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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार।।

सुप्रीम कोर्ट ने अभी केन्द्र सरकार को इस बात को लेकर जमकर फटकार लगाई है कि जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने महीनों से केन्द्र सरकार को भेजा हुआ है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के नाम केन्द्र सरकार मंजूर नहीं कर रही है। अदालत ने इसे लेकर केन्द्र के कानून सचिव को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है कि सरकार के पास अभी भी दस नाम पड़े हुए हैं, और उस पर सरकार को न आपत्ति है, न उसकी मंजूरी है। ऐसे में जिन लोगों के नाम जज बनाने के लिए सरकार को भेजे गए थे उनमें से कुछ लोगों ने खुद होकर अपने नाम वापिस ले लिए, ऐसे एक प्रस्तावित व्यक्ति का तो इस इंतजार में निधन भी हो गया। दूसरी तरफ केन्द्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू का कहना है कि आज सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम प्रणाली मेें पारदर्शिता नहीं है, और उसमें जवाबदेही भी नहीं है। कानून मंत्री का यह कहना है कि दुनिया भर में कहीं भी जजों की नियुक्ति जज नहीं करते हैं, जैसा कि हिन्दुस्तान में होता है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को जब खारिज कर दिया, तब केन्द्र सरकार कुछ दूसरे कदम उठा सकती थी, लेकिन उसने तुरंत ऐसा नहीं किया, अदालत के फैसले का सम्मान किया, लेकिन उसका यह मतलब नहीं है कि सरकार हमेशा ही मौन बैठी रहेगी। कानून मंत्री का यह कहना एक किस्म से सुप्रीम कोर्ट को यह बतलाना भी है कि सरकार उसके फैसले के खिलाफ कोई और कानून भी बना सकती है, और जजों की नियुक्ति में सरकार की दखल बढ़ा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के जज अपने लिए और जज छांटते हैं, और हाईकोर्ट के लिए भी। इनके नाम केन्द्र सरकार को भेजे जाते हैं, और वहां से कोई आपत्ति न हो तो आगे-पीछे इन्हीं में से नए जज बनते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के जज अपनी पहचान के जजों और वकीलों के साथ भेदभाव करते हैं। और कई लोगों का यह भी मानना है कि इनमें जातियों का भी बोलबाला होता है, पहचान और रिश्तों का भी बोलबाला होता है, और शायद यह भी एक वजह है कि महिलाओं को बराबरी के मौके नहीं मिल पाते। जजों के लिए लोगों को किस आधार पर छांटा गया, या किन जजों को और ऊपर की अदालत तक ले जाना तय किया गया, इसके तर्क आम जनता के सामने कभी नहीं आते। इनके नाम केन्द्र सरकार को जरूर भेजे जाते हैं, और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम यह उम्मीद करता है कि उसके भेजे तमाम नाम मंजूर कर लिए जाएं, और अधिकतर मामलों में ऐसा होता भी है। सरकार उसे मिले अधिकारों में से एक, देर करने के अधिकार का भरपूर इस्तेमाल करती है, और अपने को नापसंद जजों के नाम को इतना लटकाकर रखती है कि वे खुद होकर अपना नाम वापिस ले लें, या उन्हें जज बनने में, आगे बढऩे में अंधाधुंध देर होती रहे।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम प्रणाली के नफा-नुकसान पर गए बिना हम एक अलग प्रणाली की चर्चा करना चाहते हैं जिसके तहत अमरीका में जजों की नियुक्ति होती है। वहां पर राष्ट्रपति अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए मनोनीत करते हैं, और उसके बाद वहां पार्टियों की मिलीजुली एक संसदीय समिति में उस मनोनीत की सुनवाई होती है। कई-कई दिनों तक सांसद ऐसे व्यक्ति से हजार किस्म के सवाल करते हैं, उनकी निजी मान्यताओं से लेकर नीचे की अदालतों में उनके दिए फैसलों पर भी बात करते हैं, कहीं उनके लिखे हुए, या कहे हुए शब्दों पर भी उनसे जवाब मांगा जाता है, और ऐसी कड़ी और लंबी सुनवाई के बाद उनके नाम को मंजूरी मिल पाती है। इस सुनवाई के दौरान इन व्यक्तियों की निजी सोच, उनके पूर्वाग्रह, उनकी जिंदगी के बारे में सब कुछ उजागर हो जाता है, और यह पारदर्शिता अमरीका को यह जानने में मदद करती है कि किन मुद्दों पर किस जज का क्या रूख रहेगा। हिन्दुस्तान में किसी को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का जज बनाते समय उनके विवादास्पद पहलुओं पर गौर किया गया है या नहीं, इसका कोई जवाब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम नहीं देखा। यह उसके विशेषाधिकार, और सरकार के रोकने के विशेषाधिकार के बीच की बात रह जाती है, और जिस जनता का सबसे अधिक हक होना चाहिए, उसे अपने जजों के बारे में बनने के पहले, और बनने के बाद कुछ पता नहीं लगता। हमारे हिसाब से अमरीका में सुप्रीम कोर्ट के जज बनाने का तरीका अधिक पारदर्शी और अधिक जवाबदेह है। हिन्दुस्तान को अपने तरीकों में जनता के प्रति जवाबदेही लानी चाहिए, चाहे वह सुप्रीम कोर्ट का मामला हो, चाहे सरकार का, उन्हें अपने ऐसे फैसलों की वजहों को खुलकर सामने रखना चाहिए। जो लोग इस देश के वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करने वाले फैसले देने का अधिकार पाने जा रहे हैं, उनके बारे में देश की जनता को अधिक जानने का बड़ा साफ हक होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट और कानून मंत्री के बीच जिस तरह के मतभेद जजों की नियुक्ति को लेकर सामने आए हैं उनका इस्तेमाल इस मामले पर बहस छेडऩे और आगे बढ़ाने में किया जाना चाहिए।

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