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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

– सुब्रतो चटर्जी।।

इतना कुछ लिखा गया है इस पर कि कुछ लिखने की न इच्छा हो रही है और न ही कोई ज़रूरत महसूस हो रही है ।

फिर भी । जैसे कोई सोच अपनी गर्भावस्था को प्राप्त करने के बाद, जैसे कोई तरल अपने सम्पृक्त अवस्था को प्राप्त करने के बाद एक विशेष फ़ॉर्म की तलाश में रहता है, चाहे वह aesthetics या सौंदर्य शास्त्र के हिसाब से कितना भी टेढ़ा मेढ़ा क्यों न हो, उसी तरह कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ । ज़ाहिर है, समंदर में उछाले गए कंकड़ की तरह काल और अवज्ञा की इस धारा में मेरे विचार भी खो जाएँगे, फिर भी कुछ स्त्री तत्व रहेंगे जो कि नदी के पुल के उपर से गुजरते हुए अपने आँचल की कोर में बंधे हुए सिक्कों को उछाल कर अदृश्य से अनिष्ट के प्रति आशीर्वाद की उम्मीद में होंगी ।

जो भी हो, आज के दिन मुझे अपनी अज्ञानता पर गर्व करने नहीं देता ।

Introduction जब लंबा खींचता है तब बोरिंग होता है, इसलिए विषय वस्तु पर आने की ज़रूरत है ।

बहुत सारे सुधी मित्रों को नोटबंदी पर अपने विचार व्यक्त करते देखा । सबके विचार में नोटबंदी ने अपने कथित उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रही ।

मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखता ।

आपको याद रखना चाहिए कि नरेंद्र मोदी एक छँटा हुआ क्रिमिनल है और चंद धनपशुओं का बेशर्म गुलाम भी है । इन परिस्थितियों में नोटबंदी का देश द्रोही और ग़ैर क़ानूनी फ़ैसला बहुत सोच समझ कर लिया गया फ़ैसला था ।

पहली बात तो ये है कि, नोटबंदी के ज़रिए देश की अर्थव्यवस्था को ख़त्म कर असंगठित क्षेत्र को पूरी तरह से ध्वस्त करना था, जिस पर देश की ९४{9797e7c5149f7c7841f81e09607e3a5501e98337a1f9aeacd574d2f7abe328b8} लेबर फ़ोर्स निर्भर करती है । यही हुआ ।

दूसरी बात ये है कि, अपरिपक्व वाम विचार धारा के फलस्वरूप अमीर ग़रीब की सांकेतिक लड़ाई को हवा देना । ग़रीब खुश थे कि मोदी ने अमीरों के काले धन पर चोट कर ग़रीबों की मदद की है । यह एक psychological warfare था, जिसमें जीत मोदी की 2019 में हुई । गदहा विपक्ष इस चाल को counter ही नहीं कर पाया । विपक्ष गोल पोस्ट हटाने की सरकारी नैरेटिव में उलझ कर असल बात समझने में चूक गया ।

पाँच सालों बाद भी हमारे बुद्धि जीवी इसी नैरेटिव में उलझे हुए हैं । वे समझते ही नहीं हैं कि ख़ुदा होने से ज़्यादा ज़रूरी है खुदा जैसा दिखना । Politics is a game of perception. लोक चेतना में छवि निर्माण की सफलता ही राजनीतिक सफलता की कुंजी है और मोदी इसमें अपने विरोधियों से मीलों आगे हैं ।

चुनावी राजनीति का महा मंत्र बस इतना ही है कि आप औरों से बेहतर दिखें । कैसे दिखें , यह आपको तय करना है ।

आज , कॉंग्रेस के समर्थकों को प्रशांत किशोर की बात नागवार लग रही है कि कॉंग्रेस मोदी से मुक़ाबला नहीं कर सकती , लेकिन, वह सच कह रहे हैं । Game of perception में देश द्रोही मोदी कॉंग्रेस से मीलों आगे हैं ।

कुछ लोगों का मानना है कि एक समय आएगा जब पेट की भूख हर बात पर भारी पड़ेगी और इस निज़ाम का अंत होगा । बकवास है । सही राजनीतिक चेतना से लैस करने की ज़िम्मेदारी समानांतर राजनीति पर है, और इस मुद्दे पर कोई बात नहीं करता ।

मैंने व्यक्तिगत रूप से राहुल गाँधी को ख़बर भिजवाया कि आप मोदी के निजीकरण के विरुद्ध खुल कर बोलिए । दीवाली के पहले उनके प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने कहा कि अगर कॉंग्रेस सत्ता में आई तो राष्ट्रीय करण की नीति पर लौटेगी । अभी और भी कुछ गुरु मंत्र बाक़ी है, जो मेरे दिल्ली लौटने के बाद देना है । अभी दिल्ली से बाहर हूँ ।

फ़िलहाल इतना ही कहना काफ़ी है कि मोदी के झूठ की समझ सबको आ गई है, लेकिन इसे mass perception में तब्दील करना कॉंग्रेस के हाथ में है ।

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