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असम-मेघालय का पांच दशक पुराना सीमा विवाद, मंगलवार को गोलीबारी और हिंसा में छह लोगों की जान जाने के बाद फिर चिंता का विषय बन गया है। गौरतलब है कि असम-मेघालय सीमा पर मंगलवार को तड़के वन विभाग के अधिकारियों ने लकड़ियां ले जा रहे एक ट्रक को रुकने कहा, लेकिन ट्रक ने भागने की कोशिश की, वन रक्षकों ने उस पर फायरिंग कर दी और उसका टायर पंचर कर दिया। आऱोप है कि ट्रक में लकड़ियों का अवैध परिवहन हो रहा था, इसलिए वन विभाग के अधिकारी उसे रोक रहे थे। वन रक्षकों ने ट्रक चालक समेत तीन लोगों को पकड़ लिया, जबकि कुछ लोग भाग गए।

पश्चिम कार्बी आंगलोंग के पुलिस अधीक्षक के मुताबिक वन रक्षकों ने घटना के बारे में जिरिकेंडिंग पुलिस थाने को सूचित किया और अतिरिक्त बल की मांग की। जैसे ही पुलिस पहुंची, मेघालय के लोग ‘दाव’ नाम के कटारनुमा हथियार और अन्य शस्त्रों से लैस होकर बड़ी संख्या में सुबह पांच बजे के आसपास घटनास्थल पर जमा हो गए। उग्र भीड़ ने गिरफ्तार लोगों की तत्काल रिहाई की मांग करते हुए वन रक्षकों और पुलिस का घेराव किया, अधिकारियों ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए उन पर गोलीबारी की। जिससे छह लोगों की मौत हो गई। मृतकों में असम के एक वनरक्षक और मेघालय के पांच लोग शामिल हैं। मेघालय सरकार ने मुकोह में गोलीबारी की घटना के बाद 22 नवंबर से 48 घंटों के लिए सात जिलों में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं।

दो राज्यों के बीच हिंसा की ये घटना मार्च के अंत में हुए उस समझौते के बाद हुई है, जिसे केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक करार दिया था। गौरतलब है कि मेघालय और असम के बीच 1972 से सीमा विवाद चला रहा है, जो समय-समय पर उग्र होता रहा है। असम और मेघालय 885 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। मेघालय को असम पुनर्गठन अधिनियम 1971 के तहत असम से अलग किया गया था, हालांकि मेघालय ने हमेशा इसे चुनौती दी है।

ऊपरी ताराबारी, गज़ांग आरक्षित वन, हाहिम, लंगपीह, बोरदुआर, बोकलापारा, नोंगवाह, मातमूर, खानापारा-पिलंगकाटा, देशदेमोराह ब्लॉक ढ्ढ और ब्लॉक ढ्ढढ्ढ, खंडुली और रेटचेरा के क्षेत्रों को लेकर हमेशा विवाद चलता आया है। खासकर असम के कामरूप जिले की सीमा से लगे पश्चिम गारो हिल्स में लंगपीह जिले पर दोनों राज्य अपना दावा ठोंकते हैं।

लंगपीह ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान कामरूप जिले का हिस्सा था। लेकिन आजादी के बाद यह गारो हिल्स और मेघालय का हिस्सा बन गया। असम इसे मिकिर पहाड़ियों का हिस्सा मानता है। वहीं मेघालय मिकिर हिल्स के ब्लॉक ढ्ढ और ढ्ढढ्ढ पर सवाल उठाता है। दोनों राज्य इन विवादित क्षेत्रों को लेकर हिंसक झड़पों में उलझ चुके हैं और 50 बरस बीत जाने के बाद भी इस विवाद का कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है।

14 मई 2010 को लंगपीह में असम पुलिस के जवानों की गोलीबारी में खासी समुदाय के चार ग्रामीण मारे गए थे और 12 घायल हो गए थे। इसके बाद पिछले साल 26 जुलाई को सीमा विवाद के कारण सबसे भीषण हिंसा हुई थी। जिसमें असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई थी और दोनों राज्यों के लगभग 100 लोग और सुरक्षाकर्मी घायल हो गए थे। एक देश के दो राज्यों की पुलिस का यूं आमने-सामने आ जाना, एक गंभीर घटना थी। जिस का दीर्घकालिक समाधान निकालने की दिशा में प्रयास होना चाहिए था। मगर यह प्रयास बड़े दावों के बोझ तले दम तोड़ता नजर आ रहा है।

जुलाई की घटना के बाद 29 मार्च 2022 को नयी दिल्ली में असम के मुख्यमंत्री हेमंत बस्विा सरमा और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में सीमा विवाद को खत्म करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए। बताया गया कि विवाद के आधे बिंदुओं को लेकर समझौता हो गया है। दोनों मुख्यमंत्रियों ने इस समझौते को ऐतिहासिक बताते हुए केंद्र सरकार का आभार माना। वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि 2014 से मोदी जी ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए कई प्रयास किए हैं।

मैं असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों और उनकी टीमों को उनके सीमा विवाद को सुलझाने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करने पर बधाई देता हूं। असम और मेघालय के बीच 50 साल पुराना लंबित सीमा विवाद सुलझ गया है। विवाद के 12 में से 6 बिंदुओं को सुलझा लिया गया है, जिसमें लगभग 70 प्रतिशत सीमा शामिल है। शेष 6 बिंदुओं का जल्द से जल्द समाधान किया जाएगा।

विवाद के आधे बिंदुओं पर भले ही समझौता हो गया था, लेकिन आधे बिंदु अब भी शेष थे, लेकिन विवाद सुलझाने का श्रेय लेने की हड़बड़ी सत्ताधीशों में दिखाई दी। दो मुख्यमंत्रियों ने समझौता पत्र पर भले हस्ताक्षर कर लिए हों, लेकिन दोनों राज्यों की जनता के बीच क्या सौहार्द्र कायम हो पाया, इस बात पर संभवत: ध्यान नहीं दिया गया। इसलिए समझौते के साल भर बीतते न बीतते फिर से एक हिंसक घटना हो गई। वन क्षेत्र से अवैध रूप से लकड़ियां ले जाना भले अपराध हो, लेकिन उसकी सुनवाई अदालत में होनी चाहिए। इस तरह गोलीबारी से समस्याएं नहीं सुलझेंगी, दो राज्यों के बीच भरोसा कायम नहीं होगा, बल्कि अविश्वास और अधिक बढ़ेगा।

सात जिलों में इंटरनेट बंद होने से कुछ वक्त के लिए स्थिति नियंत्रण में दिखेगी, तब तक गुजरात चुनाव के प्रचार का काम भी हो जाएगा। इसके बाद शायद विवादों में उलझे पूर्वोत्तर के इन राज्यों की सुध ली जाए।

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