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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

उत्तरप्रदेश के मेरठ का एक मामला सामने आया है जिसमें स्कूल की एक टीचर के साथ क्लास के तीन लडक़ों की छेडख़ानी, और छींटाकशी का उन्होंने खुद ही वीडियो बनाया, अश्लील टिप्पणी करते हुए अपनी खुद की आवाज रिकॉर्ड की, अश्लील हावभाव दिखाते हुए अपने चेहरे रिकॉर्ड किए, और वीडियो को चारों तरफ फैला भी दिया। ये लडक़े, और उनके साथ एक लडक़े की बहन, ये सब तकनीकी रूप से ही नाबालिग हैं, लेकिन बालिग होने के करीब हैं, और उनकी हरकत जैसा कि साफ दिख रहा है, बालिगों से बढक़र है। इस टीचर ने पहले प्रिंसिपल से इस बात की शिकायत की, और क्लास बदलने को कहा, लेकिन न तो प्रिंसिपल ने यह बात सुनी, और न ही क्लास के भीतर और क्लास के बाहर भद्दे कमेंट करते हुए वीडियो बनाने वाले इस तथाकथित नाबालिग गिरोह ने अपनी हरकतें बंद कीं। नतीजा यह हुआ कि इस शिक्षिका को थक-हारकर पुलिस में जाना पड़ा, और पुलिस अब इन चारों को उठाकर अदालत में पेश किया है। नाबालिग होने से इनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है लेकिन इन्हें किसी सुधारगृह में रखा गया होगा। यह वीडियो चारों तरफ फैला हुआ है, और इसकी वजह से यह शिक्षिका डिप्रेशन में बताई जा रही है, और घरवालों का कहना है कि वह आत्महत्या की सोच रही है।

यह वीडियो कई बातें दिखाता है, और चौंकाता भी है। इसमें लडक़े बड़े फख्र से अपना चेहरा दिखाते हुए, अश्लील हावभाव दिखाते हुए शिक्षिका को दिखाते हैं, और तरह-तरह के भद्दे फिकरे कसते हैं। उन्हीं का बनाया हुआ वीडियो बताता है कि जब यह शिक्षिका स्कूल के अहाते में जा रही है, तो राह पर बैठे हुए ये लडक़े अश्लील बातें कहते हुए फिर अपना वीडियो बनाते हैं, और वह शिक्षिका क्लास के भीतर भी किताब से अपना चेहरा ढक लेने को मजबूर हो जाती है, और बाहर भी इन्हें पार करके किसी तरह चली जाती है। शिक्षिका हिजाब बांधे हुए है, साड़ी पर कोट पहने हुए है, वह किसी भी तरह से भडक़ाती हुई नहीं दिखती है। और जब यह सब फिल्माया जा रहा है तो लडक़ों की अश्लील बातें सुनकर क्लास में बड़ी संख्या में मौजूद लड़कियां हॅंसती हुई भी दिखती हैं। जिन लडक़ों के सामने शिक्षिका का कोई बस नहीं चल रहा, जिनका दुस्साहस इतना है कि वे खुद की ही गुंडागर्दी का, छेडख़ानी का ऐसा वीडियो फैला रहे हैं, उनसे लड़कियां भी क्लास में क्या भिड़ जातीं। लेकिन वे ऐसी हरकतों पर हॅंसती हुई दिखती हैं जो कि 12वीं में पहुंचने के बाद उनकी जागरूकता कितनी है, इसका एक सुबूत है। इनमें से कई छात्र-छात्राएं वोट डालने के लायक भी हो चुके होंगे या कुछ महीनों में हो जाएंगे, और जागरूकता के ऐसे स्तर के साथ वे किस तरह की सरकार चुनेंगे, यह भी हैरानी होती है।

किसी शिक्षिका की शिकायत पर भी स्कूल प्रशासन अगर कार्रवाई न करे, तो यह भी सदमा पहुंचाने वाली बात है, क्योंकि किसी महिला के लिए आज हिन्दुस्तान में पुलिस में जाकर रिपोर्ट करना भारी शर्मिंदगी की वजह रहती है, और थाने से लेकर अदालत तक उसे ही बुरी निगाह से देखा जाता है। यह घटना यह भी बताती है कि एक आम हिन्दुस्तानी स्कूल में पढ़ाई का माहौल कैसा है। स्कूल से सर्टिफिकेट लेकर, और कॉलेज से डिग्री लेकर निकलने वाले लोग किस स्तर के रहते हैं। यह मामला उत्तरप्रदेश का है जहां के औसत लोग औसत दर्जे से नीचे के पढऩे वाले माने जाते हैं। यही हाल दक्षिण भारत का, या महाराष्ट्र का होता, तो शायद हालात इतने खराब नहीं दिखते। उत्तरप्रदेश में सभी तरह के मामलों में अराजकता का जो आम हाल है, वह वहां की ऐसी स्कूलों पर भी झलक रहा है।

लेकिन इस मामले में एक और पहलू पर गौर करने और चर्चा करने की जरूरत है। हिजाब लगाई हुई और पूरे कपड़े पहनी हुई इस शिक्षिका के साथ इस छेडख़ानी के दुस्साहस वाले तीनों लडक़ों के जो नाम कुछ खबरों में सामने आ गए हैं, वे सारे ही मुस्लिम नाम हैं। अब मुस्लिम समाज के भीतर हिजाब के हिमायती लोग बिना हिजाब अपनी बच्चियों को पढऩे भेजने के भी खिलाफ रहते हैं। उनके मुताबिक लड़कियों को सारे बाल बांधकर और ढांककर रखने चाहिए। मर्दों के बनाए हुए जिन नियमों को यह समाज अपनी लड़कियों और महिलाओं पर ज्यादती के साथ थोपता है, वह समाज अपने लडक़ों को किस तरह तैयार करता है, यह भी मेरठ के इस मामले में साफ दिखता है। स्कूल राममनोहर लोहिया के नाम पर है, वहां पर बिना हिजाब छात्राएं भी दिख रही हैं। लेकिन हिजाब से ढंकी हुई एक शिक्षिका से खुली छेडख़ानी करने और उस पर गर्व करने वाले तमाम लडक़े मुस्लिम हैं। अब मुस्लिम समाज को यह सोचना चाहिए कि उन्होंने एक शिक्षिका पर तो हिजाब लादा हुआ है, कहने के लिए हो सकता है कि उस शिक्षिका ने अपनी पसंद से यह हिजाब बांधा हुआ हो, लेकिन इसी मुस्लिम समाज के लडक़े अपनी शिक्षिका के साथ अश्लील हरकतें कर रहे हैं, उन्हें दुस्साहस से रिकॉर्ड कर रहे हैं, और अब पुलिस कार्रवाई के बाद उनके परिवार शिक्षिका को ही धमका रहे हैं। यह धर्म के नाम पर हिजाब जैसे प्रतिबंध लागू करने वाले मुस्लिम समाज के सोचने की बात है कि उसे अपने लडक़ों की जुबान को बांधना था, उनकी उंगलियों को बांधना था, लेकिन वह तो किया नहीं गया, उन गुंडे लडक़ों को बचाया जा रहा है, और इस शिक्षिका का साथ नहीं दिया जा रहा है जिसने मुस्लिम समाज की हिजाब की परंपरा को ढोया है।

हम उत्तरप्रदेश में इस अराजकता के साथ-साथ मुस्लिम समाज के इस रिवाज के बारे में भी बात करना चाहते हैं कि जब तक समाज के लडक़े और मर्द इस तरह बिगड़े रहेंगे, तब तक महिलाओं पर नाजायज रोकटोक से भी कोई फायदा नहीं होगा। महिलाओं को आत्मविश्वास के साथ, और बराबरी से हक से जीने का मौका मिलना चाहिए, जो कि मुस्लिम, और बाकी समाज भी नहीं दे पा रहे हैं। इस एक मामले को समाज के सामने नमूने की तरह पेश करना चाहिए, इन लडक़ों को उम्र की रियायत की वजह से जो भी मामूली सजा मिलेगी, वह नाकाफी रहेगी, अदालत को इनके परिवारों पर भी कोई जुर्माना थोपना चाहिए। दूसरी तरफ स्कूल मैनेजमेंट के ऐसे बर्ताव को देखते हुए प्रिंसिपल और दूसरे जिम्मेदार लोगों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। एक ढकी हुई शिक्षिका अगर आज मवाली छात्रों की वजह से, और मैनेजमेंट की उदासीनता से आत्महत्या की कगार पर है, तो यह मामला एक सैंपल केस की तरह सामने रखने की जरूरत है कि कानून क्या कर सकता है।
-सुनील कुमार

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