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गीतांजलि श्री कहती हैं कि उनके लेखन में राजनीति नहीं होती, लिखते समय वह सिर्फ़ लिखती हैं. लेकिन मुझे लगता है इस उपन्यास में भी एक पक्की राजनीति है- ‘ उत्तर आधुनिक राजनीति’.

इनके यहां कुछ भी स्थायी नहीं है. न विचार, न इतिहास, न कथावस्तु, न भाषा. सब कुछ खंड-खंड विखंडित. आप अपने हिसाब से अर्थ निकालने के लिए स्वतंत्र हैं. यहां कृष्णा सोबती, निर्मल वर्मा, विनोद कुमार शुक्ल, सभी हांफते ध्वनित होते हैं. सरहद पर ये सारे लेखक चीख रहे हैं. आप उनकी सुनिए या न सुनिए आपकी मर्ज़ी. ये विचार वक्ता अमिता शीरीं ने रेत समाधि पर चर्चा के दौरान व्यक्त किये.

प्रियदर्शिनी अपार्टमेंट के लॉन में आयोजित इस चर्चा में
अमिता ने कहा कि रेत समाधि कथ्य के स्तर पर भी सामान्य पाठकों और उनकी समस्याओं से संवाद नहीं करती, हाँ भाषा के स्तर पर इसमें चमत्कार भरा हुआ है.

वक्ता रश्मि मालवीय ने कहा कि एक उन्मुक्त और सुंदर जीवन के लिये सरहदों का टूटना बहुत ज़रूरी है. ये सरहद चाहे जीवन के तमाम क्षेत्रों की हों, या दो देशों के बीच की सरहद हो. सरहद तोड़ी जानी चाहिए. सरहदों का टूटना एक सुंदर और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है. रेत समाधि में माँ वैयक्तिक स्तर पर उसे ही तोड़ती है, सरहद को मानने से ही इनकार कर देती है. यह एक सुंदर सपना या परिकल्पना है. माँ का जादुई परिवर्तन एक यूटोपिया या आकांक्षा के तौर पर है. रेत समाधि में सरहद लांघने की बात बहुत ही मौज मस्ती के ढंग से माँ के द्वारा कही गई है.

रश्मि मालवीय ने कहा कि भाषा और कथ्य दोनों स्तरों पर आम पाठक का इससे जुड़ना मुश्किल है.

कवि बसंत त्रिपाठी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि रेत समाधि शिल्प के तौर पर जटिल जरूर है लेकिन उपन्यास पाठक से धैर्य की माँग करता है. इससे पहले जितने भी महत्वपूर्ण उपन्यास लिखे गये जो आज बहुत चर्चित है वो अपने समय में बेहद जटिल और पाठक की सोच परम्परा से अलग रहे हैं उन्होंने कहा कि इस उपन्यास को आनंद लेते हुए पढ़ना चाहिए.

प्रो० स्मिता अग्रवाल ने कहा कि हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि लेखक कहाँ से निकल रहा है. उन्होंने लेखक सलमान रुश्दी के उपन्यास मिडनाइट चिल्ड्रेन का उदाहरण दिया । उन्होंने कहा कि भाषा के स्तर पर रेत समाधि उपन्यास बेहतरीन है

प्रो० अनामिका राय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि गीतांजलि श्री ने हमारे खोये हुए शब्दों का बहुत सुंदर प्रयोग किया है। वे हमारी उन भावनाओं को शब्द देती हैं जिन्हें हम अभिव्यक्त करने में असफल हो रहे हैं.

कवि अजामिल ने अपनी टिप्पणी में कहा जितनी समीक्षा रेत समाधि के बारे में आई है उससे ये तय होता है कि गीतांजलि श्री निस्संदेह एक बेहतरीन लेखिका हैं.

उन्होंने रेत समाधि की भाषा पे मुक्तिबोध के एक लेख का हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा है कि रचना अपनी भाषा स्वयं ढूँढ़ लेती है.

विनोद तिवारी ने कहा जो लेखक सोचता है, समझता है अपना विचार गढ़ता है उसी की अभिव्यक्ति उसकी रचना में होती है.

उन्होंने कहा कि रचना को 130 करोड़ लोगों के परिवेश के हिसाब से देखना चाहिए उन्होंने रचना में सरहद का जो रूप स्थापित किया गया है उससे अपनी असहमति दर्ज करते हुए बताया सरहद आनंद या इक्कड़ दुक्कड़ खेलने की चीज नहीं है
बल्कि पीड़ा की चीज है.

झरना मालवीय ने कहा उपन्यास और साहित्य जब सिर्फ मनोरंजन की चीज बन जायेगी तो वह हमारे समाज के लिये कोई रास्ता नहीं तैयार करती हमको एक सजग पाठक के नाते सचेत होना होगा.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो० अनीता गोपेश ने कहा जितनी सारगर्भित चर्चा इस गोष्ठी में हुई है वह इस गोष्ठी की सफलता है.

उन्होंने कहा कि साहित्यिक कृति हमारी समझ को समृद्ध करती है । साहित्य सिर्फ आनंद के लिये नहीं है, बल्कि उसका समाज के प्रति एक निश्चित उद्देश्य होना चाहिए ।

कार्यक्रम में श्रीप्रकाश मिश्र, मनीष कुमार, आनंद मालवीय, जलाल नियाज़ी आदि ने विचार व्यक्त किये.

कार्यक्रम में अशरफ अली बेग, अनिल रंजन भौमिक, मंजू सिंह, अनीता त्रिपाठी, सुधांशु मालवीय, प्रियंका गोपेश, गायत्री कुमार, सचिन गुप्ता, स्वाति गांगुली, ऋतम्भरा, शाहिना सिद्दीकी, डॉ० जलाल नियाज़ी, डॉ० कल्पना श्रीवास्तव , बिंदा,सोनी आज़ाद, अंजना,एल० एल० चौधरी ,एस टंडन ,सुधा टंडन, डॉ० कल्पना श्रीवास्तव , बिंदा, सोनी आज़ाद , अंजना, एल० एल० चौधरी, निश्चला शर्मा, नवाकांक्षी शर्मा, सचिन गुप्ता, आदित्य राव, पवन कुमार उपाध्याय, स्नेहलता गुप्ता, रामचन्द्र, महेंद्र कुमार गुप्ता,मनीष आज़ाद,अरविंद कुमार यादव सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे.

कार्यक्रम का संचालन संध्या नवोदिता ने किया. आभार ज्ञापन प्रकर्ष मालवीय ने किया.

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