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-सुनील कुमार॥

आज चाहे हॅंसी-मजाक में सही, कई डॉक्टरों के ऐसे असली या मजाकिया नोटिस देखने में आते हैं कि गूगल पर पढक़र आए लोगों के सवालों के लिए अलग से फीस ली जाएगी। दरअसल इंटरनेट पर सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले सर्च इंजन गूगल पर किसी जानकारी को ढूंढने को ही अब ढूंढना मान लिया गया है। गूगल अब ब्रांड नहीं रह गया, वह अब एक क्रिया बन गया है, तलाशने का समानार्थी शब्द बन गया है। लोगों को स्कूल-कॉलेज के प्रोजेक्ट पूरे करने हो, या किसी इंटरव्यू की तैयारी करनी हो, उन्हें सबसे आसान और आम सलाह यही मिलती है कि गूगल कर लो। ऐसा माना जाता है कि लोगों की अधिकतर जरूरतों की जानकारी इस सर्च इंजन पर निकल आती है। इसके बाद इंटरनेट पर एक दूसरी वेबसाइट विकिपीडिया है जो कि विश्व ज्ञानकोश है, और उस पर मिली अधिकतर जानकारी आमतौर पर सही मानी जाती है। लोगों की आम जरूरतें इस पर पूरी हो जाती हैं, और खास जरूरतों के लिए दूसरी वेबसाइटें भी इंटरनेट पर हैं।

सहूलियत के ऐसे माहौल के बीच अचानक एक नई वेबसाइट आई है जो कि इंटरनेट पर काम करने वाला एक एआई एप्लीकेशन है, एआई का मतलब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस। चैटजीपीटी नाम की यह वेबसाइट 2021 तक की जानकारी से लैस है, और इस पर जाकर लोग मनचाही फरमाइश कर सकते हैं। कोई उस पर नासा या इसरो के लिए एक निबंध लिखने कह सकते हैं, कोई भूपेश बघेल पर कविता लिखने की फरमाइश कर सकते हैं, और कोई रमन सिंह पर कविता लिखवाकर यह पा सकते हैं कि इस एप्लीकेशन में सिर्फ नाम बदलकर दोनों की तारीफ में एक ही कविता खपा दी है। लेकिन अभी कुछ महीनों के भीतर इस वेबसाइट या एप्लीकेशन की शोहरत ऐसी हो गई है कि अमरीकी विश्वविद्यालयों में इम्तिहान में पूछे जाने वाले सवालों के जवाब इस पर बनाए जा रहे हैं, और इसका आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जानकारी ढूंढकर, अपनी खुद की भाषा में तकरीबन सही जवाब बनाकर कुछ सेकेंड में ही पेश कर दे रहा है। लोग जिस रफ्तार से पढ़ सकते हैं उससे कई गुना रफ्तार से यह जवाब गढक़र पेश करता है। अभी कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों ने चैटजीपीटी के जवाबों को आंकने की कोशिश की, तो उन्होंने पाया कि बिजनेस मैनेजमेंट जैसे कई कोर्स के इम्तिहानों के जवाब अगर इस वेबसाइट से बनवाए जाएं, तो भी लोग बी या बी माइनस (शायद सेकेंड डिवीजन) से पास हो जाएंगे। और चैटजीपीटी अपने इस्तेमाल करने वाले के सवालों से, इंटरनेट पर रोज जुडऩे वाली जानकारियों से अपने आपको लैस करते चलता है, सीखते चलता है, और हर दिन उसके जवाब पहले से बेहतर हो सकते हैं।

आज मीडिया में भी ऐसा माना जा रहा है कि आम रिपोर्टिंग आने वाले दिनों में हो सकता है कि ऐसे ही किसी सॉफ्टवेयर से होने लगे, और उसमें बुनियादी जानकारी डाल देने से कम्प्यूटर तुरंत ही समाचार बनाकर पेश कर देगा। आज भी चैटजीपीटी पर जानकारियां डालने से वह तुरंत रिपोर्ट बनाकर दे देता है। आने वाला वक्त बिजली की रफ्तार से किसी भी विषय पर लिख देने वाले ऐसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लैस रहेगा, और दुनिया में मौलिक लेखन के लिए यह एक बड़ा खतरा रहेगा। आज ही पश्चिम के विकसित विश्वविद्यालयों में यह चर्चा छिड़ी हुई है कि चैटजीपीटी जैसे औजारों को देखते हुए अब इम्तिहान लेने के तरीकों में तुरंत बदलाव करना पड़ेगा, क्योंकि अब सवालों के लंबे जवाब लिखने, या निबंध लिखने के ढंग से इम्तिहान बेकार हो जाएंगे क्योंकि कुछ पल में ही लोग दुनिया के किसी भी विषय पर ऐसा निबंध पा सकते हैं। ऐसा ही हाल पत्र-पत्रिकाओं या मीडिया की दूसरी जगहों पर लिखने वालों का भी होगा, क्योंकि उनसे बेहतर लिखा हुआ पल भर में पेश हो जाएगा, तो उनकी जरूरत क्या रह जाएगी?

आज डिजिटल टेक्नालॉजी पर टिकी हुई पढ़ाई वैसे भी सीखने और जवाब देने की मौलिकता खोती चल रही है। लोग गूगल पर एक किस्म के जवाब ढूंढते हैं, और मशीनी अंदाज में जवाब लिखते हैं। और अब तो हर किसी के लिए अलग-अलग किस्म से लिखे हुए जवाब चैटजीपीटी जैसी वेबसाइटों पर बढ़ते ही चलेंगे, और इससे सीखने का सिलसिला भी बहुत बुरी तरह प्रभावित होगा। मूल्यांकन करने वाले लोगों को यह समझ ही नहीं आएगा कि जवाब या इम्तिहान देने वाले लोगों ने क्या खुद लिखा है, और क्या उनके लिए चैटजीपीटी जैसे सॉफ्टवेयर ने लिखा है।

हजारों बरस में दुनिया ने भाषा सीखी, दुनिया भर के विषयों पर जानकारी हासिल की, उनका विश्लेषण किया, और ज्ञान को समझ में तब्दील किया। अब रातों-रात एक ऐसी मुफ्त की सहूलियत लोगों के फोन और कम्प्यूटर पर पहुंच गई है कि उसने हजारों बरस के विकास की बराबरी कुछ सेकेंड में करने की कोशिश की है। अभी बस उसने भाषा और ज्ञान को सीखा है, लिखना सीखा है, लेकिन फिर भी वह है तो कृत्रिम ही। उसे दो बिल्कुल अलग-अलग सोच के नेताओं पर कविता लिखते हुए नाम बदलने के अलावा कुछ और बदलना नहीं सूझता। यहां पर आकर वह बेवकूफ है। लेकिन दुनिया में मूल्यांकन के अधिकतर तरीके भी इसी तरह के या इसी दर्जे के बेवकूफ हैं। इसलिए कृत्रिम बुद्धि का बनाया हुआ माल भी बाजार में तकरीबन तमाम जगहों पर काम कर जाएगा, खप जाएगा। बहुत ही कम ऐसी जगहें रहेंगी जहां पर मौलिकता का सम्मान होगा, उसकी जरूरत होगी, और उसे परखा जा सकेगा। फिलहाल एक जानकार ने नसीहत यह दी है कि लोग अपने जिन मोबाइल फोन से लेन-देन का काम करते हैं उन पर आर्टिफिशियल इंटेलीजेेंस के कोई भी एप्लीकेशन डाउनलोड करें क्योंकि वे फोन पर आपके तमाम काम से लगातार सीखते चलते हैं, और हो सकता है कि वे आपके बैंकों के पासवर्ड भी सीख जाएं, जो कि आगे जाकर हैकरों के हाथ लग जाएं। इसलिए यह कृत्रिम बुद्धि लोगों को इस एप्लीकेशन की शक्ल में मुफ्त में हासिल तो है, लेकिन दुनिया में जैसा कहा जाता है कि कुछ भी मुफ्त नहीं होता, इसे भी सावधानी से इस्तेमाल करना चाहिए। और स्कूल-कॉलेज, विश्वविद्यालय को भी ऐसी तकनीक को अपनी परंपरागत परीक्षा प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती मानना चाहिए कि इसके बाद अब उनके दिए जा रहे ज्ञान और लिए जा रहे इम्तिहान की शक्ल क्या होनी चाहिए।

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