी के तौर पर प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार को सुरक्षा दे। मगर राजीव गांधी की हत्या से पहले उनकी भी एसपीजी सुरक्षा तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने वापस ली थी।

जो भी यात्रा में जा रहा है राहुल की सहज उपलब्धता से गदगद है। मगर साथ ही इतनी सहज पहुंच हो जाने से चिंतित भी। सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है। एसपीजी सुरक्षा तत्काल वापस दी जाना चाहिए। एसपीजी सुरक्षा में आज तक ऐसी घटना नहीं हुई है। पहले शहीद हुए दोनों नेताओं पर जब हमला हुआ तो उनके पास एसपीजी सुरक्षा नहीं थी। इन्दिरा जी के समय एसपीजी बनी नहीं थी और राजीव गांधी के समय हटा ली गई थी।

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